प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चीन की कामयाबियां लगातार सुर्खियां बटोरती रहती हैं और जब भी ऐसा कुछ होता है तब हैरान होकर दुनिया बस यही पूछती रह जाती है कि चीन ने आखिर ऐसा कैसे कर डाला।
चीन ने डीपसीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडल के तौर पर अब तक का सबसे शानदार कारनामा कर दिखाया है। यह कारनामा हांगझाऊ में एक युवा हेज फंड मैनेजर ने मामूली बजट में ही तैयार कर डाला।
यह स्टार्ट अप महज 2 साल पुराना है। इसने अमेरिका में खलबली मचा दी। एआई ओपन, एनवीडिया और एआई की दुनिया के तमाम दिग्गजों के बाजार मूल्य में देखते ही देखते लगभग एक खरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट आ गई।
डीपसीक के सामने आते ही दुनिया की आंखे फटी की फटी रह गईं। यहां तक कि एक बड़ी बिग टेक कंपनी के मुखिया ने चीनी स्टार्टअप के आर1 (जिसमें आर का संबंध रिजनिंग से है) मॉडल की तारीफ करते हुए इसे “प्रभावशाली” बता दिया। एक अन्य दिग्गज ने इसे अब तक का “सबसे आश्चर्यजनक और शानदार कामयाबी” करार दिया।
सवाल उठता है कि भारत में इसे कैसे देखा जा रहा है? मैं यह जानने को उत्सुक हूं कि हमारे देश में डीपसीक को लेकर क्या प्रतिक्रिया है, खासतौर से इसलिए क्योंकि इसके जरिए एक छोटे खिलाड़ी ने ओपन एआई जैसे टेक जगत के सूरमाओं को कड़ी टक्कर दे डाली है।
सैद्धांतिक तौर पर भारत की सरकार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चीन की काबिलियत दर्शाने वाली खबरों को नजरअंदाज करती रही है और इन मोर्चों पर अपनी तरक्की से जुड़े भ्रामक दावे करती है।
ज्यादा कुरेदे जाने पर सरकार के मंत्री आमतौर पर यही दावे करते हैं कि भारत जल्द ही किसी ना किसी प्रौद्योगिकी में दुनिया का लीडर बन जाएगा। ऐसे छिछले दावों पर मीडिया शायद ही कोई सवाल खड़े करता है।
मिसाल के तौर पर 2022 में देश में बेहद विलंब से 5जी की लॉन्चिंग के दौरान तत्कालीन संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ये दावा किया था कि भारतीय डेवलपर्स के पास 6जी के विकास के लिए आवश्यक अनेक तकनीक मौजूद हैं।
उनका दावा था कि चूंकि इस क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को अनेक पेटेंट हासिल हैं। लिहाजा देश जल्द ही अगली पीढ़ी के नेटवर्क में अगुवा बन जाएगा। ये दावा ऐसे वक्त किया गया था, जब भारत 5जी की दौड़ में बाकी दुनिया को छूने की कोशिशों में लगा था (पढ़ें: इंडिया पेटेंटली वे बिहाइंड ऑन 5जी)।
मोदी सरकार ने चीन जैसे विशाल पड़ोसी से सहयोग करने या उससे सबक लेने में ना के बराबर दिलचस्पी दिखाई है। दरअसल 2017 में चीनी सरहद पर तनातनी के चलते आपसी रिश्तों में स्पष्ट तौर पर शत्रुता का भाव रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा चिंताओं की वजह से भारत ने चीन से जुड़े 300 से ज्यादा ऐप्लिकेशंस और सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय टिकटॉक था। बैन किए जाते समय भारत में इसके करीब 20 करोड़ यूजर्स थे।
ऐसा लगता है कि इतनी कम लागत में हासिल डीपसीक की चौंकाने वाली कामयाबी भारत सरकार के नजरिए में उल्लेखनीय बदलाव लेकर आई है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री वैष्णव ने “शक्तिशाली मॉडल” के रूप में डीपसीक की ना केवल तारीफ की है बल्कि ये भी कहा है कि भारत घरेलू सर्वरों में चीनी एआई प्रयोगशाला के लार्ज लैंग्वेज मॉडल की मेजबानी करेगा।
ये एक असाधारण बदलाव है, खासतौर से इसलिए क्योंकि सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं आगे भी परेशानी का सबब बनी रहेंगी। डीपसीक के नीति वक्तव्य में साफ किया गया है कि उपयोगकर्ताओं से जुटाई गई सूचनाओं को चीन में मौजूद सुरक्षित सर्वरों में भंडारित किया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत इस बार इन चिंताओं को नजरअंदाज करने को क्यों तैयार हो गया है?
डीपसीक का ओपन सोर्स होना एक बड़ा आकर्षण हो सकता है।
इसके मायने ये हैं कि इसका बेस कोड किसी भी डेवलपर द्वारा स्वेच्छा से उपयोग और संशोधित किए जाने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। एआई के क्षेत्र में एक “बुनियादी मॉडल” विकसित करने को लेकर भारत की अपनी महत्वाकांक्षाएं है।
हो सकता है कि डीपसीक की बेहद सस्ती कॉमन कंप्यूटिंग सुविधा से सबक लेकर भारत ऊंची छलांग लगाकर दिग्गजों की श्रेणी में आने की उम्मीद कर रहा हो।
वैष्णव का कहना है कि भारत अपना सुरक्षित और संरक्षित स्वदेशी एआई मॉडल लॉन्च करने को तैयार है, जो किफायती होगा और दुनिया की दिग्गज कंपनियों के मुकाबले आधे से भी कम खर्च में उपलब्ध हो सकेगा। अब सवाल ये है कि ऐसा कब तक संभव हो सकेगा?
