देहरादून में जाखन नदी का जलस्तर बढ़ने से ऋषिकेश-देहरादून मुख्य मार्ग पर बना पुल टूट गया। फाइल फोटो: त्रिलोचन भट्ट 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

गिरने वाले पुलों की ऐसे होगी निगरानी, आईआईटी, मंडी की टीम ने विकसित किया तरीका

शोधकर्ताओं ने पुलों के कमजोर स्थलों की भविष्यवाणी करने और सेंसर लगाने की विधि विकसित की है

DTE Staff

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी की शोध टीम ने यातायात डेटा का उपयोग करके पुराने पुलों की स्थिति की निगरानी करने के लिए एक अभिनव तरीका विकसित किया है। इस पद्धति के तहत पुल के सबसे कमजोर हिस्सों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिससे पुल की सुरक्षा निगरानी आसान हो जाएगी।

डॉ. सुभामोय सेन ने अपने शोधार्थी श्री ईश्वर कुंचम के साथ मिलकर पुल के पूरे ढांचे की निगरानी की बजाय सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने और क्षति योग्य स्थानों और पुलों के धीरे-धीरे बिगड़ने की चुनौतियों का समाधान पेश किया है। उनके शोध को प्रतिष्ठित पत्रिका, स्ट्रक्चरल हेल्थ मॉनिटरिंग में प्रकाशित किया गया है।

यह मॉडल भविष्यवाणी करता है कि समय के साथ विभिन्न यातायात पैटर्न पुल के विभिन्न हिस्सों को कैसे प्रभावित करते हैं, साथ ही विशेषज्ञों को क्षति के लिए सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करते हैं।

इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों का पता लगाने के बाद दबाव और कंपन की निगरानी के लिए प्रमुख स्थानों पर सेंसर स्थापित किए जाते हैं। यदि आवश्यक हो, तो पुल की सुरक्षा सुनिश्चित करने और क्षति को रोकने के लिए वाहनों की गति और फ्लो में समायोजन किया जा सकता है।

अपने पूरे जीवनकाल के दौरान पुल अलग-अलग टायरों वाले वाहनों, हवा और पर्यावरणीय भारत का सामना करते हैं। इससे पुलों का ढांचा कमजोर हो सकता है, जिससे संभावित दुर्घटना हो सकती है। इसलिए समय के साथ कमजोर हुए पुलों के ढांचे का समाधान करना आवश्यक है, ऐसी दुर्घटनाओं की भविष्यवाणी और रोकथाम के लिए इस इंजीनियरिंग अनुसंधान में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।

अब तक पुल के शेष उपयोगी जीवन का आकलन किया जाता है, लेकिन ये हमेशा सटीक साबित नहीं होते। सुभामोय सेन कहते हैं, "हम केवल पुल के महत्वपूर्ण क्षेत्रों की निगरानी पर केंद्रित है, जिससे लागत और व्यापक उपकरण की आवश्यकता में काफी कमी आएगी। यातायात डेटा का लाभ उठाकर हम वास्तविक समय में मूल्यांकन प्रदान करेंगे, जिससे बिना बड़े यातायात बाधित किए पुल की सुरक्षा और दीर्घायु सुनिश्चित की जा सकती है।"

इस विधि में भूकंप या बाढ़ जैसी घटनाओं के बाद भी तेजी से स्थिति का आकलन करने की क्षमता है, जिससे अधिकारियों को तेजी से सुरक्षा सम्बन्धी निर्णय लेने में सहायता मिलेगी। एक बार प्रारंभिक सेटअप पूरा हो जाने के बाद विशेषज्ञ कर्मियों द्वारा नियमित निगरानी की जा सकती है, जिससे लागत में और कमी आएगी और इसे कई पुलों पर लागू करना आसान हो जाएगाा।

सरकारी एजेंसियों और परिवहन विभागों के लिए यह विधि पुराने बुनियादी ढांचे के प्रबंधन के लिए एक व्यावहारिक और कुशल समाधान प्रदान करेगी। यह पूरे पुल के बजाय उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके अधिक प्रभावी बजट आवंटन को सक्षम बनाएगी और आपात स्थितियों में तेजी से निर्णय लेने में सहयोग करेगी। इससे सार्वजनिक सुरक्षा बढ़ेगी, इसके अतिरिक्त, निरीक्षण के दौरान व्यापक और बाधित यातायात प्रबंधन की आवश्यकता को कम किया जा सकता है, जिससे यात्रियों के लिए असुविधा कम होगी।