सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल नगर निगम (बीएमसी) को निर्देश दिया है कि वह आदमपुर लैंडफिल साइट को लेकर अपनी कार्रवाई रिपोर्ट अदालत के सामने प्रस्तुत करे। यह आदेश 7 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की बेंच द्वारा दिया गया है।
अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि यह रिपोर्ट नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) को भी भेजी जानी चाहिए।
इस मामले में नीरी संबंधित साइटों का निरीक्षण करेगी और यह देखेगी कि भोपाल नगर निगम ने कचरा प्रबंधन से जुड़े नियमों का पालन किया है या नहीं। नीरी से जुलाई 2025 के अंत तक अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। इस मामले में अदालत 11 अगस्त 2025 को अगली सुनवाई करेगा।
गौरतलब है कि यह मामला आदमपुर लैंडफिल साइट से जुड़ा है। इस साइट पर भोपाल के शहरी कचरे का निपटान 2018 से शुरू हुआ था। यहां कई बार आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। इसे लेकर पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडे ने 2023 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) से शिकायत की थी।
अपनी शिकायत में उन्होंने भोपाल नगर निगम द्वारा आदमपुर साइट पर ठोस कचरे से जुड़े नियमों के किए जा रहे उल्लंघन का आरोप लगाया था। एनजीटी ने जांच के बाद इस मामले में अगस्त 2023 को भोपाल नगर निगम पर 1.5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। इस फैसले को बीएमसी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- कब शुरू होंगे जम्मू-कश्मीर के कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स?
8 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने हलफनामे में क्षेत्र में कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (सीईटीपी) के चालू होने और संचालन के बारे में विवरण देने को कहा है।
एफिडेविट में यह भी बताना होगा कि इन अपशिष्ट उपचार संयंत्रों का संचालन और निगरानी कौन करेगा। साथ ही इस परियोजना का प्रस्तावक कौन होगा।
कुसुमपुर पहाड़ी में स्लम रीडेवलपमेंट योजना को नहीं मिली है अपेक्षित मंजूरी: रिपोर्ट
दिल्ली के वसंत विहार स्थित कुसुमपुर पहाड़ी में प्रस्तावित स्लम पुनर्विकास योजना को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की इस योजना “इन-सीटू स्लम पुनर्विकास और पुनर्वास योजना 2019” को दिल्ली सरकार के वन एवं वन्यजीव विभाग (जीएनसीटीडी) या रिज मैनेजमेंट बोर्ड (आरएमबी) की मंजूरी नहीं मिली है।
यह जानकारी 8 अप्रैल, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर एक रिपोर्ट में दी गई है। यह रिपोर्ट वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और रिज मैनेजमेंट बोर्ड की तरफ से पेश की गई है।
रिपोर्ट में बताया गया कि यह क्षेत्र वन एवं वन्यजीव विभाग के पश्चिमी वन प्रभाग (जीएनसीटीडी) के अधिकार क्षेत्र में आता है। हालांकि विभाग के पास इस क्षेत्र का कब्जा नहीं है।
इस मामले में वन विभाग ने दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली सरकार के भूमि और भवन विभाग और वसंत विहार के उप-जिलाधिकारी को पत्र लिखकर परियोजना क्षेत्र का नक्शा और भौगोलिक निर्देशांक उपलब्ध कराने को कहा है। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि योजना का यह इलाका रिज क्षेत्र (मॉर्फोलॉजिकल रिज) के भीतर आता है या नहीं।
विभाग के मुताबिक चूंकि उसके पास इस परियोजना क्षेत्र के सटीक भू-निर्देशांक नहीं हैं, जहां के लिए यह इन-सीटू स्लम पुनर्वास योजना प्रस्तावित की गई है। ऐसे में यह तय कर पाना मुमकिन नहीं है कि यह क्षेत्र रिज के अंतर्गत आता है या नहीं।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने एनजीटी में याचिका दायर कर गुहार लगाई थी कि वह दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को वसंत विहार की कुसुमपुर पहाड़ी क्षेत्र में पुनर्वास योजना शुरू करने से रोका जाए। यह परियोजना सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर आधारित है।