विज्ञान

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया यूरिक एसिड का पता लगाने वाला सेंसर

शरीर में यूरिक एसिड सबसे महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट में से एक है जो रक्तचाप की स्थिरता को बनाए रखता है और जीवित प्राणियों में ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करता है

Dayanidhi

वैज्ञानिकों द्वारा यूरिक एसिड का पता लगाने के लिए एक नया बायो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाया गया है। इस सेंसर को पहनकर शरीर में अलग-अलग तरह की जांच की जा सकती है।

शरीर में यूरिक एसिड सबसे महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट में से एक है जो रक्तचाप की स्थिरता को बनाए रखता है और जीवित प्राणियों में ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करता है। रक्त में यूरिक एसिड की सामान्य सीमा 0.14 से 0.4 एमएमओएल डीएम-3 और मूत्र के लिए 1.5 से 4.5 एमएमओएल डीएम-3 होती है।

हालांकि इसके उत्पादन और उत्सर्जन के बीच संतुलन की कमी के कारण यूरिक एसिड के स्तर में उतार-चढ़ाव से हाइपरयूरिसीमिया जैसी कई बीमारियां हो सकती है, जो बदले में गठिया, टाइप 2 मधुमेह, लेश-नाइहन सिंड्रोम, उच्च रक्तचाप और गुर्दे संबंधी विकार एवं हृदय रोग के खतरों को बढ़ा सकता है

रोस्टर यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के मुताबिक, यूरिक एसिड एक सामान्य शरीर का अपशिष्ट उत्पाद है। यह तब बनता है जब प्यूरीन नामक रसायन टूट जाता है। प्यूरीन शरीर में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक पदार्थ है। वे कई खाद्य पदार्थों में भी पाए जाते हैं, जैसे कि लिवर, सीपदार मछली और शराब आदि में। डीएनए के टूटने पर ये शरीर में भी बन सकता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के शोधकर्ताओं ने शून्य-आयामी कार्यात्मक नैनोस्ट्रक्चर के एक नए वर्ग में अनोखे भौतिक रासायनिक और सतह गुणों के साथ कम फॉस्फोरिन क्वांटम डॉट्स से बने इस उपकरण का निर्माण किया गया है।

क्वांटम डॉट्स बायोमेडिकल अनुप्रयोगों में विशिष्ट विद्युत प्रदर्शन दिखाते हैं और इसलिए इसका उपयोग उच्च-प्रदर्शन वाले विद्युत बायोसेंसर बनाने में किया जा सकता है

इस नए उपकरण के लिए वर्तमान- वोल्टेज और प्रतिबाधा यानी विपरीत इलेक्ट्रॉन प्रवाह प्रतिक्रियाओं का अध्ययन यूरिक एसिड की मात्रा में वृद्धि के साथ किया गया है। यूरिक एसिड की मात्रा में वृद्धि के साथ, वर्तमान घनत्व बढ़ता है और लगभग 1.35×10-6 ए का अधिकतम विद्युत प्रवाह दिखाता है।

इस उद्देश्य के लिए निर्मित ये उपकरण यूरिक एसिड के साथ अभिक्रिया में ईस प्रतिवर्तिता (रिवर्सिबिलिटी) दिखाते हैं, जो बार-बार संवेदन प्रयोगों के लिए उपकरण के उपयोग को सक्षम बनाती हैं। यह असर और लागत के मामले में मौजूदा उपलब्ध सभी उपकरणों से बेहतर है क्योंकि इसमें किसी एंजाइम की आवश्यकता नहीं होती है।

इस नए उपकरण की प्रतिक्रिया की जांच मनुष्य के रक्त सीरम और कृत्रिम मूत्र जैसे वास्तविक नमूनों से की गई। इस प्रकार विकसित उपकरण आसान, पोर्टेबल तथा किफायती है और इसे लगभग 0.809 माइक्रोएम की सीमा के साथ यूरिक एसिड का पता लगाने के लिए तैयार करना आसान है।

प्रोफेसर नीलोत्पल सेन शर्मा और उनकी शोध छात्रा नसरीन सुल्ताना के नेतृत्व में यह कार्य हाल ही में एसीएस एप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक मैटेरियल्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।