पोलिश वैज्ञानिकों ने सोलनम जीन वाले पौधों में ऐसे बायोएक्टिव यौगिकों की पहचान की है जिनकी मदद से कैंसर की नई दवाएं तैयार की जा सकती हैं। गौरतलब है कि आलू (सोलनम ट्यूबरोसम), टमाटर (सोलनम लाइकोपर्सिकम) और बैंगन (सोलानम मेलोन्गेना) जैसे पौधे जीन सोलनम का हिस्सा हैं।
आज स्वास्थ्य जगत के सामने कैंसर एक बड़ी समस्या है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसका परिचित इस बीमारी से न जूझ रहा हो। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को देखें तो सिर्फ 2020 में ही कैंसर के करीब दो करोड़ नए मामले सामने आए थे जबकि करीब एक करोड़ लोगों की जान इस बीमारी ने ली थी। मतलब कि दुनिया में हर छठी मौत के लिए यह बीमारी ही जिम्मेवार है।
हालांकि देखा जाए तो समय के साथ इसके उपचार में सुधार हो रहे हैं, लेकिन फिर भी इसके उपचार के जो मौजूदा ईलाज मौजूद हैं वो स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं या उनके शरीर पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं। देखा जाए तो कैंसर को ध्यान में रखकर खोजी जा रही दवाओं में, पारंपरिक चिकित्सा में भी संभावित समाधान मौजूद हैं।
ऐसे ही एक संभावित उपचार की खोज मैग्डालेना विंकील के नेतृत्व में एडम मिकीविक्ज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है। उन्होंने ग्लाइको अल्कलॉइड नामक बायोएक्टिव यौगिकों की समीक्षा की है, जो आमतौर पर आलू, टमाटर जैसी सब्जियों में पाया जाता है। पता चला है कि इस यौगिकों में कैंसर का इलाज करने की क्षमता है।
विंकील का कहना है कि, “दुनिया भर के वैज्ञानिक अभी भी ऐसी दवाओं की खोज कर रहे हैं जो कैंसर सेल्स को खत्म कर सकती हैं लेकिन साथ ही वो स्वस्थ कोशिकाओं के लिए भी सुरक्षित होंगी।“ हालांकि उनके अनुसार चिकित्सा क्षेत्र में हुई प्रगति और आधुनिक तकनीकों में हुए विकास के बावजूद भी यह आसान नहीं है। यही कारण है कि इसके लिए उन औषधीय पौधों की भी मदद ली जा सकती है जिनका विभिन्न बीमारियों के उपचार में वर्षों से सफलता पूर्वक उपयोग किया गया है। उनका मानना है कि उनके गुणों की फिर से जांच करने के साथ उनकी क्षमता को फिर से तलाशने की जरूरत है।
जहर से दवा का सफर
शोधकर्तों ने इस अध्ययन में पांच ग्लाइको अल्कलॉइड यौगिकों- सोलनिन, चाकोनीन, सोलासोनाइन, सोलामार्गिन और टोमैटिन का अध्ययन किया है, जो पौधों के सोलानेसी परिवार से प्राप्त होने वाले कच्चे अर्क में पाए जाते हैं, जिन्हें अक्सर नाइटशेड भी कहा जाता है।
कई लोकप्रिय खाद्य पदार्थ इस परिवार का हिस्सा हैं और कई पौधे ऐसे हैं जो जहरीले होते हैं। यह अल्कलॉइड, पौधों को चरने वाले जानवरों से बचाव के लिए पैदा हुए हैं। लेकिन सही खुराक जहर को भी दवा में बदल सकती है। ऐसे में एक बार यदि वैज्ञानिकों को अल्कलॉइड की एक सुरक्षित खुराक मिल जाए तो इनकी मदद से कई रोगों के लिए दवाएं बनाई जा सकती हैं।
रिसर्च से पता चला है कि ग्लाइको अल्कलॉइड विशेष रूप से कैंसर कोशिका की वृद्धि को रोक सकता है और कैंसर कोशिका को खत्म करने में मददगार हो सकता है। देखा जाए तो यह कैंसर को नियंत्रित करने और रोगी की दशा में सुधार के लिए बहुत मायने रखता है। ऐसे में भविष्य में इनकी मदद से उपचार में उनके संभावनाएं मौजूद हैं।
