स्वच्छता

मेडिकल कचरे का सुरक्षित प्रबंधन नहीं कर रहे हैं एक तिहाई अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र

रिपोर्ट के अनुसार महामारी की पहली लहर के दौरान भारत में हर रोज 710 टन मेडिकल कचरा पैदा हो रहा था, जिसका करीब 17 फीसदी हिस्सा कोविड-19 से जुड़ा कचरा था

Lalit Maurya

दुनिया में करीब एक तिहाई अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले संस्थान अपने मेडिकल वेस्ट का सुरक्षित तरीके से प्रबंधन नहीं कर रहे हैं। वहीं पिछड़े देशों में करीब 60 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाएं अपने मेडिकल कचरे का उचित प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। यह कचरा न केवल स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा है। 

ऐसे में कोविड-19 महामारी के कारण पैदा होने वाले हजारों टन अतिरिक्त चिकित्सा सम्बन्धी कचरे ने समस्या को और गंभीर बना दिया है। इसके कारण मेडिकल वेस्ट के निपटान में जुड़ी प्रणालियों पर दबाव पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गया है। यह जानकारी आज विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘ग्लोबल एनालिसिस ऑफ हेल्थ केयर वेस्ट इन द कॉन्टेक्स्ट ऑफ कोविड-19’ में सामने आई है।

गौरतलब है कि जहां एक तरफ इस महामारी के दौर में फेस मास्क, दस्ताने, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई), इंजेक्शन और दवाओं की मांग काफी बढ़ गई है।  जिसने लोगों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है पर साथ ही इनके बढ़ते इस्तेमाल से जो कचरा पैदा हो रहा है उसका उचित प्रबंधन न करने से नई समस्याएं पैदा हो गई हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 से नवंबर 2021 के बीच करीब 150 करोड़ पीपीई किट खरीदे गए थे, जिनका कुल वजन करीब 87,000 टन था। इन पीपीई किट को संयुक्त राष्ट्र की मदद से अन्य देशों को भेजा गया था। देखा जाए तो यह इस दौरान वैश्विक स्तर पर प्रयोग किए गए पीपीई किट का एक छोटा सा ही हिस्सा था। हालांकि इसमें से ज्यादातर को इस्तेमाल के बाद कचरे में फेंक दिया गया था।    

इतना ही नहीं 14 करोड़ से अधिक परिक्षण किट जिनके चलते करीब  2,600 टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो सकता है जबकि 731,000 लीटर केमिकल भेजे गए थे जिनसे ओलिंपिक खेलों में प्रयोग किए जाने वाले स्विमिंग पूल के एक तिहाई हिस्से को भरा जा सकता है।

इसी तरह वैक्सीन की करीब 800 करोड़ खुराकें दुनिया भर में वितरित करने के लिए भेजी गई थी। इतना ही नहीं जो सिरिंज, सुई और सिक्योरिटी बॉक्स भेजे गए थे उनसे करीब 1,44,000 टन अतिरिक्त कचरा पैदा होने की सम्भावना है। 

भारत में हर रोज पैदा हो रहा था 710 टन मेडिकल वेस्ट

इस रिपोर्ट में कोविड-19 के चलते भारत में पैदा होने वाले मेडिकल वेस्ट का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार महामारी की पहली लहर के दौरान भारत में हर रोज 710 टन मेडिकल कचरा पैदा हो रहा था, जिसका करीब 17 फीसदी हिस्सा कोविड-19 से जुड़ा कचरा था। इसका मतलब है कि इस दौरान हर रोज कोविड-19 से जुड़ा करीब 101 टन मेडिकल वेस्ट पैदा हो रहा था। वहीं नियमित स्वास्थ्य सेवाएं भी रोजाना करीब 609 टन मेडिकल वेस्ट उत्पन्न कर रही थी।

यदि दिल्ली की बात करें तो हर रोज भारत में जितना कोविड से जुड़ा मेडिकल कचरा पैदा हो रहा है उसका 11 फीसदी अकेले दिल्ली में पैदा हो रहा है। हालांकि दिल्ली में इसे जलाने के लिए केवल दो सुविधाएं मौजूद हैं। महामारी की पहली लहर में इनकी क्षमता का करीब 70 फीसदी उपयोग किया जा रहा था।

वहीं कई शहरों में जहां कोविड के ज्यादा मामले सामने आए थे, वहां अपशिष्ट के निपटान के लिए जो सुविधाएं मौजूद थी वो कचरे की बढ़ी हुई मात्रा को संभालने में असमर्थ थी जिस वजह से इस कचरे को औद्योगिक और सेंटल वेस्ट ट्रीटमेंट सेंटर में भेज दिया गया था। 

महामारी का यह ऐसा दौर था जिसमें संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ देश भी पीपीई की आपूर्ति और उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जूझ रहे थे। ऐसे में इससे पैदा होने वाले कचरे और उसके ठीक तरह से सुरक्षित निपटान पर बहुत कम ध्यान दिया गया था। 

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के हेल्थ इमर्जेंसी प्रोग्राम के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर माइकल रयान का कहना है कि यह सही है कि स्वास्थ्य कर्मियों को सही पीपीई किट प्रदान करना महत्वपूर्ण है। लेकिन इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि उसे इस तरह से सुरक्षित रूप से उपयोग किया जाए कि वो आसपास के पर्यावरण को प्रभावित न करे। 

इससे पहले जर्नल पनास में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर कोविड-19 महामारी से जुड़ा करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ था जिसमें से 25,000 टन समुद्रों में समा चुका है। इनमें से ज्यादातर प्लास्टिक वो मेडिकल वेस्ट है जिसका इस्तेमाल अस्पतालों और लोगों द्वारा महामारी से बचाव के लिए किया गया था।

क्या है इस बढ़ते कचरे का समाधान

रिपोर्ट में कोविड-19 से निपटने और भविष्य में सामने आने वाली महामारियों की तैयारी में अपशिष्ट के भी बेहतर, सुरक्षित और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए निपटान को शामिल किए जाने पर बल दिया गया है।

इसमें जो सिफारिशें की गई हैं उनमें पर्यावरण अनुकूल पैकेजिंग, शिपिंग, सुरक्षित और दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाले पीपीई (जैसे, दस्ताने और मेडिकल मास्क) को शामिल करने के लिए कहा गया हैं जिन्हें रीसायकल किया जा सके या फिर उनके निर्माण में बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग किया जाए।

साथ ही जिन तकनीकों के जरिए कचरे को जलाए बिना निपटान किया जा सकता है उन पर निवेश की बात कही गई है। इसी तरह प्लास्टिक कचरे जैसी वस्तुओं को सुरक्षित तरीके से रीसायकल की बात भी कही गई है। 

इसी तरह रिपोर्ट में पीपीई के सुरक्षित और तर्कसंगत तरीके से उपयोग की बात कही गई है जिससे न केवल कचरे से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके साथ ही इससे पैसे की बचत भी हो सके। इससे आपूर्ति की संभावित कमी घटेगी और व्यवहार में बदलाव से संक्रमण को रोकने में भी मदद मिलेगी।