रिसर्च से पता चला है कि जैतून के तेल में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद होता है। फोटो: आईस्टॉक 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्या डिमेंशिया की संभावना को कम कर सकता है जैतून के तेल का रोजाना सेवन

रिसर्च से पता चला है कि हर दिन सात ग्राम से अधिक जैतून के तेल का सेवन करने से मनोभ्रंश से जुड़े कारणों से मृत्यु का जोखिम 28 फीसदी तक कम हो गया

Lalit Maurya

हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से जुड़े पोषण विशेषज्ञों और स्वास्थ्य शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में खुलासा किया है कि हर दिन जैतून के तेल का सेवन करने से मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया का खतरा कम हो सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुए हैं।

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्वास्थ्य से जुड़े दो अलग-अलग डेटाबेस का विश्लेषण किया है। यह अध्ययन करीब 92,383 वयस्कों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जो लोग हर दिन कम से कम सात ग्राम जैतून के तेल का सेवन करते हैं, उनमें मनोभ्रंश या उससे संबंधित बीमारियों से मरने की संभावना कम थी।

इससे पहले के शोधों से भी पता चला है कि भूमध्यसागरीय आहार ज्यादातर लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। इस आहार में फलियां, सब्जियां, नट्स, मछली, डेयरी उत्पाद और जैतून का तेल जैसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। साक्ष्यों से पता चला है कि इस आहार से मानसिक स्वास्थ्य को भी फायदा होता है। वहीं इस नए अध्ययन से पता चला है कि इस आहार में बहुत अधिक मात्रा में जैतून के तेल का उपयोग किया जाता है, जो इनकी वजह से स्वास्थ्य को होने वाले फायदों की एक बड़ी वजह हो सकता है।

जैतून का तेल स्वास्थ्य के लिए कितना फायदेमंद होता है यह समझने के लिए शोधकर्ताओं ने नर्सों के स्वास्थ्य अध्ययन में 60,580 से अधिक महिलाओं और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े 31,000 से अधिक पुरुषों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन सभी की औसत आयु 56 वर्ष थी और उनमें से किसी को भी हृदय रोग या कैंसर नहीं था। इन डेटाबेस में करीब तीन दशकों तक मरीजों के स्वास्थ्य को ट्रैक किया गया। इसमें मृत्यु के कारण से जुड़ी जानकारी भी एकत्र की गई थी।

शोधकर्ताओं के मुताबिक अध्ययन किए गए 92,383 रोगियों में से 4,751 की मृत्यु मनोभ्रंश-संबंधी कारणों से हुई थी। वहीं उनके आहार संबंधी जानकारी की तुलना करने पर, पाया गया कि जो लोग हर दिन सात ग्राम से अधिक जैतून के तेल का सेवन करते हैं, उनमें उन लोगों की तुलना में मनोभ्रंश से संबंधित मृत्यु का जोखिम 28 फीसदी कम था, जिन्होंने इसका सेवन बहुत कम या कभी नहीं किया।

रिसर्च से पता चला है कि अध्ययन में शामिल कई लोग ऐसे थे जो रोजाना जैतून के तेल का सेवन करते हैं, उन्होंने खाना पकाने और उसे स्वादिष्ट बनाने के लिए मक्खन, मेयोनीज और वनस्पति तेलों की जगह जैतून के तेल का उपयोग किया था। इसकी वजह से इन लोगों ने उन अन्य उत्पादों का भी कम सेवन किया, जो मनोभ्रंश की दर को प्रभावित कर सकते थे।

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि जैतून के तेल पर विशेष ध्यान देने के साथ, भूमध्यसागरीय आहार को अपनानें से अन्य कारकों के कारण होने वाली सूजन को रोका जा सकता है, जिससे मनोभ्रंश के विकसित होने की संभावना कम हो सकती है।

रिसर्च से पता चला है कि जैतून के तेल में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद होता है। हालांकि बहुत से लोग इसका पर्याप्त मात्रा में सेवन नहीं करते हैं। ओमेगा-3 का अधिक सेवन मनोभ्रंश और मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहतर माना जाता है।

क्या है डिमेंशिया (मनोभ्रंश)

डिमेंशिया किसी एक बीमारी का नाम नहीं है, बल्कि यह कई बीमारियों या यूं कहें तो कई लक्षणों के एक समूह का नाम है। यह ऐसा विकार है, जिसका शिकार मानसिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि उसे अपने रोजमर्रा के कामों को पूरा करने के लिए भी किसी दूसरे की मदद लेनी पड़ती है।

विशेषज्ञों की मानें तो यह एक ऐसा विकार है, जिसमें दिमाग के अंदर विभिन्न प्रकार के प्रोटीनों का निर्माण होने लगता है, जो मस्तिष्क के सेल्स को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। नतीजतन इंसान की याददाश्त, देखने, सोचने-समझने और बोलने की क्षमता में धीरे-धीरे गिरावट आने लगती है। यह बीमारी आज दुनिया में तेजी से पैर पसार रही है।

दुनिया में करीब 5.7 करोड़ से ज्यादा लोग आज मनोभ्रंश के साथ जीने को मजबूर हैं। वहीं अनुमान है कि 2050 तक 166 फीसदी की वृद्धि के साथ डिमेंशिया से पीड़ित इन लोगों का आंकड़ा बढ़कर 15.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा। इतना ही नहीं इनमें से करीब 40 फीसदी मामलों के लिए कहीं न कहीं वायु प्रदूषण जैसे कारक जिम्मेवार होंगे।

भारत के लिए कितना बड़ा खतरा है मनोभ्रंश

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक डिमेंशिया से पीड़ित 60 फीसदी मरीज कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं। भारत से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो देश में करीब 8.44 फीसदी बुजुर्ग मनोभ्रंश से पीड़ित हैं। मतलब की एक करोड़ से ज्यादा बुजुर्ग इसका शिकार बन चुके हैं। एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि भारत में 2050 तक डिमेंशिया के मरीज 197 फीसदी तक बढ़ सकते हैं।

वहीं जर्नल अल्जाइमर्स एंड डिमेंशिया में छपे एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि देश में मनोभ्रंश का शिकार लोगों का आंकड़ा 2036 तक 92.4 फीसदी बढ़कर 1.7 करोड़ पर पहुंच जाएगा।

अल्जाइमर, मनोभ्रंश का सबसे आम रूप है। इसके 60 से 70 फीसदी मामले अल्जाइमर के ही होते हैं। स्वास्थ्य संगठन की मानें मनोभ्रंश दुनिया में वृद्ध लोगों की मृत्यु का सातवां प्रमुख कारण और विकलांगता की एक प्रमुख वजह है। आंकड़ों की मानें तो मनोभ्रंश की वजह से 2019 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 130,000 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था।