विज्ञान

जमीन धंसने के चलते भारत सहित दुनिया के 63.5 करोड़ लोगों पर मंडरा रहा है खतरा

भूजल के अनियंत्रित दोहन के चलते जिस तरह से जमीन धंस रही है उसका खामियाजा दुनिया की 19 फीसदी आबादी को झेलना होगा| इसमें भारत, चीन, ईरान और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं

Lalit Maurya

आज धरती पर मानव का दबाव जिस तरह बढ़ता जा रहा है, जिसका खामियाजा खुद उसे भी भुगतना होगा। हाल ही में छपे एक नए शोध से पता चल रहा है कि जिस तरह इंसान भूजल का दोहन कर रहा है, उसके चलते धरती की सतह धंसने लगी है जिसका परिणाम दुनिया के 63.5 करोड़ लोगों को भुगतना होगा। वहीं दूसरी तरह जिस तरह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है उससे तटवर्ती इलाकों पर बाढ़ का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।

जर्नल साइंस में छपे इस शोध के अनुसार इसके चलते 2040 तक दुनिया की 19 फीसदी आबादी पर इसका असर होगा। इसमें भारत, चीन, ईरान और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। इसके चलते विश्व के 21 फीसदी जीडीपी पर असर पड़ेगा।

अनुमान है कि जिस तरह से कृषि पर दबाव बढ़ रहा है और इंसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से भूजल का दोहन कर रहा है, उसका असर धरती की सतह पर पड़ रहा है। शोध के अनुसार इसके चलते दुनियाभर में करीब 63.5 करोड़ जिंदगियां प्रभावित होंगी, जिसका सबसे ज्यादा असर एशिया में देखने को मिलेगा। साथ ही इससे करीब 714,79,037 करोड़ रुपए (9,78,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान होगा।

क्या है धरती धंसने के पीछे की वजह

शोध के अनुसार दुनिया के 34 देशों में  200 से ज्यादा जगह पर भूजल के अनियंत्रित दोहन के कारण जमीन धंसने के सबूत मिले हैं। इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता गेरार्डो हेरेरा गार्सिया के अनुसार जिन क्षेत्रों की आबादी बहुत ज्यादा है या फिर जहां सूखे की समस्या गंभीर है वहां सिंचाई के लिए भूजल पर ज्यादा दबाव पड़ रहा  है। एक बार जब वहां जरुरत से ज्यादा भूजल का दोहन कर लिया जाता है, तो सतह धंसने लगती है।

जिस तरह से वैश्विक आबादी में वृद्धि हो रही है, साथ ही साधनों पर दबाव बढ़ रहा है उसके चलते स्थिति और ख़राब हो सकती है। एक तो भूजल दोहन सम्बन्धी नियमों की कमी और ऊपर से तेजी से बढ़ती आबादी समस्या को और बढ़ा रही है। ऐसे में जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है उसके कारण समस्या और विकराल रूप लेती जा रही है।

हाल ही में जर्नल नेचर में छपे एक अन्य शोध से पता चला है कि ईरान में जिस तरह से भूजल का दोहन हो रहा है उसके चलते वहां तेहरान में कई जगह जमीन 25 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से धंस रही है। इसी तरह पिछले 10 वर्षों में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता 2.5 मीटर तक डूब चुकी है। कुछ जगहों पर यह 25 सेंटीमीटर की दर से धंस रही है।

इस समस्या को बेहतर तरीके से समझने के लिए वैज्ञानिकों ने स्थानीय और सांख्यिकीय विश्लेषणों को मिलाकर एक मॉडल विकसित किया है। जिसकी मदद से इंसानों के चलते आने वाली बाढ़ और भूजल की कमी जैसे कारकों के आधार पर उन क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है जो जमीन धंसने को लेकर संवेदनशील हैं। जिन क्षेत्रों में जमीन धंसने की समस्या होगी या नहीं उनमें यह मॉडल 94 फीसदी तक सही पहचान कर सकता है।

ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए प्रभावी नीतियां जरुरी हैं। हालांकि दुनिया के ज्यादातर देशों में जमीन धंसने को लेकर नीतियां नहीं हैं। उनका मानना है कि उन क्षेत्रों में जहां इसका खतरा ज्यादा है वहां निरंतर निगरानी के जरिए उससे होने वाले खतरे को सीमित किया जा सकता है। साथ ही इससे हुए नुकसान के मूल्यांकन और उससे निपटने के प्रभावी कदमों की मदद से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।