विज्ञान

अंतरिक्ष से धरती पर गिरती है हर साल करीब 5,200 टन धूल

Lalit Maurya

अंतरिक्ष हमेशा से ही हमारी जिज्ञासा का केंद्र बिंदु रहा है। यही वजह है कि हम मनुष्य ज्यादा से ज्यादा उसके बारे में जानना चाहते हैं। यही वजह है कि उस पर नित नए शोध होते रहते हैं। एक ऐसे ही शोध में पता चला है कि हर साल पृथ्वी, धूमकेतुओं और अन्य ग्रहों से गिरने वाली हजारों टन धूल का सामना करती है। दूसरी दुनिया से गिरने वाले यह धूल कण जब हमारे वायुमंडल से गुजरते हैं तो टूटते हुए तारों की आभा देते हैं। इनमें से कुछ सूक्ष्म उल्कापिंडों के रूप में धरती पर भी गिरते हैं।

फ्रेंच पोलर इंस्टीट्यूट की मदद से सीएनआरएस, पेरिस-सैकले यूनिवर्सिटि और नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री ने इनपर 20 वर्षों तक शोध किया है जिनके अनुसार हर वर्ष करीब 5,200 टन अंतरिक्ष से जमीन पर गिरती है। इससे जुड़ा शोध जर्नल अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

पृथ्वी पर हमेशा से ही सूक्ष्म उल्कापिंड (माइक्रोमीटराइट्स) गिरते रहे हैं। धूमकेतु या क्षुद्रग्रहों से गिरने वाले दूसरे ग्रहों के कुछ धूलकण मिलीमीटर के दसवें हिस्से से लेकर सौवें हिस्से तक के हो सकते हैं, जो वायुमंडल से होकर पृथ्वी की सतह तक पहुंचे हैं।

इन माइक्रोमीटराइट्स को इकट्ठा करने और उनका विश्लेषण करने के लिए, सीएनआरएस के शोधकर्ता जीन डूप्रैट के नेतृत्व में पिछले दो दशकों में छह अभियान  फ्रेंको-इटैलियन कॉनकॉर्डिया स्टेशन (डोम सी) के पास हुए हैं। जो अंटार्कटिका के मध्य में एडिले लैंड के तट से 1,100 किलोमीटर दूर स्थित है। वैज्ञानिकों ने इस स्थान को इसलिए चुना है क्योंकि यहां बर्फ की कुल मात्रा और जमीनी धूल की मात्रा बिलकुल न के बराबर है। 

कहां से आती है धरती पर यह अंतरिक्षीय धूल

इन अभियानों में पर्याप्त मात्रा में अंतरिक्ष से गिरे कणों को एकत्र किया है, जिनका आकार 30 से 200 माइक्रोमीटर के बीच है। हर साल इस स्थान पर गिरने वाली अंतरिक्षीय धूल, हर साल पृथ्वी पर प्रति वर्ग मीटर गिरने वाले एक्सट्रैटेस्ट्रियल कणों से मेल खाती है। ऐसे में यदि यहां गिरने वाली धूल के आधार पर गणना की जाए तो उसके अनुसार पृथ्वी पर अंतरिक्ष से गिरने वाले कुल धूल कणों की गणना की जा सकती है। जिसकी मात्रा 5,200 टन प्रतिवर्ष आंकी गई है।

अंतरिक्ष और दूसरे ग्रहों से गिरने वाले तत्वों की बात की जाए तो यह धूल के कण अंतरिक्ष से धरती पर गिरने वाले अलौकिक पदार्थों का मुख्य स्रोत है, जबकि इसके विपरीत यदि उल्कापिंडों जैसी बड़ी वस्तुओं को देखें तो वो प्रति वर्ष 10 टन से भी कम होते हैं।

यदि इन सूक्ष्म कणों के स्रोत की बात करें तो सैद्धांतिक अनुमानों के अनुसार इसमें से करीब 80 फीसदी कण धूमकेतुओं से आते हैं जबकि बाकी बचे 20 फीसदी कण क्षुद्रग्रहों से धरती पर गिरते हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जानकारी हमें यह जानने में मदद कर सकती है कि किस तरह इस अंतरिक्षीय धूल ने पृथ्वी पर उसके शुरुवाती समय में पानी और कार्बन के अणुओं को पहुंचाया था।