विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

5 से 10 साल में कॉल सेंटर की नौकरियां खत्म हो जाएंगी

Anil Ashwani Sharma

औद्योगिक क्षेत्रों में ऑटोमेशन (स्वचालन) का चलन तेजी से अपने पैर फैला रहा है। इसके कारण भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के कामगारों के रोजगार पर सीधा असर पड़ रहा है। डाउन टू अर्थ ने इस मुद्दे पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के निदेशक वी. रामगोपाल राव से बात की

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भारत में क्या भविष्य है ?  

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) या मशीन लर्निंग की जरूरत भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में महसूस की जा रही है। भारत में इसकी बहुत संभावनाएं हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इसकी बहुत जरूत है। एम्स में हर साल लाखों लोग इलाज कराते हैं और आप देखें तो वहां डाटा उपलब्ध है। इसके लिए जरूरी है कि कम्प्यूटर साइंटिस्ट, डॉक्टर्स के पास बैठकर इस डाटा का अध्ययन करें। इससे इलाज तो होगा ही, बल्कि बीमारी को रोकने के इंतजाम भी किए जा सकेंगे। यदि भारत ऐसे क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लेता है तो उसके कई फायदे होंगे। 

भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्या संभावनाएं हैं ?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भारत में काफी संभावनाएं हैं, क्योंकि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत काफी आगे है और दुनिया को नेतृत्व देने की क्षमता रखता है। हमारे पास हर क्षेत्र में अपार डाटा उपलब्ध है। आप सुरक्षा की बात करें या चिकित्सा व पर्यावरण की बात करें, हर क्षेत्र का डाटा उपलब्ध है। इसलिए हमारी आईटी पृष्ठभूमि और डाटा की उपलब्धता को देखा जाए तो हम एआई के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर सकते हैं। हालांकि बड़ी चुनौती लोगों को एक साथ लाना है। मतलब, हर क्षेत्र के विशेषज्ञों को एक साथ लाना होगा। यह देखना होगा कि कम्प्यूटर साइंटिस्ट और मेडिकल डॉक्टर कैसे मिलकर काम करेंगे। इस दिशा में बड़ी तेजी से काम करना होगा, यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो हम एआई के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर सकते हैं। 

एआई का हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा ? 

देश की अर्थव्यवस्था पर एआई का बहुत असर पड़ेगा। वर्तमान दौर की नौकरियों पर एआई का असर बहुत हद तक असर पड़ेगा। जैसे कि आने वाले 5 से 10 सालों में कॉल सेंटर में काम करने वाले लोगों की नौकरियां चली जाएंगी। कॉल सेंटर में इंसान की जरूरत नहीं रहेगी, सब काम कम्प्यूटर करेंगे। आप हर तरह के सवालों के जवाब कम्प्यूटर में फीड कर देंगे, जिसके बाद जितने भी संभव सवालों के जवाब हैं, कम्प्यूटर अपने कस्टमर को देगा। यह डाटा और पैटर्न के आधार पर कम्प्यूटर जवाब ही नहीं देगा, बल्कि निर्णय भी लेने लगेगा। इसी तरह मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन सर्विसेज की जॉब लगभग खत्म हो चुकी  हैं। इस तरह कई तरह की नौकरियां जाएंगी।

तो क्या नई नौकरियां पैदा होंगी? 

हां, नई नौकरियां पैदा होंगी। जैसे कि अगर हम 20 साल पहले देखें तो बैंकों में जब कम्प्यूटर लगाए जा रहे थे तो कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी और कहा था कि इससे नौकरियां चली जाएंगी। उनके विरोध के कारण लगभग एक दशक तक बैंकों में कम्प्यूटराइजेशन नहीं हो पाया। लेकिन आज देखें तो कर्मचारियों ने खुद को कम्प्यूटर के लिए तैयार किया और नई तरह की नौकरियां बढ़ी हैं। कम्प्यूटर से बैंकों की ही नहीं, बल्कि हर तरह की सर्विस की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। यानी कि हमें लोगों को यह समझाना होगा कि वे कम्प्यूटर के साथ कैसे काम करें ? 

यानी कि, हमें कौशल विकास, खासकर तकनीकी कौशल विकास की दिशा में काम करना होगा ? 

जी हां, हमें इस दिशा में बहुत तेजी से काम करना होगा। लोगों को तकनीकी शिक्षा देना बहुत जरूरी हो गया है। ऐसे में, शिक्षण संस्थानों को बड़ी भूमिका अदा करनी होगी। 

क्या हम इसके लिए तैयार हैं? 

अभी भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काफी कम है। यहां तक कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में पढ़ाने वालों की संख्या काफी कम है। पहले तो हमें फैकल्टी तैयार करनी होगी। विश्व भर में एआई के बढ़ते चलन को देखते हुए युवा बेहद उत्साहित हैं और इसके बारे में पढ़ना चाहते हैं, लेकिन फैकल्टी तैयार नहीं है। आईआईटी, दिल्ली में जब एआई कोर्स शुरू किया गया तो लगभग 500 छात्रों ने एआई कोर्स करने की इच्छा जताई। लेकिन हमें कैसे पढ़ाते, इसके लिए इंस्ट्रक्टर चाहिए। हमें ट्रेनर को ट्रेंड करने वाले लोग पहले चाहिए। आईआईटी इसमें अपना भूमिका अच्छे से निभा सकते हैं। कुछ ऐसे शॉर्ट टर्म कोर्स तैयार किए जाने चाहिए, जो पहले ट्रेनर तैयार करे। हम इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। 

सरकार को इस दिशा में क्या करना चाहिए ? 

लोग तकनीक के नए युग में प्रवेश करने वाले हैं, ऐसे में सरकार की बड़ी भूमिका होगी। एआई से कई तरह नौकरियां खत्म होंगी, इसलिए सरकार की चिंता भी बढ़ेगी। इसलिए सरकार को सबसे पहले पॉलिसी की दिशा में काम करना होगा। नए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम तैयार करने होंगे। लेकिन सरकार अकेले इस काम को नहीं कर सकती। उसे शिक्षण संस्थानों को साथ लेना होगा। जैसे कि अभी आईआईटी दिल्ली में 40 फैकल्टी मेंबर हैं, जो एआई पर काम करते हैं, लेकिन सरकार को यह सोचना होगा कि ये 40 लोग 400 को कैसे ट्रेंड करें। इसके लिए पैसा कहां से आएगा, सरकार को इस दिशा में सोचना होगा। फंडिंग एक बड़ा मुद्दा होगा।