विज्ञान

किन ग्रहों पर है जीवन, क्या बारिश की बूंदों से चल सकता है पता

बूंदों के व्यवहार की समझ न केवल ग्रहों के अतीत को समझने में मदद देंगी साथ ही इससे उन ग्रहों की पहचान में मदद मिलेगी, जहां जीवन की सम्भावना है

Lalit Maurya

संभव है कि एक दिन इंसान दूसरे ग्रहों पर भी कदम रखें और हो सकता है वो ग्रह हमारी पृथ्वी से बिलकुल अलग हो, पर लेकिन एक चीज है जो इसके बावजूद चिर परिचित ही होती और वो है बारिश। हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस बारे में खोज की है जिसमें उन्होंने पाया है कि अलग-अलग ग्रहों के वातावरण में भी बारिश की बूंदें एक जैसी ही हैं। यहां तक की पृथ्वी और बृहस्पति जो बिलकुल एक दूसरे से अलग ग्रह हैं वहां भी इनमें काफी कुछ समानताएं हैं।

ऐसे में बारिश की इन बूंदों के व्यवहार को समझकर न केवल मंगल जैसे ग्रहों पर पहले जलवायु कैसी रही होगी इस बात को जान सकते हैं साथ ही हमारे सौरमंडल से बाहर भी मौजूद उन ग्रहों की पहचान कर सकते हैं जहां जीवन की सम्भावना है। यह जानकारी हाल ही में जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: प्लैनटस में छपे एक शोध में सामने आई है।

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता केटलिन लॉफ्टस ने बताया कि जब हम किसी ग्रह पर जीवन के बारे में सोचते हैं तो वहां बादलों का जीवनचक्र बहुत मायने रखता है। लेकिन बादल और बारिश बहुत ज्यादा जटिल हैं जिनका अनुमान और मॉडल आसान नहीं है। हम इन्ह्ने समझने के आसान तरीके खोज रहे हैं। जिससे हम यह समझ सके की बादल कैसे बनते हैं और क्या और किन परिस्थितियों में बादल से गिरी बूंदें वायुमंडल में ही वाष्पित हो जाएंगी या बारिश के रूप में सतह पर गिरेंगी।

इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता रॉबिन वर्ड्सवर्थ के अनुसार बारिश की बूंदें सभी ग्रहों पर वर्षा चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यदि हम इस बात को समझ लेते हैं कि एक अकेली बून्द कैसे व्यवहार करती है, तो एक जटिल जलवायु मॉडल में बारिश का भी अनुमान लगा सकते हैं। 

किसी ग्रह की जलवायु को समझने में बूंदों का व्यवहार भी होता है महत्वपूर्ण

किसी भी ग्रह की जलवायु को समझने के लिए बारिश की बूंदों का व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण होता है, भले ही वो बूंदे सतह तक पहुंचे या नहीं, क्योंकि वायुमंडल में मौजूद पानी की किसी ग्रह की जलवायु में बहुत अहम भूमिका होती है। इसमें बूंदों का आकार भी मायने रखता है। यदि बून्द बहुत बड़ी होगी तो वो सतह पर जरुरी तनाव ने होने के कारण बिखर जाएगी, चाहे वो बून्द पानी, मीथेन या बहुत गर्म तरल लोहे की हो, जैसा की डब्ल्यूएएसपी -76 बी नामक एक एक्सोप्लैनेट पर होती है। वहीं यदि बूंद बहुत छोटी होगी और वो नीचे गिरेगी तो वो सतह तक पहुंचने से पहले ही वाष्पित हो जाएगी।

शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए बूंदों का आकार, दूसरा गिरने की गति और तीसरा वाष्पीकरण की दर, यह तीन चीजें ही मायने रखती हैं।

यदि बूंदों के आकार की बात करें तो वो हर तरह की सामग्री में समान ही होता है, वो मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि बून्द कितनी भारी है। हमें लगता है कि बूंदें हमारे आंसुओं की तरह होती है पर वास्तविकता में वो जब छोटी होती हैं तो गोल होती हैं। जब वो बड़ी होती हैं तो उनके आकार में बदलाव हो जाता है। जबकि उनके गिरने की गति उनके आकार के साथ-साथ गुरुत्वाकर्षण और आसपास मौजूद हवा की मोटाई पर निर्भर करती है। वहीं वाष्पीकरण की दर कहीं ज्यादा जटिल होती है। यह वायुमंडलीय संरचना, दबाव, तापमान, सापेक्ष आर्द्रता और अन्य कारकों से प्रभावित होती है।

इन सभी गुणों को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रह पर मौजूद अलग-अलग तरह की स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में बादलों से संभावित बूंदों के आकारों का केवल एक बहुत छोटा अंश सतह तक पहुंच पाता है।

जब हम किसी बाहरी तारामंडल के ग्रह पर बादलों के चक्र को समझने की कोशिश कर रहे हों तो हम उनके व्यवहार को समझने के लिए इन गुणों की मदद ले सकते हैं। वर्ड्सवर्थ  के अनुसार विभिन्न वातावरणों में बारिश की बूंदों और बादलों के बारे में हमारी सोच और समझ उन एक्सोप्लेनेट पर मौजूद जीवन को समझने में मददगार हो सकती है। साथ ही हम इनकी मदद से पृथ्वी की जलवायु को भी बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।