केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 15 अप्रैल, 2025 को वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट पर अपनी रिपोर्ट अदालत में सबमिट की है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 10 राज्यों में 21 वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट चल रहे हैं। यह वो वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट हैं जो नगरपालिका के ठोस कचरे को जलाते हैं।
इनमें से चार प्लांट दिल्ली में, उत्तराखंड में तीन और आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में दो-दो प्लांट हैं। वहीं हरियाणा और कर्नाटक में एक-एक संयंत्र मौजूद है।
26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जानकारी दी है कि उनके अधिकार क्षेत्र में कोई भी ऐसा वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट चालू नहीं है जो नगरपालिका के ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) को जलाता हो।
यह रिपोर्ट 13 जनवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर अदालत में सबमिट की गई है।
रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, उत्तराखंड, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समिति से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि उनके क्षेत्र में जो भी वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट चल रहे हैं, उनके पास वैध अनुमति हो।
आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समिति को यह सुनिश्चित करना होगा की सभी प्लांट्स से निकलने वाले धुएं (स्टैक एमिशन्स) की जांच ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम की अनुसूची II (सी) के अनुसार होनी चाहिए।
राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समिति को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बॉटम ऐश और फ्लाई ऐश की जांच रिपोर्ट दी जाए और उनका उपयोग या निपटान नियमों के अनुसार किया जाए।
राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से यह जानकारी देने के लिए कहा गया है कि वो गंदे पानी के रिसाव का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं,? साथ ही यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि उसका ट्रीटमेंट व जांच ठोस अपशिष्ट नियमों के अनुसार होना चाहिए।
सीपीसीबी ने आंध्र प्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना और महाराष्ट्र के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और समितों को उन वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स पर कार्रवाई करने के लिए कहा है जो नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। साथ ही उनपर क्या कार्रवाई की गई है, इसकी रिपोर्ट सीपीसीबी को सौंपने के लिए कहा गया है।
11 अप्रैल 2025 को एक पत्र जारी किया गया है। इसमें आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, उत्तराखंड, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा के संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को नियमों के उल्लंघन की जानकारी दी गई है। साथ ही उनसे इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई करने को कहा गया है।
जल प्रदूषण पर लापरवाही: उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अधिकारियों को थमाया नोटिस
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) ने राज्य के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) की खराब स्थिति को लेकर बड़ी कार्रवाई की है।
बोर्ड ने 9 अप्रैल, 2025 को जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम की धारा 33ए के तहत उत्तराखंड पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक और उत्तराखंड जल संस्थान के महाप्रबंधक को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। यह दोनों राज्य में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के रखरखाव और संचालन के लिए जिम्मेवार एजेंसियां हैं।
यह नोटिस इसलिए जारी किए गए हैं क्योंकि जनवरी 2023 से फरवरी 2024 के बीच विभिन्न एसटीपी से निकले दूषित जल के विश्लेषण से पता चला है कि अधिकांश एसटीपी निर्धारित मानकों के अनुसार शोधन नहीं कर पा रहे हैं और उनका आउटलेट डिस्चार्ज मानकों से मेल नहीं खा रहा है।
यह बातें उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 12 अप्रैल, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर रिपोर्ट में कही गई हैं।
करनाल में तालाब पर 37 अतिक्रमण, एनजीटी पहुंचा मामला
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) ने 15 अप्रैल, 2025 को अपनी रिपोर्ट अदालत में सबमिट की है। इस रिपोर्ट में कहा है कि 28 मार्च, 2025 को करनाल की निसिंग तहसील के ब्रास में जलाशय का सीमांकन किया गया था। यह भी सामने आया है कि तालाब पर 37 अतिक्रमण हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक अब इन अतिक्रमणों को हटाने की कार्रवाई करनाल के डीडीपीओ और निसिंग के बीडीपीओ द्वारा की जानी है, ताकि तालाब का जीर्णोद्धार हरियाणा तालाब और अपशिष्ट जल प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा किया जा सके।
गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को दी गई शिकायत में कहा गया है कि तालाब के बड़े हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है और वहां पक्के मकान बना दिए गए हैं। करीब चार से पांच एकड़ का यह तालाब अब सिकुड़कर महज तीन एकड़ का रह गया है, लेकिन संबंधित अधिकारियों द्वारा इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि तालाब में बिना साफ किए सीवेज छोड़ा जा रहा है और कचरा भी डंप किया जा रहा है। इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और स्थानीय लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है।