विज्ञान

कब होगी मृत्यु, क्या आंखों को देखकर चल सकता है पता?

वैज्ञानिकों के अनुसार मृत्यु का खतरा, रेटिना की जैविक (बायोलॉजिकल) उम्र और व्यक्ति की वास्तविक उम्र के बीच के अंतर से जुड़ा है, जिसके आधार पर मृत्यु की भविष्यवाणी की जा सकती है

Lalit Maurya

कहते हैं कि इंसान की आंखें एक आईने की तरह होती है, जो बहुत कुछ बता सकती हैं। इनसे दुख, खुशी, गुस्सा, प्यार जैसे बहुत सारे भावों का पता चल सकता है। पर क्या आप जानते हैं कि आंखों को देखकर इस बात का भी पता चल सकता है कि इंसान की मौत कब होगी। बात हैरान कर देने वाली जरूर है, पर सच भी है।

हाल ही में शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एक नए एल्गोरिदम का विकास किया है, जिसकी मदद से किसी व्यक्ति के रेटिना की स्कैनिंग के आधार पर उसकी मृत्यु की भविष्यवाणी की जा सकती है। गौरतलब है कि आंख के पिछले पर्दे को रेटिना कहते हैं। यह आंखों में पाई जाने वाली प्रकाश के प्रति संवेदी कोशिकाओं की एक परत होती है। जब प्रकाश इस परत तक पहुंचता है तो उसकी मदद से हम देखने में सक्षम हो पाते हैं। 

इस बारे में किया गया शोध ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। जिसमें वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रेटिना के अध्ययन से इंसान के स्वास्थ्य के बारे में गहराई से जाना जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मृत्यु का खतरा, रेटिना की जैविक (बायोलॉजिकल) उम्र और व्यक्ति की उम्र के बीच के अंतर से जुड़ा है, जिसके आधार पर इसका अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि इस 'रेटिनल एज गैप' को एक स्क्रीनिंग टूल की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

अध्ययन बताते हैं कि रेटिना में सूक्ष्म वाहिकाओं का एक पूरा नेटवर्क होता है, जो स्वास्थ्य में आते बदलावों के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। जिसकी मदद से शरीर में रक्त प्रवाह और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह सही है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है उसके साथ ही बीमारियों और मृत्यु का खतरा भी बढ़ता जाता है।

हालांकि यह भी देखा गया है कि समान आयु के लोगों में यह खतरा अलग-अलग हो सकता है, क्योंकि हर व्यक्ति की शारीरिक बनावट एक सी नहीं होती। उनके अनुसार इसमें जैविक उम्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जो वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में स्वास्थ्य के बारे में कहीं ज्यादा सटीक सुराग दे सकती है।  

गौरतलब है कि जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है या बीमारियां हावी होने लगती हैं उसके चलते जीवों के डीएनए में रासायनिक बदलाव होने लगते हैं। देखा जाए तो हमारे सेल्स में आने वाला यह बदलाव हमारी जैविक उम्र से जुड़ा है। 

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने 

इससे पहले भी शोधकर्ताओं ने जैविक उम्र का पता लगाने के लिए उत्तक, कोशिकाओं और इमेजिंग-आधारित संकेतकों की मदद ली है, लेकिन यह तकनीकें या तो महंगी हैं और समय लेने वाली है। साथ ही इनके साथ नैतिकता जैसे मुद्दे भी जुड़े हैं। ऐसे में इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं ने डीप लर्निंग तकनीकों की मदद ली है।

उनके अनुसार इसकी मदद से रेटिना की उम्र का सटीकता से पता लगाया जा सकता है। साथ ही यह भी जानकारी दी है कि रेटिना और इंसान की वास्तविक उम्र के बीच जो अंतर (रेटिनल एज गैप) है उसकी मदद से मृत्यु के बढ़ते जोखिम का पता किया जा सकता है।  

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 40 से 69 साल की उम्र के 46,969 वयस्कों के रेटिना की 80,169 तस्वीरों का विश्लेषण किया है, जोकि यूके के बायोबैंक से ली गई थी। इनमें से 11,052 लोगों की जो दाहिने हाथ की आंखों के रेटिना की 19,200 तस्वीरें थी वो अपेक्षाकृत बेहतर स्वस्थ वाले लोगों की थी। इनके डीप लर्निग और एआइ आधारित विश्लेषण से पता चला कि रेटिना की उम्र और व्यक्ति की सही आयु के बीच एक मजबूत सम्बन्ध होता है। इसकी सटीकता करीब साढ़े तीन वर्ष थी।

इसमें से बाकी 35,917 लोगों के रेटिनल एज गैप का अगले 11 वर्षों तक अध्ययन किया गया था। इस अवधि के दौरान इनमें से 1871 लोगों की मृत्यु हो गई थी। जिनमें से 17 फीसदी की मृत्यु ह्रदय रोग, 54.5 फीसदी की कैंसर से और बाकी 28.5 फीसदी की मनोभ्रंश सहित अन्य कारणों के कारण मृत्यु हुई थी।

विश्लेषण से पता चला कि 67 फीसदी तक मृत्यु के ज्यादा खतरे और रेटिनल एज गैप के बीच सम्बन्ध था, जबकि कैंसर और अन्य कार्डियोवस्कुलर बीमारियों के मामले में यह जोखिम अलग-अलग था। इतना ही नहीं शोध से यह भी पता चला है कि रेटिनल एज गैप में हर एक वर्ष की वृद्धि, किसी भी कारण से मृत्यु के जोखिम में 2 फीसदी की वृद्धि के साथ जुड़ी थी।

हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि ऐसा क्यों होता है इस बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन इससे इतना तो स्पष्ट हो गया है कि रेटिनल एज गैप, मृत्यु के बढ़ते जोखिम की भविष्यवाणी में मददगार हो सकती है। निष्कर्ष से पता चला है कि रेटिना की उम्र, बढ़ती उम्र का एक महत्वपूर्ण बायोमार्कर हो सकती है, जिसकी मदद से बीमारियों की पहचान आसान हो सकती है।