दाएं प्रोफेसर प्रसन्ना कुमार साहू और उनके साथ शोधार्थी डॉक्टर प्रियंका कर्माकर  
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एनआईटी राउरकेला ने विकसित किया किफायती ब्रेस्ट कैंसर जांच उपकरण

जांच के लिए किसी रासायनिक तत्व या लेबल की जरूरत नहीं। साथ ही यह स्वस्थ और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं में अंतर करने में अत्यंत सटीक जानकारी देगा

Vivek Mishra

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) राउरकेला के वैज्ञानिकों ने एक नया और किफायती बायोसेंसर विकसित किया है, जो बिना किसी रासायन या विशेष प्रयोगशाला व्यवस्था के स्तन कैंसर की सटीक पहचान कर सकता है। इस सेंसर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कोशिकाओं के भौतिक गुणों के आधार पर कार्य करता है और किसी अतिरिक्त रासायन की जरूरत नहीं होती।

यह शोध एनआईटी राउरकेला के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रसन्न कुमार साहू और उनकी शोध छात्रा डॉ. प्रियंका कर्मकार के नेतृत्व में किया गया है। शोध पत्र प्रतिष्ठित माइक्रोसिस्टम टेक्नोलॉजीज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

पारंपरिक जांचों से अलग नई दिशा

भारत सहित पूरी दुनिया में स्तन कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके बावजूद शुरुआती अवस्था में इसका पता लगा पाना कठिन होता है, क्योंकि लक्षण स्पष्ट नहीं होते। एक्स-रे, मैमोग्राफी, एमआरआई, एलिसा और अल्ट्रासोनोग्राफी जैसे परीक्षण हालांकि सटीक होते हैं, लेकिन ये महंगे, जटिल और प्रशिक्षित विशेषज्ञों पर निर्भर होते हैं। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में इनकी उपलब्धता बेहद सीमित है।

कोविड-19 महामारी ने यह स्थिति और भी गंभीर कर दी, जिससे कैंसर की स्क्रीनिंग और इलाज में बड़ी देरी हुई। ऐसे में कम लागत वाले, सरल और रसायन-मुक्त परीक्षणों की तत्काल आवश्यकता महसूस की गई।

पानी की मात्रा से पहचानते हैं कैंसर

प्रो. साहू और उनकी टीम ने इस दिशा में एक उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। उन्होंने एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस—टनेल फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर(टीएफईटी)—पर आधारित बायोसेंसर डिजाइन किया है। यह सेंसर कोशिकाओं के डाइलेक्ट्रिक गुणों यानी परमीविटी के अंतर को पहचानकर कैंसर की उपस्थिति की जानकारी देता है।

कैंसरग्रस्त कोशिकाएं जैसे कि टी47डी, सामान्य कोशिकाओं जैसे एमसीएफ-10ए की तुलना में अधिक जलयुक्त होती हैं। इसी वजह से इनकी परमीविटी यानी विद्युत क्षेत्र को स्वीकारने की क्षमता भी अधिक होती है। जब बायोसेंसर इन कोशिकाओं के संपर्क में आता है, तो यह परमीविटी में आए बदलाव को मापता है और यह निर्धारित करता है कि कोशिकाएं सामान्य हैं या कैंसरग्रस्त।

प्रो. साहू बताते हैं, “हमने ट्रांजिस्टर के गेट क्षेत्र के नीचे एक छोटा सा कक्ष बनाया है, जिसमें कोशिकाओं का जैविक नमूना रखा जाता है। सेंसर उस क्षेत्र में विद्युत संकेतों के बदलाव को पढ़ता है। चूंकि कैंसर कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं की तुलना में अधिक परमीविटी रखती हैं, इसलिए सेंसर उन्हें तेज़ी से और सटीकता से पहचान लेता है।”

बेहतर संवेदनशीलता

शोध में पाया गया कि यह टीएफईटी आधारित बायोसेंसर टी47डी जैसी कैंसर कोशिकाओं को उच्च संवेदनशीलता के साथ पहचान सकता है। यह मौजूदा तकनीकों की तुलना में अधिक सटीक और तेज़ है। खास बात यह है कि इस तकनीक को किसी भी रासायन या बाहरी लेबल की जरूरत नहीं होती, जिससे यह अधिक सुरक्षित और सस्ता हो जाता है।

यह सेंसर पारंपरिक जांच विधियों और अन्य एपईटी आधारित बायोसेंसरों की तुलना में किफायती है। इसके निर्माण में कम लागत आती है और इसे आसानी से मोबाइल हेल्थ यूनिट या घरेलू जांच उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।अब यह शोध दल इस तकनीक के व्यावसायीकरण और व्यापक उपयोग के लिए वैज्ञानिक प्रमाणन और औद्योगिक साझेदारी की दिशा में प्रयासरत है। यदि यह तकनीक व्यवहार में आती है, तो यह लाखों महिलाओं को समय रहते कैंसर जांच की सुविधा दे सकती है।