विज्ञान

सिर्फ पेड़ों के लिए ही जरूरी नहीं कवक,1312 करोड़ टन कार्बन को भी लेते हैं सोख

यह कवक पेड़-पौधों के अस्तित्व को बनाए रखने के साथ कार्बन को नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं

Lalit Maurya

हमारे पैरों के ठीक नीचे जमीन में कवक का एक विशाल नेटवर्क काम करता है, जो पेड़ों को जिन्दा रहने में अहम भूमिका निभाता है। इन पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि यह कवक केवल पेड़-पौधों के लिए ही नहीं बल्कि कार्बन को नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। पता चला है कि मिट्टी में मौजूद यह कवक वैश्विक स्तर पर करीब 1,312 करोड़ टन कार्बन को स्टोर करने में भी मदद करते हैं।

सोखे गए कार्बन की यह मात्रा कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह हर साल जीवाश्म ईंधन द्वारा उत्सर्जित हो रहे कार्बन के करीब 36 फीसदी हिस्से के बराबर है। ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि यह कवक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं।

गौरतलब है कि जमीन के नीचे कवक का विशाल नेटवर्क फैला है। यदि फफूंद का यह नेटवर्क काम न करे तो पेड़ों के लिए जिन्दा रहना संभव नहीं होगा। आमतौर पर आकार में बहुत छोटे यह कवक हमारी नजरों से ओझल रहते हैं, लेकिन यह मिट्टी में हर जगह इंटरनेट के जाल की तरह फैले हुए हैं।

यह न केवल पेड़-पौधों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। साथ ही पेड़-पौधे इनके माध्यम से पानी, नाइट्रोजन, कार्बन और अन्य पोषक तत्वों का लेन देन भी करते हैं। इस तरह से यह कवक पिछले 45 करोड़ वर्षों से धरती पर जीवन का समर्थन कर रहे यह कवक एक और तरह से पेड़-पौधों और पर्यावरण की मदद करते हैं। साथ ही कार्बन को मिट्टी के पारिस्थितिकी तंत्र में ले जाने के लिए वाहक के रूप में काम करते हैं।

इस बारे में किया नया अध्ययन जर्नल करंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने यह समझने के लिए कि पौधे कितना कार्बन इन मायकोरिजल कवकों के माध्यम से भेजते हैं, करीब 200 डेटासेटों की जांच की है।

शोधकर्ताओं के अनुसार जमीन पर पाए जाने वाले करीब 90 फीसदी पौधे इन्हीं कवकों के साथ मिलकर रहते हैं। ऐसे में इस नेटवर्क के माध्यम से बड़ी मात्रा में कार्बन मिट्टी में जाना चाहिए। आपको जानकर हैरानी होगी की जमीन पर मौजूद कार्बन का करीब 75 फीसदी हिस्सा जमीन के नीचे स्टोर है। इसे वहां तक पहुंचाने में मायकोरिजल कवकों की अहम भूमिका है।

क्यों जरूरी हैं मिट्टी में मौजूद यह कवक

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता हेइडी हॉकिन्स का कहना है कि "हमें अंदेशा था कि हमने कार्बन की एक बड़ी मात्रा को अनदेखा कर दिया है।" हालांकि वनों की सुरक्षा और बहाली के प्रयासों ने स्वाभाविक रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने की उनकी क्षमता पर ध्यान आकर्षित किया है।

लेकिन प्रकाश संश्लेषण के दौरान पौधों द्वारा सोखे गए कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी मात्रा का क्या होता है, इस पर बहुत कम विचार किया गया है। उनके मुताबिक इस कार्बन डाइऑक्साइड को बाद में भूमिगत रूप से मायकोरिजल कवक के माध्यम से स्थानांतरित कर दिया जाता है। एक तरफ जहां यह कवक पौधों से कार्बन प्राप्त करते हैं वहीं उन्हें खनिज और अन्य पोषक तत्व देते हैं। ऐसे में यह कवक दो तरह से काम करते हैं।

ऐसे में यह जरूरी है कि इन कवकों के महत्व को समझा जाए। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी चेतावनी दी है कि 2050 तक 90 फीसदी मिट्टी का क्षरण हो सकता है। इसके बावजूद यह कवक अधिकांश रूप से पर्यावरण और संरक्षण से जुड़ी नीतियों से बाहर हैं। संगठन के मुताबिक मिट्टी द्वारा दी जाने वाली उर्वरता और संरचना के बिना प्राकृतिक और उगाए जा रहे फसली पौधे दोनों की उत्पादकता में तेजी से गिरावट आएगी।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर केटी फील्ड का कहना है कि, "कार्बन मॉडलिंग, संरक्षण और बहाली के प्रयासों में मायकोरिजल कवक की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया है।"

बढ़ती कृषि और विकास गतिविधियों के चलते जीवन के लिए अहम मिट्टी के पारिस्थितिक तंत्र तेजी से क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, इसके बावजूद हमें मिट्टी से जुड़े समुदायों को बाधित करने से क्या परिणाम भुगतने होंगें इसके बारे में बहुत सीमित जानकारी है।

उनका कहना है कि जब हम मिट्टी से जुड़ी इन आवश्यक प्रणालियों को नुकसान पहुंचाते हैं तो हम ग्लोबल वार्मिंग से निपटने की अपनी क्षमता से समझौता करते हैं। यह उन पारिस्थितिक तंत्रों के स्वास्थ्य और क्षमता को प्रभावित करता है, जिनपर हम भरोसा करते हैं।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता मर्लिन शेल्ड्रेक का कहना है कि कई इंसानी गतिविधियां भूमिगत पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर देती हैं। ऐसे में विनाश को सीमित करने के साथ-साथ हमें रिसर्च में तेजी लाने की जरूरत है।