विज्ञान

सीवर के गड्ढ़ों में निकलने वाली जानलेवा जहरीली गैस का पता लगाएगा यह इलेक्ट्रॉनिक सेंसर

यह सेंसर सीवरों में उत्पन्न होने वाली जहरीली और ज्वलनशील गैस जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड का पता लगा सकता है। सीवर में निकलने वाली जहरीली गैस के चलते कई सफाईकर्मियों की जान गई है।

Dayanidhi

गैस के रिसाव से गंभीर खतरे हो सकते हैं जो श्रमिकों, इमारतों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती है। किसी जगह पर गैस का रिसाव हो रहा है, इस बात का पता लगाने से इन खतरों को कम किया जा सकता है। हाल ही में भारत के कई उद्योगों से गैस रिसाव की घटनाओं में हजारों लोगों ने अपनी जान से हाथ धोएं हैं। दूसरी और संकरे सीवर है, जिनमें यह पता लगाना कठिन है कि वहां गैस का रिसाव हो रहा है। इनको साफ करना बड़ा जोखिम भरा होता है।

भारत में हर वर्ष सीवर की सफाई के दौरान कई सफाई कर्मचारियों की मौत हो जाती है। संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया गया है कि पिछले चार सालों में सीवरों की हाथ (मैन्युअल) से सफाई के दौरान 389 लोगों की मौत हुई है। मौत के लिए सीवर में पहले से मौजूद जहरीली गैसें जिम्मेवार होती है।

सीवर में मौजूद गैसों के बारे में पता लगाने जिसे इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) कहते हैं। आईओटी आपस में कंप्यूटर से जुड़ा एक छोटा यंत्र है जो पता लगाता है और बिना मानव हस्तक्षेप के सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की क्षमता रखता है। 

शोधकर्ताओं की एक टीम जिसमें सीईएनएस के डॉ चन्नबसवेश्वर येलामगाड और किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (केएयूएसटी) से प्रोफेसर खालिद एन. सलामा और उनके सहयोगियों ने सीवर में जहरीली गैसों के बारे में पता लगाने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण विकसित किया है। जिसे इलेक्ट्रॉनिक नाक भी कह सकते है, जो एक तरह का सेंसर है। 

यह सेंसर सीवरों में उत्पन्न होने वाली जहरीली और ज्वलनशील गैस जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड का पता लगा सकता है। हाइड्रोजन सल्फाइड, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों से उत्पन्न होने वाली पहली गैस है, जो अक्सर सीवर और दलदली इलाकों में पायी जाती है।

इस सेंसर को बेंगलूरू स्थित सेंटर फॉर नैनो ऐंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने सऊदी अरब के सहयोग से तैयार किया है। इस सेंसर की मदद से सीवर साफ करने के दौरान अक्सर सफाई कर्मचारियों की होने वाली मोतों को रोकने में मदद मिल सकती है।

इस सेंसर में दो परते होती हैं, सेंसर की ऊपरी परत पर एक अणु जो पॉलीमर बनाने के लिए अन्य समान अणुओं से बंध सकता है, जिसे मोनोमर कहते है। साथ ही इस परत में छेद होते हैं और हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु इसमें पहले से ही मौजूद होते है। 

मोनोमर वे अणु होते हैं, जो अपने जैसे अणुओ की पहचान करके उनसे रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। वहीं सेंसर की निचली परत में मौजूद गैस की गतिशीलता को प्रदर्शित करती है। इस प्रकार यह सेंसर हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) के अणुओं को पहले से केंद्रित कर रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू करता है, जिसके कारण उपकरण के छेदों में बदलाव होता है। 

यह सेंसर अपने आसपास हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) गैस का पता लगा सकता है। प्रायोगिक सीमा में यह अति संवेदनशील सेंसर 100 करोड़ के लगभग 25वें भागों का पता लगा सकता है। मैटेरियल्स होराइजन और एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक मैटेरियल्स नामक पत्रिका में प्रकाशित यह शोध मे बताया गया है कि यह सेंसर उच्च गुणवत्ता और क्षमता के साथ लगभग 8 महीने तक काम कर सकता है। यह जानकारी इंडिया साइंस वायर के द्वारा उपलब्ध कराई गई है।