स्वच्छता

पश्चिम बंगाल के शहरों में नहीं हो रहा है कचरा प्रबंधन, एनजीटी ने मांगा जवाब

चमोली जिले में बेनीताल झील का आकार 2 हेक्टेयर के मूल आकार से घटकर 0.116 हेक्टेयर रह गया है, एनजीटी में हो रही है सुनवाई

Susan Chacko


नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 22 फरवरी 2024 को कहा कि पश्चिम बंगाल में सीवेज और ठोस कचरा प्रबंधन में बहुत बड़ा अंतर है और राज्य में ठोस और तरल कचरे के उचित प्रबंधन में कोई प्रगति नहीं हुई है।पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा 18 दिसंबर, 2023 को अर्धवार्षिक अनुपालन रिपोर्ट एनजीटी को प्रस्तुत की गई है।

छह मासिक रिपोर्ट के अवलोकन के बाद एनजीटी ने कहा कि शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) क्षेत्रों में कुल 13,469 टन प्रतिदिन कचरा उत्पादन होता है, जबकि ट्रीटमेंट केवल 3,300 प्रति दिन (टीपीडी) होता है। यानी लगभग 8,982 टन प्रतिदिन की प्रोसेसिंग में अंतर है। हालांकि वास्तविक अंतर 10,169 टीपीडी होगा, क्योंकि सुरक्षित भूमि भराव के रूप में दिखाया गया 1,187 टीपीडी का अपशिष्ट एमएसडब्ल्यू नियम, 2016 के अनुसार अपशिष्ट प्रसंस्करण नहीं है। इस प्रकार, शहरों में 10,169 टीपीडी लीगेसी कचरे के रूप में जमा हो रहा है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 125 यूएलबी में से केवल 67 यूएलबी ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के अंतर्गत आते हैं और 58 यूएलबी को अभी भी कवर किया जाना बाकी है। इसके अलावा शेष 58 यूएलबी में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करने की समयसीमा दिसंबर, 2024 है।

इन यूएलबी में 123 डंप साइटें हैं, जहां पुराना कचरा 110.20 लाख टन जमा है। डंप साइट को साफ करने की समय सीमा दिसंबर, 2024 है और वर्तमान में अब तक केवल 69 डंप साइटों को साफ किया गया है। रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो जाता है कि 1249.3 एमएलडी को अनुपचारित रूप में छोड़ा जा रहा है जिससे प्राप्त पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।

पश्चिम बंगाल राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया है कि राज्य के मुख्य सचिव पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में न्यायाधिकरण के आदेशों का बेहतर प्रदर्शन और अनुपालन दिखाने के लिए राज्य को अंतिम अवसर दिया जाना चाहिए।

एनजीटी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को अगली छह मासिक रिपोर्ट हलफनामे के रूप में दाखिल करने और ट्रिब्यूनल के निर्देशों की प्रगति और अनुपालन का संकेत देने का निर्देश दिया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त, 2024 को करने का भी निर्देश दिया।

घट गया बेनीताल झील का आकार

चमोली जिले में बेनीताल झील का आकार 2 हेक्टेयर के मूल आकार से घटकर 0.116 हेक्टेयर रह गया है। झील भूजल पुनर्भरण, वनस्पति, क्षेत्र की पारिस्थितिक स्थिरता और लगभग 6 गांवों को सुरक्षित और स्वच्छ जल आपूर्ति सुनिश्चित करने में सकारात्मक भूमिका निभाती है।

9 नवंबर, 2023 के एनजीटी के आदेश के अनुपालन में जिला मजिस्ट्रेट, चमोली, उत्तराखंड के माध्यम से जिला चमोली की ओर से शपथ पत्र के माध्यम से की गई कार्रवाई रिपोर्ट में यह कहा गया था।

संयुक्त निरीक्षण के दौरान बेनीताल झील में काफी हद तक जलीय घास पाई गई तथा झील के अंदर जलीय जीवों की सुरक्षा एवं साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं दिखाई दी। अवैध रूप से पेड़ काटने की पुष्टि नहीं हो सकी है, हालांकि उक्त स्थान पर पुराने ठूंठ पड़े हुए मिले हैं।

निरीक्षण के समय बेनिटल झील की परिधि पर कटाव भी देखा गया जो बरसात के मौसम में हुआ प्रतीत होता है और मानव या यांत्रिक साधनों के कारण कटाव का कोई सबूत नहीं था। बेनिटल झील के आसपास कुछ मात्रा में ठोस कचरा, प्लास्टिक की बोतलें, मवेशियों का गोबर, रैपर, कांच की बोतलें, पैकेजिंग सामग्री बिखरी हुई पाई गईं।

हिमालय की नाजुकता से जुड़े महत्व को ध्यान में रखते हुए आसपास के क्षेत्र में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के पहलुओं और बेनीताल झील और उसके जलग्रहण क्षेत्र के संरक्षण और प्रबंधन पर वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियमों के अनुसार उचित ध्यान देने की आवश्यकता है। 

कर्नाटक में नदियों की गुणवत्ता खराब
एनजीटी ने  22 फरवरी को कर्नाटक में नदियों की बिगड़ती जल गुणवत्ता पर 10 जनवरी, 2024 को बैंगलोर मिरर में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट ("वंस अपॉन ए रिवर") पर गंभीरता से विचार करते हुए अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।

ये नोटिस कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, बैंगलोर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (बीडब्लूएसएसबी) और राज्य के मुख्य सचिव के माध्यम से उपायुक्त और जिला मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु को जारी होंगे।

समाचार में कर्नाटक राज्य भर में नदियों की खराब जल गुणवत्ता का खुलासा किया गया है। उक्त समाचार के अनुसार, राज्य की 12 नदियों के हालिया जल गुणवत्ता विश्लेषण से पता चला कि नौ में पानी की गुणवत्ता खराब (वर्ग डी) थी। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय जल निगरानी कार्यक्रम (एनडब्ल्यूएमपी) के तहत निगरानी की जाने वाली 12 नदियों में अर्कावती लक्ष्मणतीर्थ, तुंगभद्रा, भद्रा, कावेरी, काबिनी, कागिना, कृष्णा, शिमशा, भीमा, नेत्रावती और तुंगा शामिल हैं। खराब गुणवत्ता का कारण तेजी से जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण का अत्यधिक दबाव या अधिकारियों की निष्क्रियता बताया गया है।