पूर्वी राजस्थान के कोटा, बराज, झालावाड़, प्रतापगढ़, अलवर, दौसा, बूंदी, करौली और भरतपुर जिलों के जलभराव व फ्लैश फ्लड की चपेट में आने की आशंका जताई गई है।  
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अर्बन फ्लड की पहचान करने में मददगार साबित होगी आईआईटी कानपुर की यह प्रणाली

इस परियोजना का केंद्र बिंदु एक वेब-जीआईएस प्लेटफॉर्म है, जो ड्रोन से ली गई उच्च-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों और उपग्रह रिमोट सेंसिंग डेटा को एकीकृत करता है

Vivek Mishra

आईआईटी कानपुर के स्टार्टअप इनक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर (एसआइइसी) से जुड़े स्टार्टअप टेरएक्वा यूएवी सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड ने शहरी बाढ़ प्रबंधन यानी अर्बन फ्लड के मैनेजमेंट के लिए एक उन्नत आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली की शुरुआत की है।

यह परियोजना वैश्विक डिजिटल और टेक्नोलॉजी सेवा प्रदाता एनटीटी डाटा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) कार्यक्रम के तहत संचालित की जा रही है और जलवायु अनुकूल शहरी विकास की दिशा में एक ठोस पहल मानी जा रही है।

इस परियोजना का केंद्र बिंदु एक वेब-जीआईएस प्लेटफॉर्म है, जो ड्रोन से ली गई उच्च-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों और उपग्रह रिमोट सेंसिंग डेटा को एकीकृत करता है। यह प्रणाली बाढ़ के सटीक मानचित्रण, पानी भराव के अनुमान और प्रभावित आबादी के आकलन में सक्षम है। इसके माध्यम से नीति-निर्माताओं को आपदा प्रबंधन के लिए समय रहते ठोस निर्णय लेने में मदद मिलती है।

पायलट प्रोजेक्ट के तहत गंगा बैराज के आसपास के 24 बाढ़ संभावित गांवों का सर्वेक्षण किया गया, जिससे ग्राम स्तर का सूक्ष्म डेटा जुटाया गया जो आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों में बेहद उपयोगी साबित हो सकता है

इस परियोजना के उद्घाटन कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग और कानपुर विकास प्राधिकरण भी शामिल हुआ। उनका कहना था कि यदि इस परियोजना को बड़े पैमाने पर लागू किया जाए, तो यह बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी और समय रहते चेतावनी प्रणाली के निर्माण में अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है। साथ ही शहरी नियोजन के दृष्टिकोण से यह प्रणाली बाढ़ जोखिम वाले क्षेत्रों को चिह्नित करने और बुनियादी ढांचे व आबादी पर संभावित खतरे का आकलन करने में भी मददगार होगी

कानपुर मंडल आयुक्त के. विजयेन्द्र पांडियन ने कहा, “आईआईटी कानपुर द्वारा शुरू की गई यह परियोजना क्षेत्र के लिए बेहद लाभकारी होगी। यह प्रणाली ड्रोन और सैटेलाइट दोनों तकनीकों का उपयोग कर बाढ़ प्रतिक्रिया को मजबूत करती है। इससे बाढ़ की संभावनाओं का पहले ही पता लगाना संभव होगा, जिससे समय रहते बचाव के उपाय किए जा सकेंगे और बड़े नुकसान से बचा जा सकेगा।”

उन्होंने सुझाव दिया कि इस परियोजना को पूरे कानपुर जिले और फिर प्रदेश के अन्य बाढ़ प्रभावित जिलों में विस्तारित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह तकनीकी पहल खास तौर से किसानों के लिए उपयोगी होगी, क्योंकि यह फसलों को बाढ़ जनित नुकसान से बचाने में मदद कर सकती है

आईआईटी कानपुर के एसआइइसी के सीईओ अनुराग सिंह सीईओ ने कहा, “ टेरएक्वा यूएवी जैसे डीप-टेक स्टार्टअप्स को सशक्त बनाना एसआइआइसी की प्रतिबद्धता है। यह परियोजना इस बात का उदाहरण है कि कैसे उद्योग जगत के अग्रणी संस्थानों जैसे एनटीटी डाटा के साथ रणनीतिक साझेदारी नवाचारों को समाज के लिए उपयोगी समाधानों में बदल सकती है।”

एनटीटी डाटा की ग्लोबल सीएसआर गौरी बहुलकर ने कहा, “जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है, खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में। इस सीएसआर सहयोग के माध्यम से हमारा उद्देश्य स्मार्ट गवर्नेंस और सुरक्षित समुदायों को प्रोत्साहित करना है।

वहीं, टेरएक्वा यूएवी के संस्थापक और आईआईटी प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने कहा “हमारा प्लेटफॉर्म बाढ़ के समय तत्काल निर्णय लेने में उपयोगी भू-स्थानिक डेटा सुलभ कराता है। एनटीटी डाटा के सहयोग से हमने एक ऐसा फ्रेमवर्क विकसित किया है जो यूएवी और सैटेलाइट डेटा को एक सहज डैशबोर्ड में प्रस्तुत करता है।”

इस प्रणाली का लाइव डेमो आईआईटी कानपुर के पीबीसीईसी परिसर में किया गया।