विज्ञान

बीस साल की बातचीत के बाद बाध्यकारी पर्यावरण संधि के अंतर्गत आएगा पृथ्वी की सतह का आधा हिस्सा

संयुक्त राष्ट्र में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और उसके स्थायी रूप से उपयोग के लिए एक दस्तावेज तैयार करने पर बातचीत चल रही है

DTE Staff

संयुक्त राष्ट्र एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज पर बातचीत कर रहा है, जिससे कि समुद्री क्षेत्रों को राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर सामान्य वैश्विक प्रबंधन और निगरानी के तहत लाया जा सके।

न्यूयार्क में सात से 18 मार्च के बीच चल रहे चौथे अंतर-सरकारी सम्मेलन यानी आईजीसी-4 में इस पर चर्चा चल रही है। इस पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अंतर्गत आने वाले समुद्री कानून के तहत विचार किया जा रहा है।

यह विशेष बैठक राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग पर एक दस्तावेज के मसौदे को तैयार करने के लिए की जा रही है, जिसे बीबीएनजे भी कहा जाता है।

इस बैठक को 2020 में होना था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे आगे बढ़ा दिया गया था।

बीबीएनजे विशेष आर्थिक क्षेत्रों या देशों के राष्ट्रीय जल क्षेत्र से परे, ऊंचे समुद्रों को शामिल करता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंसर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के  मुताबिक, इन क्षेत्रों में ‘पृथ्वी की सतह का लगभग आधा हिस्सा’ है। इन क्षेत्रों को शायद ही नियंत्रित किया जाता है और इन्हें इनकी इसकी जैव विविधता के लिए कम समझा या तलाशा जाता है - इनमें से केवल एक फीसदी क्षेत्र ही संरक्षण में हैं।

एक वैश्विक समझौते पर सहमत होने के लिए सैकड़ों देशों को एक साथ लाना - और इस प्रकार इसे पृथ्वी के सबसे बड़े सामान्य संपत्ति संसाधनों में से एक बनाना और साथ ही एक न्यायसंगत उपयोग संधि को लागू करना, एक विवादास्पद मामला है।

हालांकि ऊंचे समुद्र काफी जैव-विविधता वाले हैं और बिना इसका असर जाने हुए उनका शोषण किया जाता रहा है। जबकि ऊंचे समुद्रों के सतही जल के वैज्ञानिक अन्वेषण हैं, गहरे समुद्र यानी सतह के 200 मीटर से नीचे का अध्ययन शायद ही कभी किया गया हो।

गहरे समुद्र तल, जिसे सबसे कठोर आवास माना जाता है, के विलुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो रही है। क्वीन्स यूनिवर्सिटी, यूके में डॉक्टरेट के उम्मीदवार एलिन ए थॉमस, हाइड्रोथर्मल छिद्रों में प्रजातियों की स्थिति पर शोध कर रहे हैं।

वह कहते हैं कि इस पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन किया जाना बाकी है जबकि इसमें पाई जाने वाली और प्रजातियों की पूरी तरह से पहचान की जा चुकी है।

उनके मुताबिक, ‘हमारे शोध में  मोलस्कस (समुद्र में पाया जाने वाला एक जीव) की जिन 184 प्रजातियों का मूल्यांकन किया गया, उनमें से 62 फीसद को खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, 39 गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं, 32 लुप्तप्राय हैं और 43 अतिसंवेदनशील हैं।’

थॉमस कहते हैं, हिंद महासागर के छिद्रों में, 100 फीसदी मोलस्क पहले से ही गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध हैं। यह अध्ययन उन्हें विलुप्त होने से बचाने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। फिर भी, जमैका स्थित अंतर-सरकारी निकाय - अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण, गहरे समुद्र में खनन अनुबंधों की इजाजत दे रहा है।

बीबीजेएन के इस नए समझौते पर पिछले बीस सालों से बातचीत जारी है। उम्मीद है कि फिलहाल जो बैठक चल रही है, उसमें हस्ताक्षर के लिए मसौदा को ंअतिम रूप दे दिया जाएगा। बातचीत के समझौते में पांच पहलू हैं जिन पर एक साथ चर्चा की गई है।

ये हैं - उच्च समुद्रों पर की गई गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, समुद्री आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण और क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, साथ ही संस्थागत संरचना और वित्तीय सहायता जैसे महत्वूपर्ण मुद्दे।

16 मार्च को आईजीसी-4 ने राष्ट्रीय नियंत्रण से परे उच्च समुद्रों पर ऐसी गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करने पर चर्चा और बातचीत शुरू की।

यह चर्चा, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से संबंधित चार तत्वों के इर्द-गिर्द है। ये हैं - पारिस्थितिकी तंत्र की सीमाएं और मानदंड, पारिस्थितिक या जैविक रूप से महत्वपूर्ण या कमजोर के रूप में पहचाने जाने वाले समुद्री क्षेत्रों के लिए अलग पर्यावरणीय प्रभाव आकलन विचारों की आवश्यकता, सार्वजनिक अधिसूचना व परामर्श और निर्णय लेना।’

17 मार्च की चर्चा के दौरान बहस इस बिंदु के इर्द-गिर्द रही कि उच्च समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव डालने वाली गतिविधियों के लिए कौन जिम्मेदार होगा और कौन इस बारे में अंतिम फैसला लेगा। इसके अलावा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के निर्देशन के लिए किस तरह की गतिविधि को विचार करने लायक माना जाएगा?

दरअसल, प्रतिनिधियों ने यह बहस की कि क्या ‘उच्च समुद्रों पर कुछ हानिरहित कारक मामूली या क्षणिक प्रभाव पैदा करते हैं, जो पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को उत्प्रेरित करने के लिए पर्याप्त महत्वपूर्ण हैं?’ यह फैसला पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए ‘सीमारेखा’ के आकलन या फैसला लेने से जुड़ा हुआ है।

कई प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि इस फैसले के लिए हर देश को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए जबकि देशों के सम्मेलन का समर्थन करने वालों ने कहा कि, उन्हें ऐसे फैसले लेने और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के लिए पूछने का अधिकार है। कुछ अन्य ने भी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र वैज्ञानिक निकाय स्थापित करने का सुझाव दिया। जल्द ही इस पर चीजों के और स्पष्ट होने की उम्मीद हैं।