स्वच्छता

खुले में शौच, अपराध या बुराई?

खुले में शौच मुक्त करने के लिए जिस तरह प्रचार का सहारा लिया गया है, उसके चलते कुछ इलाकों में आपराधिक घटनाएं तक हुई हैं

Anil Ashwani Sharma

बेशक खुले में शौच करना एक बुराई है, लेकिन क्या यह अपराध भी है। 25 सितंबर 2019 को मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में खुले में शौच करते दो बच्चों की मौत के बाद यह सवाल फिर से खड़ा हो गया है। इसके लिए काफी हद तक सरकार द्वारा किया जा रहा प्रचार भी जिम्मेवार माना जा रहा है।

आपने खुले में शौच के खिलाफ बहुप्रचारित विज्ञापन देखा होगा, जिसमें अमिताभ बच्चन खेतों में शौच करते लोगों के ऊपर पत्थर फेंकते हैं और वे भाग जाते हैं। क्या अब यही पत्थर आम जनता की जान ले रहा है? 25 सितंबर, 2019 को मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक ऐसा ही दर्दनाक मंजर देखने में आया। इसके लिए जिम्मेदार खुले में शौच को बताया जा रहा है, लेकिन यहां ध्यान देने की बात है कि ऐसी ही एक घटना जब हुई थी तब भारत में स्वच्छता अभियान अपने लक्ष्य के आधे रास्ते को पार कर चुका था। वह तारीख थी 16जून, 2017।

डाउन टू अर्थ ने तब इस घटना का विवरण विस्तार से न केवल प्रकाशित किया, बल्कि इसका एक सामाजिक विश्लेषण भी किया था। 16 जून, 2017 को अलसुबह महताब शाह कच्ची बस्ती में यह घटना घटी। यह बस्ती राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में है। नगर परिषद के तीन कर्मचारियों के साथ-साथ कमिश्नर अशोक जैन स्वयं उपस्थित थे। सबकी निगाहें सामने टिकी हैं जहां झुग्गियों से लोग निकल रहे थे। जैसे ही कुछ महिलाएं नित्य क्रिया से निवृत्त होने हेतु एक खुले मैदान में बैठी थी कि निगम कर्मचारी तस्वीरें खींचना शुरू कर देते थे। ऐसा करते हुए महिलाएं अधिकारियों के हाथ पैर जोड़ने लगी।

तब ही, वहां एक अधेड़ सामाजिक कार्यकर्ता जफर हुसैन उनकी मदद को आगे आए। अधिकारियों को उनकी यह हरकत नागवार गुजरी थी और यह हस्तक्षेप एक उग्र झगड़े की शक्ल अख्तियार कर लिया। कुछ घंटे बीतने के बाद जफर हुसैन को मृत घोषित कर दिया गया। वह अपने पीछे पत्नी रशीदा और दो बेटियों को छोड़ गए।

देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद डाउन टू अर्थ ने अपने विश्लेषण में पाया कि अत्यधिक दबाव की वजह से कर्मचारी हर तरह के हथकंडे अपना रहे थे। खुले में शौच कर रहे लोगों को देखकर सीटी बजाने से लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत मिलनेवाली सुविधाओं से वंचित रखा जाना इनमें प्रमुख था। यही नहीं, कुछ “कसूरवारों” को तो भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किए जाने के कई मामले भी सामने आए। स्वच्छ भारत मिशन के कर्मचारियों द्वारा धड़ल्ले से प्रयोग में लाई जा रही दमनकारी हरकतें दिशानिर्देशों के बिल्कुल विपरीत।

स्वच्छता अभियान के दौरान बीते पांच सालों में सरकारी अधिकारियों द्वारा अपनाए जा रहे कुछ हथकंडे तो आम नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों का हनन तक किया। मिसाल के तौर पर छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के कपासी गांव में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं जो खुले में शौच कर रहे लोगों पर नजर रखा जाता था। अब भला ग्राम पंचायत क्यों पीछे रहे। खुले में शौच करने वाले “अपराधियों” पर 500 रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया। यही नहीं, ऐसी घटनाओं के बारे में जानकारी देनेवाले पुरस्कार के भी हकदार होते हैं।

पश्चिम बंगाल का नदिया जिला तो एक कदम और भी आगे निकला, जहां प्रशासन एवं कुछ चुनिंदा ग्राम पंचायतों ने एक वाल ऑफ शेम (शर्म की दीवार) बनाई जिस पर खुले में शौच कर रहे लोगों के नाम एवं तस्वीरें लगाई जाती थीं। ओडिशा के एक मानवाधिकार संगठन, सोलिडेरिटी फॉर सोशल इक्वेलिटी के कार्यकारी निदेशक प्रशांत कुमार होता ने बताया “यह संविधान के इक्कीसवीं अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत निजता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।” इस अनुच्छेद के मुताबिक “किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या दैहिक स्वतंत्रता से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता है जब तक ऐसा करना विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत न हुआ हो।”

छत्तीसगढ़ में जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़ी कार्यकर्ता सुलक्षणा नंदी तो बताती हैं कि कई जिलों में ऐसे हथकंडों को जिला प्रशासन एवं राज्य सरकारों का संरक्षण प्राप्त है। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में अधिकारियों ने करीब दो हजार प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर के स्कूली छात्रों को निर्देश दिया है कि वे खुले में शौच करनेवाले अपने परिवारजनों एवं पड़ोसियों के नाम गोपनीय तौर पर जमा करें।

स्वच्छता के मुद्दे को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने अमिताभ बच्चन, कंगना राणावत, शिल्पा शेट्टी, रवि किशन, ईशा कोप्पिकर एवं अनुष्का शर्मा जैसी नामचीन हस्तियों की सहायता ली है। जनता को खुले में शौच करने से उत्पन्न होनेवाली समस्याओं के बारे में जागरूक कर पाने में ये विज्ञापन कितने सफल हो पाए हैं, इसका अभी से अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। ऐसी आशंका जरूर प्रकट की जा रही है कि ऐसे विज्ञापन “दीन-हीन एवं मैले” लोगों के प्रति एक घृणा का भाव उत्पन्न कर सकते हैं। जादूगर वाले प्रचार में बच्चाजी बच्चनजी से गुजारिश करता है कि वे जादूगर फिल्म की शूटिंग के दौरान सीखा हुआ कोई जादू दिखाएं। जादूगर के रूप में अमिताभ बच्चन एक वृक्ष की ओर पत्थर फेंकते दिखते हैं जिसके कारण चिड़िया अपने घोंसलों से डरकर उड़ जाती हैं। बच्चनजी का यह कमजोर जादू बच्चाजी को प्रभावित कर पाने में असफल रहता है और वे स्वयं दूसरी दिशा में एक पत्थर फेंकते हैं। उनके ऐसा करते ही हाथों में बाल्टियां एवं मग्गे लिए लोग नजर आते हैं। यहां यह बताने की जरूरत शायद न हो कि यह जनता खुले में शौच करने की अपराधी है और पत्थर खा रही है। अब यह प्रचार अकेले पत्थर फेंकने तक सीमित न रह कर खुले में शौच करने वालों को ही खत्म कर रहे है।

 (साथ में, सुष्मिता सेनगुप्ता, रश्मि वर्मा, स्निग्धा दास)