फोटो: वर्ल्ड फूड प्रोग्राम 
स्वच्छता

स्टेट ऑफ अफ्रीका एनवायरमेंट: अफ्रीका में दूषित पानी बना काल, विकसित देशों की तुलना में हजार गुणा अधिक है मृत्यु दर

सुरक्षित जल और स्वच्छता अफ्रीका के लिए आर्थिक अनिवार्यता बन चुके हैं

DTE Staff

साफ पानी और स्वच्छता का आपस में गहरा नाता है। साफ सफाई और स्वच्छता की कमी से जल प्रदूषित होता है और बीमारियां फैलती है। वहीं साफ-सफाई और स्वच्छता जल को स्वच्छ रखने के साथ बीमरियों को सीमित करने करने की कुंजी है।

अफ्रीका में असुरक्षित जल और साफ-सफाई की कमी मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले पोर्टल अवर वर्ल्ड इन डेटा के मुताबिक दूषित पानी की वजह से होने वाली मौतों का बोझ अफ्रीका में बेहद ज्यादा है। दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और डाउन टू अर्थ की संयुक्त रिपोर्ट "स्टेट ऑफ अफ्रीका एनवायरमेंट 2024" में इस पर प्रकाश डाला है।

अवर वर्ल्ड इन डेटा द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, दूषित पानी की वजह से होने वाली मौतों की दर निम्न आय वाले देशों, विशेषकर उप-सहारा अफ्रीका और एशिया में बहुत अधिक है, जहां इसकी वजह से होने वाली मौतों की दर प्रति लाख लोगों पर 50 से भी अधिक है। वहीं अफ्रीका में तो यह दर यूरोप जैसे विकसित देशों की तुलना में हजार गुणा अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने भी मार्च 2023 में जारी अपनी रिपोर्ट ट्रिपल थ्रेट में खुलासा किया है कि पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली हर पांच में से दो मौतें उप-सहारा अफ्रीका के दस देशों में हुई थी। इन देशों में करीब 19 करोड़ बच्चे पानी और उसकी वजह से होने वाली बीमरियों के साथ जलवायु से जुड़ी आपदाओं के तिहरे खतरे का सामना करने को मजबूर हैं।

यह खतरा बेनिन, बुर्किना फासो, कैमरून, चाड, आइवरी कोस्ट, गिनी, माली, नाइजर, नाइजीरिया और सोमालिया में कहीं ज्यादा गंभीर है। यही वजह है कि पश्चिमी और मध्य अफ्रीका क्षेत्र, दुनिया के सबसे अधिक जलवायु प्रभावित और जल संकट का सामना करने वाले क्षेत्रों में से एक बन गया है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने इन दस अफ्रीकी देशों को या तो 'कमजोर' या 'बेहद कमजोर' देशों के रूप में वर्गीकृत किया है। वहीं यूनिसेफ रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों की बुनियादी पेयजल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच 50 फीसदी से भी कम है।

सुरक्षित पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता का अभाव बच्चों के जीवन के हर पहलू को नुकसान पहुंचाता है। इससे उनकी बुनियादी जरूरतों जैसे पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो जाता है। रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया है कि बच्चों में साफ पानी और स्वच्छता सेवाओं की कमी के चलते होने वाली बीमारियों और उससे जुड़ी मृत्यु दर का सबसे अधिक बोझ अफ्रीकी देशों पर है।

वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ पानी और स्वच्छता की कमी के चलते दुनिया भर में 394,802 बच्चों की असमय मृत्यु हुई है। इनमें से 254,976 मौतें उप-सहारा अफ्रीका में दर्ज की गई हैं।

विश्व बैंक ने भी पुष्टि की है कि पानी और स्वच्छता तक असमान पहुंच की लागत अर्थव्यवस्था और मानव विकास दोनों के लिए बहुत अधिक है।

आंकड़ों के मुताबिक 2050 तक, पानी की कमी उप-सहारा अफ्रीका के सकल घरेलू उत्पाद में छह फीसदी की गिरावट की वजह बन सकती है। गौरतलब है कि यह वो क्षेत्र है जो दुनिया में मातृ मृत्यु का आधा बोझ ढो रहा है।

दूषित पानी, स्वच्छता और सफाई की कमी के चलते डायरिया जैसी बीमारियां अधिक होती हैं, जो अभी भी इस क्षेत्र में बच्चों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। यह बीमारियां इस क्षेत्र में बच्चों की आठ फीसदी मौतों के लिए जिम्मेवार है। विश्व बैंक के अनुसार, इस क्षेत्र में करीब 35 फीसदी बच्चे अपने आयु के दूसरे बच्चों के मुकाबले ठिगने हैं। आंशिक रूप से इसकी एक वजह दूषित पानी और साफ-सफाई एवं स्वच्छता की कमी है।

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) ने अपनी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 रिपोर्ट में खुलासा किया है कि दूषित पानी, साफ-सफाई की कमी और हाथ धोने पर ध्यान ने देने से 6.28 करोड़ विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों का नुकसान हुआ था। बता दें कि एक विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष पूरे एक वर्ष के लिए स्वास्थ्य को हुई हानि के बराबर है।

इसका सबसे ज्यादा असर अफ्रीका में देखने को मिला। आंकड़ों के अनुसार अफ्रीका में विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों का यह नुकसान 3.66 करोड़ वर्ष रहा, जोकि दुनिया को हुए कुल नुकसान का करीब 58 फीसदी था।

