भारत वैज्ञानिकों ने एक ऐसे नए एयर फिल्टर को विकसित किया है, जो हवा में मौजूदा कीटाणुओं को निष्क्रिय कर सकता है। इतना ही नहीं यह एयर फिल्ट्रेशन तकनीक ग्रीन टी में पाए जाने वाले तत्वों का इस्तेमाल करके इन कीटाणुओं की सिस्टम से 'सेल्फ-क्लीनिंग' कर सकती है। इस तकनीक का विकास देश में वैज्ञानिक अनुसंधान और उच्च शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभा रहे भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने किया है।
प्रोफेसर सूर्यसारथी बोस और प्रोफेसर कौशिक चटर्जी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने जो एयर फिल्टर विकसित किए हैं वो आमतौर पर ग्रीन टी में पाए जाने वाले पॉलीफेनोल्स और पॉलीकेशनिक पॉलिमर्स जैसे तत्वों का उपयोग करती है। ये पर्यावरण अनुकूल तत्व साइट-विशिष्ट बंधन के माध्यम से रोगाणुओं को तोड़ते हैं। इनकी मदद से यह एयर फिल्टर कीटाणुओं को निष्क्रिय कर सकते हैं।
इस एयर फिल्टर को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) से प्राप्त विशेष अनुदान की मदद से तैयार किया गया है। साथ ही इसके पेटेंट के लिए भी आवेदन किया गया है।
इस बारे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार लगातार उपयोग के कारण मौजूदा एयर फिल्टर पकड़े गए कीटाणुओं के लिए प्रजनन स्थल बन जाते हैं। इन कीटाणुओं की वृद्धि फिल्टर के छिद्रों को बंद कर देती है, जिससे इन फिल्टरों का जीवनकाल कम हो जाता है। इतना ही नहीं इन कीटाणुओं का फिर से वहां फंसना आसपास के लोगों को भी संक्रमित कर सकता है।
गौरतलब है कि नेशनल ऐक्रेडीटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबोरेट्रीज-एनएबीएल द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में इस अनूठे रोगाणुरोधी एयर फिल्टर का परीक्षण किया गया है। इस परीक्षण से पता चला है कि यह फिल्टर 99.24 फीसदी की दक्षता के साथ सार्स कॉव-2 के डेल्टा संस्करण को निष्क्रिय कर सकता है।
मंत्रालय द्वारा साझा जानकारी के अनुसार चूंकि यह नई तकनीक एंटीमाइक्रोबियल फिल्टर विकसित करने का वादा करती है, जो दूषित हवा से होने वाले रोगों को रोक सकती है। ऐसे में इसे 2022 में पेटेंट प्रदान किया गया था। मंत्रालय का कहना है कि, “हमारे एयर कंडीशनर, सेंट्रल डक्ट और एयर प्यूरीफायर में ये नए एंटीमाइक्रोबियल फिल्टर, वायु प्रदूषण से बचाने के साथ-साथ कोरोनावायरस जैसे हवा में फैलने वाले रोगजनकों के प्रसार को कम कर सकते हैं।“
देश के लिए बड़ी समस्या बन चुका है बढ़ता प्रदूषण
देश में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि देश में पसरा वायु प्रदूषण विशेष रूप से पीएम2.5 एक औसत भारतीय से उसके जीवन के औसतन पांच साल छीन रहा है।
यह समस्या उत्तर भारत में तो कुछ ज्यादा ही गंभीर है। जो हर दिल्लीवासी के जीवन के औसतन 10.1 साल लील रही है। वहीं बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते लखनऊ में रहने वाले लोगों की उम्र 9.5 साल तक घट सकती है। यह जानकारी हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने वायु गुणवत्ता को लेकर जो मानक तय किए हैं उनके आधार पर देखें तो देश की सारी आबादी आज ऐसी हवा में सांस ले रही है जो उन्हें हर पल बीमार बना रही है। इसका सीधा असर उनकी उम्र और जीवन गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) का स्तर साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। जो 1998 की तुलना में 2020 में 61.4 फीसदी बढ़ गया है। इससे औसत जीवन सम्भावना 2.1 वर्ष घट गई है। देखा जाए तो पूरी दुनिया में 2013 से प्रदूषण में जितना इजाफा हुआ है उसके 44 फीसदी के लिए अकेला भारत जिम्मेवार है।