मार्च 2024 में मोदी सरकार ने अपने इंडियाएआई मिशन के लिए महज 10,300 करोड़ रुपए व्यय करने की घोषणा की थी। एआई स्टार्टअप्स के वित्तपोषण और एआई से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ये रकम उपयोग किए जाने की बात कही गई थी।
सिलिकॉन वैली में बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा झोंकी जाने वाली रकम के सामने ये ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। हालांकि डीपसीक के इस्तेमाल से इस प्रक्रिया में तेजी आ सकती है।
भारत की घोषणा से अमेरिका में और खलबली मच गई है। इस एलान के हफ्ते भर के भीतर एआई ओपन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सैम ऑल्टमैन आनन-फानन में दिल्ली पहुंच गए।
वो इंडियाएआई मिशन और अन्य कार्यक्रमों के साथ अपनी कंपनी के उत्पादों को जोड़ना चाहते हैं। अपने उत्पादों की बिक्री के लिए जोर लगा रहे ऑल्टमैन के रवैये में अब आमूलचूल बदलाव देखा जा सकता है।
2023 में भारत के दौरे पर आए ऑल्टमैन ने प्रशिक्षण बुनियादी मॉडलों के विकास को लेकर भारत की योजनाओं को सिरे से खारिज करते हुए दो टूक कह दिया था कि “हमारे साथ प्रतिस्पर्धा करना फिजूल है”। हालांकि इस बार वैष्णव से बात करते हुए उन्होंने भारत से एआई में पूरी क्षमता और पूर्ण मॉडल दृष्टिकोण से आगे बढ़ने का अनुरोध किया है।
आखिर ऐसे बदले सुर के पीछे क्या वजह हो सकती है? हम सहज ही ये अनुमान लगा सकते हैं कि डीपसीक के संस्थापक लियांग वेंगफंग के क्रांतिकारी विचारों ने ऑल्टमैन की बुनियादी धारणाओं को हिलाकर रख दिया है। लियांग ने दिखा दिया है कि अपने लक्ष्य को लेकर अगर आपके विचार स्पष्ट हों तो कम संसाधनों (वित्त और हार्डवेयर, दोनों) से भी ज्यादा बड़े परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।
उन्होंने 100,000 ग्राफिक्स प्रॉसेसिंग यूनिट्स (जीपीयू) की बजाए 2000 जीपीयू का उपयोग किया। 32 दशमलव स्थान (डेसिमल प्लेस) से घटाकर 8 करके गणनात्मक जटिलताओं को दूर किया है, जिससे मेमोरी में भी बढ़ोतरी हुई है। साथ ही विशिष्ट हार्डवेयर की बजाए गेमिंग जीपीयू का उपयोग किया है।
ये एक अलग स्तर की और हलचल मचाने वाली टेक्नोलॉजी है, जिसमें कारोबार तैयार करने के लिए लीक से हटकर क्रांतिकारी विचार यानी ओपन सोर्स मौजूद है। निश्चित तौर पर ये ऑल्टमैन की नींद उड़ा देने वाला बदलाव है। वो चैटजीपीटी को खुला रखने के अपने वादे के बावजूद पेटेंट वाला क्लोज सोर्स मॉडल अपना रहे हैं। हालांकि वो ये कह रहे हैं कि “नया प्रतिस्पर्धी पाने से नई जान आ गई है” लेकिन इस उथल-पुथल को लेकर वो सहज दिखाई नहीं देते हैं।
भारत डीपसीक का उपयोग करते हुए अपने प्लेटफॉर्म के विकास से लाभान्वित हो सकता है, लेकिन उसे लियांग के बुनियादी विचार को ध्यान में रखना होगा। वो जोर देकर कहते हैं कि नवाचार सिर्फ कारोबार से ही संचालित नहीं होता बल्कि इसके लिए जिज्ञासा और निर्माण की इच्छा की भी आवश्यकता होती है। वो सचेत करते हुए कहते हैं कि महज नकल उतारने और मौलिकता में बड़ा फर्क होता है।
पिछले दशक में सरकार ने इस खूबी को बढ़ावा नहीं दिया है। सरकार ने उच्च शिक्षा संस्थानों में दखलंदाजी की है। उसने श्रेष्ठ भारत के भगवा विचारों से लबरेज होकर भारतीय ज्ञान प्रणाली थोपकर इन संस्थानों को नया आकार देने की कोशिश की है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भी इन सबसे अछूते नहीं रहे हैं। वो भी पुनर्जन्म और शरीर से बाहर (अंतर्यात्रा) के अनुभवों जैसे विषयों की शिक्षा दे रहे हैं। ऐसे गूढ़ विषयों में उलझे आईआईटी से लियांग और उनके समान किरदार पैदा करने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है, जो चीन को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों पर पहुंचाते जा रहे हैं।
डीपसीक में भारत के लिए महत्वपूर्ण सबक छिपे हैं-वो ये कि उसे भारी-भरकम कोष या बुनियादी ढांचे की नहीं, बल्कि नए-नए विचारों की दरकार है।