बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और जापान के निगाटा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हिमालय में एक प्राचीन महासागर के अवशेषों का पता लगाया है।
टीम को लगभग 60 करोड़ वर्ष पुराने खनिज भंडार में फंसी पानी की बूंदें मिलीं और यह खोज पृथ्वी के अतीत में एक महत्वपूर्ण ऑक्सीजनीकरण या ऑक्सीजनेशन घटना की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकती है।
प्रीकैम्ब्रियन रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि, कैल्शियम और मैग्नीशियम कार्बोनेट से भरपूर ये खनिज भंडार पैलियो महासागरों के लिए टाइम कैप्सूल के समान हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि 70 से 50 करोड़ साल पहले, पृथ्वी ग्लेशियरों की एक लंबी अवधि से गुजरी, जिसे स्नोबॉल अर्थ ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है।
इसके बाद पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हुई, जिसे दूसरी विशाल ऑक्सीजनेशन घटना कहा जाता है, जिसके कारण जीवन के अलग-अलग रूपों का विकास हुआ। अब तक, वैज्ञानिक पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि अच्छी तरह से संरक्षित जीवाश्मों की कमी और पृथ्वी के इतिहास में मौजूद सभी पुराने महासागरों के गायब होने के कारण ये घटनाएं कैसे जुड़ी थीं। अर्थात प्राचीन महासागरों के लुप्त होने के कारण इन घटनाओं के बीच संबंध अस्पष्ट बना हुआ है। हिमालय में नई खोजी गई समुद्री चट्टानें कुछ सवालों का जवाब दे सकती हैं।
शोधकर्ताओं के निष्कर्षों से पता चलता है कि स्नोबॉल अर्थ हिमाच्छादन के दौरान, तलछटी घाटियों में लंबे समय तक कैल्शियम की कमी रही होगी, हो सकता है नदी के प्रवाह में कमी के कारण ऐसा हुआ होगा। कैल्शियम की इस कमी के कारण मैग्नीशियम के स्तर में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप मैग्नीशियम से जमा प्राचीन महासागर के पानी में अटक गया क्योंकि वे क्रिस्टलीकृत हो गए थे।
कैल्शियम की इस कमी के कारण पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है, जिससे धीमी गति से बढ़ने वाले प्रकाश संश्लेषक साइनोबैक्टीरिया के लिए अनुकूल परिस्थितियां बन सकती हैं। ये जीव वायुमंडल में अधिक ऑक्सीजन छोड़ना शुरू कर सकते थे, जो दूसरा विशाल ऑक्सीजनेशन में योगदान दे रहा था।
शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन पश्चिमी कुमाऊं हिमालय के विशाल हिस्से, अमृतपुर से मिलम ग्लेशियर और देहरादून से गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र तक किया।
शोधकर्ताओं ने बताया कि, बहुत अधिक प्रयोगशाला विश्लेषण ने पुष्टि की कि जमा चीजें ज्वालामुखीय गतिविधि जैसे अन्य स्रोतों के बजाय प्राचीन महासागर के पानी के वर्षा से उत्पन्न हुई है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि, ये निष्कर्ष प्राचीन महासागरों की रासायनिक और समस्थानिक संरचना पर प्रकाश डाल सकते हैं, जलवायु मॉडलिंग के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकते हैं और महासागरों और पृथ्वी पर जीवन के विकास संबंधित अहम जानकारी दे सकते हैं।