विज्ञान

‘टाइटन’ पर भी हो सकती है जीवन की सम्भावना, काफी कुछ पृथ्वी से मिलती है इसकी संरचना

शनि का यह चंद्रमा टाइटन अंतरिक्ष से देखने पर काफी हद तक पृथ्वी जैसा ही दिखता है, जहां नदियां, झीले, कैनियन, टीले और बारिश से भरे समुद्र हैं। साथ ही यहां घना वातावरण भी मौजूद है

Lalit Maurya

कई दशकों से वैज्ञानिक इस बात की जांच करने में लगे हैं कि क्या हमारी पृथ्वी के अलावा भी ऐसा कोई ग्रह है, जहां जीवन की सम्भावना हो सकती है। भले ही यह बात आपको काल्पनिक या परियों की कहानी जैसी लगे पर हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि हमारे सौरमंडल के एक ग्रह शनि (सैटर्न) का चन्द्रमा ‘टाइटन’ बहुत हद तक हमारी धरती जैसा ही है।

इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने टाइटन के भूदृश्य निर्माण का एक मॉडल तैयार किया है, जिसमें पृथ्वी जैसी ही परग्रही दुनिया का पता चला है। वैज्ञानिकों के अनुसार शनि का यह चंद्रमा ‘टाइटन’ अंतरिक्ष से देखने पर काफी हद तक पृथ्वी जैसा ही दिखता है, जहां नदियां, झीले, कैनियन, रेत के टीले और समुद्र हैं, जो बारिश के पानी से भरे हैं। इन सबको भी मौसम संचालित करता है। अनुमान है कि टाइटन पर भी एक घना वातावरण मौजूद है जो बारिश और मौसम जैसी घटनाओं को नियंत्रित करता है।

गौरतलब है कि 'टाइटन' शनि ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है। हमारे सौरमंडल का यह एकमात्र ऐसा चन्द्रमा है जो अपने घने वातावरण के लिए जाना जाता है। इतना ही नहीं यह पृथ्वी के अलावा अंतरिक्ष में एकमात्र ऐसा ज्ञात ऑब्जेक्ट है जिस की सतह पर स्थिर रूप में मौजूद तरल के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं।

हालांकि देखने में ये परिदृश्य (नदियां, झीले, कैनियन, रेत के टीले और समुद्र) बहुत हद तक हमारी धरती जैसे ही लगते हैं, लेकिन वो ऐसे मैटेरियल से बने हैं जो निस्संदेह हमारी धरती से अलग हैं। इसकी बर्फीली सतह पर तरल रूप में मीथेन की नदियां बहती हैं और नाइट्रोजन युक्त हवाएं हाइड्रोकार्बन से बने रेत के टीलों का निर्माण करती हैं।

देखा जाए तो हमारी धरती की तुलना में टाइटन पर इस मैटेरियल की उपस्थिति, जिनके यांत्रिक गुण हमारे सौर मंडल में ज्ञात अन्य तलछट पिंडों को बनाने वाले सिलिकेट-आधारित पदार्थों से काफी भिन्न हैं, टाइटन के परिदृश्य निर्माण को कहीं ज्यादा गूढ़ बनाते हैं।

टाइटन पर कैसे निर्मित हो रहे हैं रेत, टीले और मैदान

ऐसे में टाइटन पर मौजूद यह हाइड्रोकार्बन-आधारित पदार्थ कैसे रेत में बदलते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहां कितनी बार हवाएं चलती हैं जबकि जमीन पर मौजूद रेत के लिए नदियों का प्रवाह जिम्मेवार है। इस बारे में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के भूविज्ञानी मैथ्यू लपोत्रे और उनके सहयोगियों ने मॉडल की मदद से स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि कैसे टाइटन पर टीले, मैदान और अनजाने इलाकों का निर्माण हुआ है।  

लम्बे समय से वैज्ञानिक टाइटन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि यह पृथ्वी के बाद हमारे सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ऑब्जेक्ट है जहां पृथ्वी की तरह ही मौसम और तरल का मौसमी प्रवाह होता है। वैज्ञानिकों द्वारा जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस नए मॉडल से पता चला है कि कैसे टाइटन की सतह पर ऋतु चक्र, रेत के कणों की गति को बढ़ाते हैं। 

वैज्ञानिकों के मुताबिक टाइटन पर मौजूद ठोस कण या तलछट, नरम हाइड्रोकार्बन के कणों से बने हैं, जिनके धूल में बदलने की सम्भावना कहीं ज्यादा है। फिर भी, टाइटन के भूमध्यरेखीय टीले कई सैकड़ों या हजारों वर्षों से सक्रिय हैं, जो स्पष्ट करता है कि इन अक्षांशों पर कोई न कोई ऐसा तंत्र जरूर है जो इन रेत के आकार के कणों का लगातार निर्माण कर रहा है।

वैज्ञानिकों ने उस परिकल्पना का अनुमान लगाया है, जिसके अनुसार जब यह कण हवा या मीथेन की नदी के जरिए प्रवाहित होते हैं और उनका जमाव होता है तो वो घर्षण की वजह से रेत कणों में बदल सकते हैं, जिनका आकर संतुलित होता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक उनका यह मॉडल इस बात की व्याख्या कर सकता है कि कैसे तलछट का मौसमी प्रवाह टाइटन पर रेत का निर्माण कर सकता है। साथ ही इसकी मदद से टाइटन पर भूदृश्यों के वितरण को भी समझा जा सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि कुल मिलकर उनके निष्कर्ष टाइटन पर वैश्विक तलछट मार्गों की परिकल्पना का समर्थन करते हैं, जो मौसम द्वारा संचालित होते हैं।  इसके साथ ही इनके निर्माण में नदियों और हवाओं द्वारा लाए जा रहे कार्बनिक रेत कणों के जमाव और घर्षण की भी बड़ी भूमिका है।

इस बारे में स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ अर्थ, एनर्जी एंड एनवायरनमेंटल साइंसेज में भूवैज्ञानिक और शोध से जुड़े शोधकर्ता मैथ्यू जी ए लपोत्रे का कहना है कि “हमारा मॉडल एक एकीकृत ढांचा तैयार करता है जो यह समझने में मदद कर सकता है कि तलछट से जुड़े यह सभी वातावरण कैसे एक साथ काम करते हैं।

“उनके अनुसार ऐसे में यदि हम इस पहेली के सभी हिस्सों को सुलझा लेते हैं तो हम इन तलछट प्रक्रियाओं द्वारा पीछे छोड़ी भू-आकृतियों की मदद से टाइटन की जलवायु या भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में बहुत कुछ समझ सकते हैं। साथ ही यह संरचनाएं कैसे टाइटन पर जीवन की संभावनाओं को कैसे प्रभावित कर सकती हैं इस बारे में जान सकते हैं।