भारत की शहरी आबादी के सामने एक बड़ी चुनौती है-अपने ठोस कचरे का निपटान करना। भारत की शहरी आबादी प्रति वर्ष 3-3.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और ऐसे में शहरी कचरे के प्रति वर्ष 5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की आशंका है। लेकिन शहरों के पास इस कचरे के निपटान के लिए कोई जगह या साधन नहीं है। यह चुनौती बहुत भयंकर होने वाली है।
के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली योजना आयोग की समिति ने 2014 की रिपोर्ट में यह पाया कि भारत की शहरी आबादी के लिए प्रति व्यक्ति 0.45 किग्रा. प्रतिदिन के आधार पर प्रतिवर्ष 62 बिलियन टन सार्वजनिक ठोस कचरा (एमएसडब्लयू) उत्पन्न होता है। सीपीसीबी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत प्रत्येक वर्ष 52 मिलियन टन अथवा प्रतिदिनलगभग 0.144 मिलियन टन कचरा उत्पन्न करता है,जिसमें से लगभग 23 कचरे को भराव क्षेत्र में ले जाया जाता है अथवा विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करके प्रसंस्कृत किया जाता है।
भारत में उत्पन्न कचरे से संबंधित आंकड़ों की समस्या यह है कि ये सभी आंकड़े सीपीसीबी की 2004-05 की59 शहरों (35 महानगर और 24 राज्य राजधानियां) की रिपोर्टों से लिए गए हैं जिसमें नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने सहायता की है। यह देश में उत्पन्न ठोस कचरे के वास्तविक आंकड़ों और अनुमानों की आखिरी रिपोर्ट थी। इससे पता चलता है कि देश में उत्पन्न कचरे के अनुमान काफी हद तक अटकलबाजी पर आधारित हैं।
स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग साफ-सफाई के आधार पर 434 शहरों को दी जाती है। इस वार्षिक रैंकिंग में सबसे खराब अपशिष्ट प्रबंधन वाले शहरों को ऊपर स्थान दिया जाता है जबकि कचरे के निपटान का उचित प्रबंधन करने वाले शहरों को नीचे स्थान दिया जाता है। रैंकिंग के अनुसार, इंदौर देश का सबसे साफ शहर है। यह स्थिति तब है जब इस शहर में ठोस अपशिष्ट के प्रसंस्करण या निपटान की कोई मूलभूत सुविधा मौजूद नहीं है। इंदौर इकलौता ऐसा मामला नहीं है बल्कि स्वच्छ सर्वेक्षण में शामिल शीर्ष 50 शहरों में से अधिकांश की यही कहानी है। कचरा इकट्ठा करने और उसे लाने-ले जाने के तरीके पर ज्यादा जोर दिया जाता है जबकि वास्तव में ऐसे केंद्रीकृत मॉडल पर ध्यान देना चाहिए जिसमें कचरे के निपटान पर जोर दिया जाए।
सीपीसीबी के अनुमानों के अनुसार, 90 प्रतिशत भारतीय शहरों में जहां कचरा इकट्ठा करने की व्यवस्था है, वहां कचरे का निपटान भराव क्षेत्र में किया जाता है। ये भराव क्षेत्र निर्धारित स्वच्छता मानदंडों के अनुसार नहीं बनाए गए हैं। वर्ष 2008 में सीपीसीबी ने शहरों की निगरानी के दौरान यह पाया कि 59 में से 24 शहर 1,900 हेक्टेयरमें फैले भराव क्षेत्र का इस्तेमाल कर रहे थे। अन्य 17 ने भी भराव क्षेत्रों का निर्माण करने की योजना बना रखी थी।शहरों में जमीन की कमी को देखते हुए नगर पालिकाएं अपने अपशिष्ट का निपटारा करने के लिए अन्य जगहों की खोज कर रहे थे।