शुरुवाती अध्ययनों में भी इस बात के प्रमाण मिले हैं कि ग्लाइको अल्कलॉइड विषाक्त नहीं होते और न ही डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं। न ही इनकी वह से भविष्य में ट्यूमर पैदा होने का खतरा होता है। हालांकि यह प्रजनन प्रणाली को थोड़ा असर डाल सकते हैं।
इनके बारे में विंकील का कहना है कि “भले ही यह यौगिक माजूदा एंटीकैंसर दवाओं की जगह नहीं ले सकते लेकिन फिर भी यह उन दवाओं के साथ मिलकर इस बीमारी के उपचार में सुधार जरूर कर सकते हैं। यह सही है कि इनके बारे में सभी के पास बहुत सारे सवाल हैं, लेकिन ग्लाइको अल्कलॉइड के गुणों के बारे में गहराई से जांच के बिना उनके जवाब नहीं दिए जा सकते।“
कैंसर सेल्स को रोकने में कारगर हैं कई ग्लाइको अल्कलॉइड
इनके बारे में ज्यादा जानने के लिए वैज्ञानिक विट्रो और जानवरों पर इनके प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं, जिससे यह पता चल सके कि कौन से ग्लाइको अल्कलॉइड इंसानों के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं और उनकी इंसानों पर जांच की जा सकती है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आलू से मिलने वाले ग्लाइको अल्कलॉइड जैसे की सोलनिन और चाकोनीन पर प्रकाश डाला है। हालांकि आलू में इनकी मात्रा इनको उगाते समय प्रकाश और तापमान पर निर्भर करती है।
पता चला है कि सोलेनिन कुछ संभावित कार्सिनोजेनिक केमिकल्स को शरीर में कार्सिनोजेन्स में बदलने के साथ मेटास्टेसिस को रोक सकता है। एक विशेष प्रकार की ल्यूकेमिया कोशिकाओं पर किए अध्ययनों से यह भी पता चला है कि एक निर्धारित खुराक पर सोलनिन उन्हें खत्म कर देता है। वहीं सेप्सिस का इलाज करने की क्षमता के साथ चाकोनीन में सूजन-रोधी गुण भी होते हैं।
इसी तरह एक यौगिक सोलामार्गिन है जो ज्यादातर बैंगन में पाया जाता है, वो यकृत कैंसर से जुड़ी कोशिकाओं को बढ़ने से रोक सकता है। सोलामार्गिन उन कई ग्लाइको अल्कलॉइड में से एक है, जो पूरक उपचार के रूप में महत्वपूर्ण हो सकता है। इसकी वजह यह है कि यह यौगिक कैंसर के उन स्टेम सेल्स को अपना निशाना बनाता है, जो कैंसर की दवा के प्रतिरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसी तरह नाइटशेड परिवार के कई पौधों में पाए जाने वाले सोलासोनाइन के बारे में भी यह माना जाता है कि यह इसी तरह कैंसर स्टेम सेल्स पर हमला करते हैं। यहां तक कि सब्जियों के रूप में इस्तेमाल होना वाला टमाटर भी भविष्य में ईलाज की क्षमता रखता है। इनमें मिलने वाला टोमैटिन शरीर में सेल्स के चक्र को नियंत्रित करता है, जिससे वो कैंसर की कोशिकाओं को खत्म कर सके।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह भी माना है कि इन यौगिकों की विट्रो क्षमता को व्यावहारिक चिकित्सा में कैसे बदला जा सकता है, इसके लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है। उनके अनुसार ग्लाइको अल्कलॉइड इन कैंसर सेल्स पर कैसे काम करता है इस तंत्र को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।
साथ ही कैंसर मरीज इन सब्जियों के औषधीय गुणों से लाभान्वित हो सकें इससे पहले स्वास्थ्य पर इनके नकारात्मक प्रभावों को भी बेहतर तरीके से समझना जरूरी है। इस बारे में किया अध्ययन जर्नल फ्रंटियर्स इन फार्माकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।