विज्ञान

भारतीय भैंसों की नस्ल में सुधार करके बढ़ाया जा सकता है दूध का उत्पादन

जीनोम का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि दूध उत्पादन, आवरण का रंग, शरीर का आकार और रोग प्रतिरोध सहित, प्रजातियों के प्रमुख लक्षणों में सुधार किया जा सकता है।

Dayanidhi

घरेलू भैंस (बुबलस बुबलिस) जो अधिकतर पानी में रहना पसंद करती हैं, इसलिए इन्हें पानी की भैंसे भी कहा जाता है। भैंस भारतीय उपमहाद्वीप में दूध का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। एशिया में खासकर भारत के छोटे किसान किसी अन्य पालतू प्रजातियों की तुलना में भैंसों पर अधिक निर्भर हैं। भैंस के दूध की मात्रा गाय के दूध की तुलना में दोगुनी होती है।

अब एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि जीनोमिक्स की मदद से भैंसों और मवेशियों की चयनात्मक प्रजनन में सुधार करके दूध में बढ़ोतरी और दूध की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा, पोषण और भैंस कें को पालने वालों की आय में सुधार होगा।

यह कई तरह की पानी की भैंसों के जीनोम की जांच करने वाला पहला अध्ययन है। जीनोम एक जानवर या जीव का डीएनए का पूरा समूह होता है। यह अध्ययन द रोसलिन इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग, यूके द्वारा एशिया और अफ्रीका के सहयोगियों के साथ मिलकर किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि दूध उत्पादन, आवरण का रंग, शरीर का आकार और रोग प्रतिरोध सहित, प्रजातियों के प्रमुख लक्षणों में सुधार किया जा सकता है। उनके जीनोम में इन सब का पता लगाने योग्य संकेतों को छोड़ दिया जाता है। यह चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से छोटे पशुपालकों के लिए बेहतर कृषि, पशु स्वास्थ्य और उत्पादन का मार्ग दिखाता है।

रोजलिन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता प्रसून दत्ता ने कहा अब हम महत्वपूर्ण जीनोम की जगह (लोकी) को जानते हैं जो महत्वपूर्ण लक्षणों से जुड़े हुए हैं। स्थानीय किसानों के लिए अधिक उत्पादक नस्लों को विकसित करने हेतु, मार्कर-असिस्टेड ब्रीडिंग योजना बनाना आसान होगा। लोकी या लोकस आनुवांशिकी में, एक स्थान एक गुणसूत्र पर एक विशिष्ट, निश्चित स्थिति है जहां एक विशेष जीन स्थित रहता है।

हमने भैंस की नस्लों के बीच देखी गई दूध की वसा सामग्री में अंतर से जुड़े एक जीनोमिक क्षेत्र की पहचान की है। दत्ता कहते हैं कि यह जानते हुए कि, इस विशेष स्थान (लोकस) को ध्यान में रखते हुए बेहतर दूध वसा सामग्री के साथ नस्लों को विकसित करना आसान होना चाहिए।

शोधकर्ताओं ने सात भारतीय नस्लों के 79 पानी की भैंसों के जीनोम की तुलना 294 घरेलू मवेशियों (बोस टौरस टौरस, बोस टौरस इंडिकस) के जीनोम से की। ये एशिया, अफ्रीका और यूरोप सहित दुनिया भर की 13 नस्लों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययन से पता चलता है कि एक प्रजाति में वांछित लक्षणों से जुड़े कार्य-संबंधी अंतर को अन्य प्रजातियों में डाला जा सकता है। इन निष्कर्षों में जीनोमिक दृष्टिकोण का उपयोग करके न केवल भैंस प्रजनन के बेहतर कार्यक्रमों में तेजी लाई जा सकती है, बल्कि कुछ चुनिंदा विभिन्न तरह के पालतू प्रजातियों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

जेम्स प्रेंडरगैस्ट ने कहा जीन जो शरीर के आकार से दृढ़ता से जुड़े हुए हैं, लगता है कि यह प्रजातियों को पालतू बनाकर पूरा किया गया है। मवेशियों की नस्लों के बीच सबसे बड़ा अंतर दिखाने वाले जीनोमिक स्थानों को अक्सर शरीर के आकार से जोड़ा गया है। जिनमें उनका रंग और दूध की विशेषता से जुड़े स्थान (लोकी) को पानी की भैंसों के विश्लेषण में देखा गया था। जेम्स प्रेंडरगैस्ट अध्ययनकर्ता और ट्रॉपिकल पशुधन आनुवंशिकी और स्वास्थ्य केंद्र में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं।

प्रेंडरगैस्ट कहते है जर्मन शेफर्ड कुत्तों में काले रंग का आवरण डीएनए में परिवर्तन करके बनता है। यही चीज कुछ पानी की भैंसों में पाया गया था, जिसे आवरण के रंग के लिए चुना गया है।

2017 के खाद्य और कृषि संगठन के सांख्यिकीय डेटाबेस के अनुसार, दक्षिण एशिया में दुनिया की 20 करोड़ (200 मिलियन) पानी की भैंसों में से अधिकांश यहां रहती हैं। नदी की भैंस मुख्य रूप से भारत में और पूर्वी एशिया में दलदल में रहने वाली भैंस पाई जाती है। आयात और प्रवासन ने पानी कि भैंस को मध्य पूर्व और भूमध्यसागरीय देशों में दूध उत्पादन का एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक स्रोत बना दिया है।

मेलबोर्न विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा और कृषि विज्ञान के फैकल्टी सुरिंदर सिंह चौहान ने कहा यह शोध भारतीय नदी की भैंसों की आबादी के भीतर व्यापक आनुवंशिक विविधता को उजागर करता है। भविष्य के जीनोमिक चयन के लिए एक आधार प्रदान करता है जो उत्पादकों को कम उम्र में अधिक उत्पादक जानवरों का चयन करने और आनुवंशिक लाभ की दर में तेजी लाने के लिए अधिक सटीकता के साथ मदद कर सकता है।

चौहान कहते हैं एशियाई देशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती अनुत्पादक मवेशियों की बढ़ती संख्या और भोजन की बढ़ती मांग है। यह शोध भविष्य में टिकाऊ, कुशल और बेहतर उत्पादन के लिए पानी की भैंसों के जीनोमिक चयन की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है, जो संसाधनों पर बोझ को कम करेगा और स्थिरता को बढ़ावा देगा।