विज्ञान

बदलती जलवायु में खुद को ढालने के लिए अतीत की यादों का उपयोग करते हैं पौधे

जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए पौधे अपनी 'एपिजेनेटिक मेमोरी' का उपयोग करते हैं। हैरानी की बात है कि वो अपनी इन यादों को अगली पीढ़ी के साथ भी साझा कर सकते हैं

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए पौधे अपनी 'एपिजेनेटिक मेमोरी' यानी पिछली यादों का उपयोग करते हैं? यह कुछ ऐसा ही है जैसे जानवर पर्यावरण की विपरीत परिस्थितियों में बचने के लिए जल्द से जल्द अनुकूलन कर लेते हैं। इस बारे में विस्तृत जानकारी सेल प्रेस जर्नल ट्रेंड्स इन प्लांट साइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है।

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे पौधे जलवायु में आ रहे बदलावों और उनके प्रतिकूल प्रभावों के अनुकूल हो रहे हैं। साथ ही कैसे वो अपनी इस याद को अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, पौधे इन बदलावों का सामना करने के लिए अपनी पिछली यादों का उपयोग करते हैं। वो पर्यावरण की विपरीत परिस्थितियों से जुड़ी यादों को संजो कर रखते हैं, जिससे भविष्य में यदि फिर ऐसी परिस्थितियां आएं तो वो उनका उपयोग करके जल्द से जल्द प्रतिक्रिया कर सकें। 

देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों से पौधे भी सुरक्षित नहीं है। यह बदलाव पौधों के लिए भी पर्यावरण से जुड़े तनावों में इजाफा कर रहा है। उदाहरण के लिए कई क्षेत्रों में सर्दियों का मौसम अब गर्म और छोटा होता जा रहा है। ऐसे में पौधों को इन बदलावों के प्रति अनुकूल होना पड़ता है।

इस बारे में फ्लोरेंस विश्वविद्यालय के पादप आनुवंशिकीविद् फेडेरिको मार्टिनेली का कहना है कि कई पौधों में फूलों के खिलने के लिए सर्दियों की न्यूनतम अवधि की जरूरत होती है, जिसके अनुसार वो इसके समय को तय करने के लिए अपनी एनवायर्नमेंटल क्लॉक को उसके अनुसार सेट करते हैं। लेकिन लेकिन जैसे-जैसे ठंड का मौसम छोटा होता जा रहा है, पौधे उसके अनुसार अनुकूलन करते हुए ठंड की कम अवधि में अपने फूलों के खिलने के समय में बदलाव करते हैं और उसे आगे बढ़ा देते हैं।

कैसे पिछले तनावों को याद रख पाते हैं पौधे

जैसा कि हम जानते हैं कि पौधों में न्यूरल नेटवर्क नहीं होता। मतलब कि उनमें न तो मस्तिष्क और न ही किसी तरह की तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं। ऐसे में उनकी याद्दाश्त उनके सेलुलर, मॉलिक्यूलर और बायो केमिकल नेटवर्क पर निर्भर करती है। वैज्ञानिक पौधों में इन नेटवर्क और अनुभवों को सम्मिलित रूप से पौधों की ‘सोमैटिक मेमोरी’ के रूप में जानते हैं। गौरतलब है कि यह ऐसी स्मृति है, जिसे पौधे अपनी अगली पीढ़ियों के साथ भी एपिजेनेटिक्स की मदद से साझा कर सकते हैं।

मार्टिनेली का कहना है कि यह तंत्र पौधों को पिछली घटनाओं को पहचानने और उस समय परिणामों को याद रखते हुए बहुत जल्दी से प्रतिक्रिया करने की अनुमति देते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार उन्होंने इस अध्ययन में उन प्रमुख जीन, प्रोटीन और छोटे ओलिगोन्यूक्लियोटाइड पर भी प्रकाश डाला है, जिन्होंने पिछले अध्ययनों के दौरान सूखा, ठंड, गर्मी, लवणता और हैवी मेटल्स के साथ रोगजनकों के हमलों जैसे तनावों की स्मृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

शोधकर्ताओं को भरोसा है कि वो आने वाले समय में उन जीनों के बारे में बेहतर समझ पाएंगे जो पौधों द्वारा उनकी अगली पीढ़ी के साथ साझा की जाती है। मार्टिनेली के अनुसार वो विशेष रूप से एपिजेनेटिक एल्फाबेट को डिकोड करने में रुचि रखते हैं, जिससे जलवायु में आते बदलावों के बीच इस विषय में बेहतर समझ विकसित की जा सके।