दुनिया भर में भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करना है तो नैनोटेक्नोलॉजी को खेती में भी आजमाना होगा।  फोटो साभार : नेचर
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नैनो तकनीक के माध्यम से बेहतर हो सकती है खेती, केमिकल के उपयोग से मिलेगी निजात

दुनिया भर में साल 2020 की तुलना में 2050 में खाद्य उत्पादन में 60 फीसदी तक की वृद्धि करने की जरूरत पड़ेगी। केमिकल आधारित खेती के माध्यम से इस लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

Dayanidhi

जिस तरह उन्नत तकनीकें शरीर में विशेष कोशिकाओं तक दवा को पहुंचाने में मदद करती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि दुनिया भर में भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करना है तो इन तकनीकों को खेती में भी आजमाना होगा।

यूसी रिवरसाइड और कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नैनोटेक्नोलॉजी के साथ कृषि में सुधार के लिए कुछ सबसे प्रसिद्ध रणनीतियों के बारे में बताया है।

नैनोटेक्नोलॉजी सूक्ष्म रूप से छोटी चीजों के अध्ययन और डिजाइन के लिए उपयोग की जाती है। कितनी छोटी? एक नैनोमीटर एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होता है, या मानव बाल की चौड़ाई से लगभग 1,00,000 गुना छोटा होता है।

नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग करके, अब दवाएं शरीर में वहां पहुंचाई जा सकती हैं जहां उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। लेकिन इन जानकारियों को अभी तक बड़े पैमाने पर वनस्पति विज्ञान में आजमाया नहीं गया है।

अलग-अलग अध्ययनों के मुताबिक, दुनिया भर में साल 2020 की तुलना में 2050 में खाद्य उत्पादन में 60 फीसदी तक की वृद्धि करने की जरूरत पड़ेगी। अभी, तक दुनिया भर में केमिकल आधारित खेती के माध्यम से इस लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि खेतों में इस्तेमाल किए जाने वाले उर्वरकों में से आधे पर्यावरण में मिल जाते हैं और भूजल को प्रदूषित करते हैं। आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के मामले में तो स्थिति और भी खराब है। केवल पांच फीसदी ही अपने जरूरी लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं। बाकी पर्यावरण को दूषित कर देते हैं। इसमें सुधार की बहुत गुंजाइश है।

वर्तमान में, दुनिया भर में खेती से 28 फीसदी तक ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है। यह, चरम मौसम की घटनाओं से लेकर बड़े पैमाने पर फसल को चट कर जाने वाले कीटों और तेजी से खराब हो रही मिट्टी तक कई अन्य कारणों के अलावा, नई कृषि पद्धतियों और तकनीकों की आवश्यकता की ओर इशारा करता है।

नेचर नैनोटेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने नैनो मेडिसिन के विशिष्ट तरीकों पर प्रकाश डाला है जिनका उपयोग कीटनाशकों, खरपतवारनाशक और कवकनाशियों को विशिष्ट जैविक लक्ष्यों तक पहुंचाने के लिए किया जा सकता है।

अध्ययन में शोधकर्ता ने कहा हम नैनोमटेरियल को शर्करा या पेप्टाइड्स के साथ कोटिंग करने पर आधारित तकनीकों में अग्रणी हैं जो पौधों की कोशिकाओं और हिस्सों पर विशिष्ट प्रोटीन को पहचानते हैं। यह हमें पौधे की मौजूदा आणविक मशीनरी को लेने और जरूरी रसायनों को उस स्थान पर भेजने में मदद करता है जहां पौधे को इसकी आवश्यकता होती है, उदाहरण के लिए पौधे की वाहिकाएं, भाग या पौधे के रोगजनक संक्रमण वाली जगह।

ऐसा करने से पौधे बीमारियों और हानिकारक पर्यावरणीय कारकों जैसे अत्यधिक गर्मी या मिट्टी में भारी खारेपन के प्रति अधिक लचीले हो सकते हैं। इस प्रकार की तकनीक पर्यावरण के अनुकूल तरीके भी होगी।

अध्ययन के मुताबिक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का उपयोग करके "डिजिटल ट्विन" बनाना। चिकित्सा शोधकर्ता कम्प्यूटेशनल मॉडल या "डिजिटल रोगियों" का उपयोग करके यह अनुकरण करते हैं कि दवाएं शरीर पर कैसे असर करती हैं और कैसे शरीर के भीतर जाती हैं। प्लांट रिसर्चर नैनोकेरियर अणुओं को डिजाइन करने के लिए भी ऐसा ही कर सकते हैं जो पोषक तत्वों या अन्य एग्रोकेमिकल्स को पौधों के हिस्सों तक पहुंचाते हैं जहां उनकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है।

शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि पौधों में सक्रिय घटकों की नैनो-सक्षम सटीक तकनीक खेती को बदल देगी, लेकिन इसके होने वाले फायदों को महसूस करने के लिए हमें पहले महत्वपूर्ण तकनीकी चुनौतियों को दूर करना होगा। प्लांट नैनोबायोटेक्नोलॉजी से भविष्य में खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी करने की इसकी क्षमता और कि और फयदे हो सकते हैं।