वर्ष 2009 में, आर्थिक कार्य विभाग के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी स्थिति पत्र में यह बताया गया है कि भारत की शहरी आबादी पहले ही प्रतिदिन 80,000 मीट्रिकटन कचरे का उत्पादन कर रही थी। यह दर्शाता है कि 2047 तक भारत एक वर्ष में 260 मिलियन टन कचरे का उत्पादन करेगा जिसका निपटान करने के लिए 1,400 वर्ग मीटर के भराव क्षेत्र की आवश्यकता होगी । यह क्षेत्र हैदराबाद, मुंबई और चेन्नई को मिलाकर बने क्षेत्र के बराबर होगा। विनियमों के बावजूद, कुल मिलाकर स्थिति यह है कि भारत में भराव क्षेत्रों को बढ़ावा दिया गया है। वर्तमान में, अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नगर निगमों द्वारा निजी ठेकेदारों को जो ठेके दिए जाते हैं उनमें ठेका लेने वालों को ज्यादा से ज्यादा कचरा लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ठेके में शुल्क का भुगतान कचरा ले जाने वालेवाहनोंकी आवाजाही के अनुसार मिलता है। जितना ज्यादा कचरा लाएंगे उतना ज्यादा शुल्क मिलेगा। भूमि की लागत और इसकी उपलब्धता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
कई देशों में इस सवाल का जवाब इस व्यवस्था को बदलकर दिया गया है। कचरे से संबंधित शुल्क का भुगतान इसे इकट्ठा करने या लाने-ले जाने के लिए नहीं किया जाता बल्कि कचरे के निपटान के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए स्वीडन और अमेरिका में भराव क्षेत्र में कचरा फेंकने के लिए भारी प्रवेश शुल्क वसूल किया जाता है। स्वीडन में भराव क्षेत्र कर भी लगाया जाता है। भारी भरकम प्रवेश शुल्क नगर निगमों को भराव क्षेत्र में कचरा फेंकने से रोकता है। वर्ष 2013 में स्वीडन में कचरा फेंकने के लिए औसतन 212 डॉलर प्रति टन वसूले जाते थे जबकि इसकी तुलना में अमेरिका में 150 डॉलर प्रति टन वसूले जाते थे।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली,2016 में यह स्वीकार किया गया है कि भराव क्षेत्र का इस्तेमाल केवल ऐसे कचरे के लिए किया जाएगा जिसका“दोबारा उपयोग न किया जा सके, नवीनीकृत न किया जा सके, जैविक रूप से नष्ट होने योग्य न हो, ज्वलनशील न हो तथा रासायनिक प्रतिक्रिया न करता हो।”इसमें यह भी कहा गया है कि “भराव क्षेत्र से कचरा समाप्त करने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए कचरे में पुन: उपयोग या उसे नवीनीकृत करने के प्रयास किए जाएंगे।” यह भराव क्षेत्र की आवश्यकता पर जोर देने की पुरानी नीति को हटाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भराव क्षेत्र के इस्तेमाल को न्यूनतम करने के लिए भराव क्षेत्र कर लगाएं, अपशिष्ट कचरे के निपटान के लिए साफ-सुथरे भराव क्षेत्र बनाएं जाएं ताकि प्रदूषण कम हो। नवनिर्मित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का लक्ष्य कचरा मुक्त भराव क्षेत्र सुनिश्चित करना होना चाहिए।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली,2016 में यह स्वीकार किया गया है कि भराव क्षेत्र का इस्तेमाल केवल ऐसे कचरे के लिए किया जाएगा जिसका“दोबारा उपयोग न किया जा सके, नवीनीकृत न किया जा सके, जैविक रूप से नष्ट होने योग्य न हो, ज्वलनशील न हो तथा रासायनिक प्रतिक्रिया न करता हो।” इसमें यह भी कहा गया है कि “भराव क्षेत्र से कचरा समाप्त करने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए कचरे में पुन: उपयोग या उसे नवीनीकृत करने के प्रयास किए जाएंगे।” यह भराव क्षेत्र की आवश्यकता पर जोर देने की पुरानी नीति को हटाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। ये स्रोत पर ही कचरे को अलग करने का उल्लेख करते हैं। इस नियमावली में निर्धारित किया गया है कि शहरी स्थानीय निकायों को कचरा उत्पन्न करने के लिए प्रयोक्ता शुल्क लगाना चाहिए तथा इन नियमों का उल्लंघन करने वाले अथवा पालन न करने वालों पर दंड लगाना चाहिए।
(साथ में स्वाति सिंह)