विज्ञान

जीवन भर में संजोए म्यूटेशन्स को अपने बच्चों को दे सकते हैं प्रवाल

यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत मिले है कि कोरल अपने जीवनकाल में आए शारीरिक म्यूटेशन्स को अपने बच्चों में दे सकते हैं

Lalit Maurya

क्या कोई जीव अपने डीएनए सीक्वेंस में जीवनभर के दौरान आए बदलावों को अपने बच्चों में दे सकता है। यह एक ऐसी पहले है जिसका जवाब कई दशकों से वैज्ञानिक खोज रहे हैं, लेकिन द पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि ऐसा मुमकिन है।

यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत मिले है कि कोरल अपने जीवनकाल में आए शारीरिक म्यूटेशन्स को अपने बच्चों में दे सकते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो यह म्युटेशन उनके डीएनए सीक्वेंस में आने वाले परिवर्तनों से जुड़े हैं, जिनसे उनके शरीर में बदलाव आ जाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार जो नतीजे सामने आए हैं वो आनुवंशिक विविधता की पीढ़ी के लिए एक संभावित नए मार्ग को दर्शाते हैं, जो विकास के लिए होने वाले अनुकूलन में मददगार हो सकते हैं।

सरल शब्दों में कहें तो इस तरह के म्युटेशन जलवायु में आते बदलावों के कारण संकट में पड़े प्रवालों के विकास में मददगार हो सकते हैं और उन्हें पर्यावरण के बदलते परिवेश के प्रति कहीं ज्यादा अनुकूलन करने में मददगार हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे 31 अगस्त 2022 को जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में पेन स्टेट यूनिवर्सिटी की जीवविज्ञानी और शोध से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता इलियाना बॉम्स का कहना है कि जीवों के विकास के लिए उनके शरीर में पैदा होने वाले विशिष्ट लक्षणों का पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बच्चों को दिया जाना जरुरी है। लेकिन अधिकांश जीवों में एक नया जेनेटिक म्युटेशन केवल तभी पीढ़ी दर पीढ़ी विकास में योगदान दे सकता है जब वो जर्मलाइन या प्रजनन कोशिका में होता है।

जीवों के विकास में मददगार होता है जेनेटिक म्युटेशन

उदाहरण के लिए अंडे या शुक्राणु कोशिका में होने वाले बदलावों के जरिए ही वो म्युटेशन अगली पीढ़ी में जा सकता है। ऐसे में शरीर के बाकी हिस्सों में होने वाले सोमेटिक म्युटेशन को क्रमिक रूप से अप्रासंगिक माना जाता है क्योंकि इस तरह के म्युटेशन माता-पिता के कारण बच्चों में नहीं होते हैं। लेकिन अध्ययन से पता चला है कि कोरल्स इस तरह की बाधा को पार करने के लिए उसके चारों ओर एक रास्ता ढूंढ लेते हैं जो उन्हें विकास के इस नियम को तोड़ने की अनुमति देता है।

देखा जाए तो डार्विन के समय से जीवों के विकास के बारे में हमारी समझ कहीं ज्यादा विस्तृत हो गई है। अब हम जानते हैं कि किसी जीव में मौजूद विशिष्ट लक्षण उसके डीएनए सीक्वेंस पर काफी हद तक निर्भर होते हैं।

आबादी के किसी एक व्यक्ति में ही डीएनए सीक्वेंस में भिन्नता पाई जा सकती है जो उस व्यक्ति के शरीर के आकार जैसे लक्षणों में विभिन्नता पैदा कर सकती है। हालांकि शायद ही कभी कोई ऐसा नया जेनेटिक म्युटेशन होता है जो किसी व्यक्ति को ऐसा प्रजनन लाभ देता है। विकास केवल तभी आगे बढ़ सकता है जब व्यक्ति अपनी संतानों को इस म्युटेशन को दे पाता है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी एक अन्य शोधकर्ता केट वास्केज कुन्टज ने जानकारी दी है कि अधिकांश जानवरों में, प्रजनन कोशिकाओं को विकास की शुरुआत में ही शरीर की अन्य कोशिकाओं से अलग कर दिया जाता है। ऐसे में केवल वो जेनेटिक म्युटेशन जो केवल प्रजनन कोशिकाओं में होते हैं, उनमें ही प्रजातियों के विकास में योगदान करने की क्षमता होती है। हालांकि पता चला है कि जलवायु में आते तीव्र बदलाव कोशिकाओं के एक विशेष समूह में इन दुर्लभ म्युटेशन की धीमी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।

जलवायु में आते बदलावों के चलते संकट में हैं 94 फीसदी कोरल्स

हालांकि उनके अनुसार कोरल जैसे कुछ जीवों में प्रजनन कोशिकाओं के अन्य सभी कोशिकाओं से अलग होने की बाद भी संभव है कि विकास हो सकता है, जिससे होने वाले जेनेटिक म्युटेशन को माता-पिता से बच्चों में जाने का मार्ग मिल सकता है। देखा जाए तो यह म्युटेशन आनुवंशिक भिन्नता को बढ़ा सकता है और  संभावित रूप से लाभकारी म्युटेशन के लिए 'प्री-स्क्रीनिंग' प्रणाली के रूप में काम कर सकता है।

शोध के अनुसार कोरल्स के पास एक अतिरिक्त उपकरण है जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ उनके अनुकूलन को बढ़ाने में मददगार हो सकता है। हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंसेज जर्नल (पनास) में छपे एक शोध से पता चला है कि यदि वैश्विक उत्सर्जन में होती तीव्र वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो अगले 28 वर्षों में दुनिया की करीब 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी|

गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही प्रवाल भित्तियों के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। समुद्र में आती हीटवेव के परिणाम पहले ही बड़े स्तर पर कोरल ब्लीचिंग की घटना के रूप में सामने आने लगे हैं| वैज्ञानिकों का कहना है कि समय के साथ यह घटनाएं कहीं ज्यादा गंभीर और तीव्र होती जा रही हैं जो बड़े पैमाने पर प्रवाल भित्तियों के मरने का कारण बन रही हैं।