वहीं एशिया में यह आंकड़ा 39 फीसदी दर्ज किया गया। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दूषित पानी, साफ-सफाई और हाथ धोने पर पर्याप्त ध्यान ने दिए जाने के कारण दुनिया भर में 12 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इनमें से करीब 44 फीसदी मौतें अफ्रीका में जबकि 53 फीसदी एशिया में हुई थी।

इसकी वजह से होने वाली कुल मौतों को देखें तो भले ही एशिया ऊपर है, लेकिन जब मृत्यु दर की बात आती है तो अफ्रीका में यह बोझ कहीं ज्यादा है, जहां प्रति लाख आबादी पर कम से कम 38 लोग साफ पानी और साफ-सफाई की कमी के चलते काल के गाल में समा रहे हैं। वहीं एशिया में यह आंकड़ा 12 दर्ज किया गया है। अफ्रीका में करीब पांच फीसदी मौतों के लिए दूषित पानी, हाथ धोने की पर्याप्त सुविधा का आभाव और स्वच्छता की कमी जिम्मेवार है। वहीं वैश्विक रूप से यह आंकड़ा औसतन 1.79 फीसदी है।

रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका में दूषित पानी और स्वच्छता की कमी के चलते होने वाली मौतों का प्रतिशत सबसे अधिक है। एशिया में, इनकी वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा 1.75 फीसदी है, जो वैश्विक औसत से कम है। वहीं अमेरिका में यह आंकड़ा 0.32 फीसदी, जबकि यूरोप में 0.06 फीसदी रिकॉर्ड किया गया है।

इतना ही नहीं यह भी आशंका है कि साफ पानी और स्वच्छता का आभाव अफ्रीका के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को पांच फीसदी को चोट पहुंचा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि, “स्वच्छता पर खर्च किए हर एक डॉलर से छह गुना फायदा हो सकता है। इसे 2008 में मान्यता मिली थी, जब 52 अफ्रीकी देशों ने अफ्रीका के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर हुई लिब्रेविल घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे।“

हालांकि, नवंबर 2018 में गैबॉन में स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आयोजित तीसरे अंतर-मंत्रालयी सम्मेलन में 2019 से 2029 के लिए अपनाई गई रणनीतिक कार्य योजना से पता चला है कि इन प्रयासों के लिए उपलब्ध वित्तीय संसाधन सीमित है।

स्वच्छता के क्षेत्र में अफ्रीका के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुले में शौच को रोकना है। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम (जेएमपी) द्वारा एक जुलाई 2021 को जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में खुले में शौच करने वाले 49.4 करोड़ लोगों में से करीब 19.6 करोड़ लोग उप-सहारा अफ्रीका से हैं।

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि उप-सहारा अफ्रीका में स्वच्छता का अभाव है। इस क्षेत्र में करीब 100 करोड़ लोगों के आसपास पास पर्याप्त साफ-सफाई और स्वच्छता का आभाव है। वहीं उप-सहारा अफ्रीका में अधिकांश लोगों के पास स्वच्छता संबंधी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। यूनिसेफ के अनुसार, 'बुनियादी स्वच्छता' का अर्थ है स्वच्छता से जुड़ी उन बेहतर सुविधाओं के उपयोग से है जिसे अन्य घरों के साथ साझा नहीं किया जाता।" उदाहरण के लिए हर घर के लिए अपना शौचालय।  

यह सही है कि उप-सहारा अफ्रीका में खुले में शौच की दर 32 फीसदी से घटकर 18 फीसदी पर पहुंच गई है। लेकिन, अब पहले से कहीं ज्यादा लोग गंदे और खराब शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं, जिनकी दर 45 फीसदी से बढ़कर 50 फीसदी पर पहुंच गई है।

जेएमपी रिपोर्ट में दी परिभाषा के अनुसार अन्य घरों के साथ साझा की जाने वाली बेहतर सुविधाओं का उपयोग 'सीमित स्वच्छता' है। यूनिसेफ के मुताबिक स्वच्छता से जुड़ी यह प्रथाएं सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि अक्सर समुदाय इन असुरक्षित तरीकों का उपयोग करने के बाद दोबारा खुले में शौच करने लगते हैं।

इन देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में जहां अधिकांश आबादी बसती है, वहां स्थिति ऐसी ही है। बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का मतलब है कि निजी स्वच्छ शौचालयों का उपयोग, जो अन्य घरों के साथ साझा नहीं किए जाते। साथ ही इनमें अपशिष्ट का उचित तरीके से निपटान और प्रबंधन किया जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक उप-सहारा अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच का आंकड़ा 47 फीसदी से घटकर 27 फीसदी पर पहुंच गया है। लेकिन कई लोग अभी भी ऐसे शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं जो सुरक्षित नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान द्वारा किए एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक खुले में शौच और अपशिष्ट का उचित प्रबंधन न करने की वजह से इससे जुड़ी बीमारियां अफ्रीका में हर घंटे 115 लोगों की जाने ले रही है।

(यह लेख स्टेट ऑफ अफ्रीका एनवायरमेंट रिपोर्ट 2024 से लिया गया है। आप इस रिपोर्ट को यहां से निःशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं)