स्वच्छता

मलबे के ढेर में दबता देश-1: कानून की नहीं है किसी को फिक्र

देशभर में नई इमारतों के निर्माण और तोड़फोड़ से निकले मलबे का ढेर बढ़ता जा रहा है। इससे निपटने के लिए नियम-कायदे भी हैं, इनकी पड़ताल करती डाउन टू अर्थ की सीरिज-

Avikal Somvanshi

अगर आप अपने आसपास नजर दौड़ाएंगे तो कम-से-कम एक ऐसी जगह जरूर दिख जाएगी जहां निर्माण कार्य चल रहा होगा। भारत के शहरी इलाकों में इमारतें बनाने की होड़-सी चल रही है। लेकिन कोई भी इन बड़ी या बदसूरत इमारतों के बदले सेहत को नुकसान न पहुंचाने वाली इमारतें नहीं बनाना चाहता। इसकी वजह है, आबादी में बढ़ोतरी, जमीन की लागत बढ़ना और पैसे तक आसान पहुंच। लेकिन इस विकास के कारण ढांचों के बनने और टूटने (सीएंडडी) से मलबे का ढेर भी बढ़ता जा रहा है और लोगों को समझ नहीं आ रहा कि इसका करें क्या।

दक्षिणी दिल्ली के कैलाश कॉलोनी इलाके में पुनर्विकास परियोजना के सुपरवाइजर अनिल कुमार कहते हैं, “मलबा हटाने के लिए मैंने एक ट्रांसपोर्टर रखा हुआ है, लेकिन मुझे नहीं पता कि वह इसका क्या करेगा। इसकी चिंता करना मेरा काम नहीं है।” ट्रांसपोर्टर यह बताने से इनकार कर देता है कि वह इस मलबे को कहां फेंकेगा। लेकिन सब जानते हैं कि यह कचरा दिल्ली-फरीदाबाद सीमा पर अरावली में फेंक दिया जाएगा। शायद कुमार 29 मार्च, 2016 को अधिसूचित सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली के बारे में नहीं जानते जिसमें कचरे के निपटान की जिम्मेदारी सभी संबंधित पक्षों को सौंपी गई है फिर चाहे वह छोटा कारोबारी हो, नगर निगम हो या सरकार ही क्यों न हो। यह नियमावली मलबे के पुनर्चक्रण को अनिवार्य बनाती है तथा निर्धारित क्षेत्रों के बाहर कचरे के निपटान को गैर-कानूनी घोषित करती है।

पुनर्चक्रण संयंत्र मलबे को इस्तेमाल करने योग्य रेत और बजरी में बदल देते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो ने इन्हें कंक्रीट मिश्रण में प्राकृतिक रेत का अच्छा विकल्प माना है। बेंगलुरु स्थित निजी सीएंडडी अपशिष्ट पुनर्चक्रण सुविधा रॉक क्रिस्टल के मालिक राजेश के. कहते हैं, “ कचरे का पुनर्चक्रण एक अच्छा व्यवसाय है और इसमें मुनाफा भी अच्छा होता है।” उन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के संगठित पुनर्चक्रण को फायदेमंद कारोबार में बदला है। किसी अन्य तरह के कचरे का पुनर्चक्रण करने से ऐसा फायदा होने के बारे में पहले कभी नहीं सुना गया है। फिर भी दिल्ली और अहमदाबाद के अलावा किसी अन्य शहर में सीएंडडी अपशिष्ट पुनर्चक्रण की आधिकारिक सुविधा मौजूद नहीं है। क्या 2016 की नियमावली का पालन हो रहा है? अप्रैल 2019 तक भारत के सभी शहरों में कचरा इकट्ठा करने, उसे उचित स्थान पर ले जाने और उसके पुनर्चक्रण का आधारभूत ढांचा उपलब्ध होगा।

दिल्ली में तीन पुनर्चक्रण संयंत्र हैं- बुराड़ी, मुंडका और शास्त्री पार्क में। रानी खेड़ा, बक्करवाल और उत्तरी दिल्ली में कुल तीन संयंत्र स्थापित करने के लिए कार्यवाही चल रही है। शहर में कचरा इकट्ठा करने के लिए 168 स्थान निर्धारित किए गए हैं। इनमें से आधे से अधिक उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) के अंतर्गत आते हैं। शहर की तीनों नगर निगमों में से सबसे अमीर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) में केवल एक जगह पर पुनर्चक्रण सुविधा मौजूद है। कोई नहीं जानता, यहां तक कि कुमार भी नहीं जानते कि कचरा इकट्ठा करने वाली जगह आखिर है कहां।

इसी तरह, अहमदाबाद में मलबा इकट्ठा करने के लिए जो चार जगह तय की गई हैं उनके बारे में यहां के 80 लाख लोगों को कोई जानकारी नहीं है। जब डाउन टू अर्थ ने अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के डिप्टी कमिश्नर मुकेश गढ़वी से पूछा कि शहर के ठोस कचरे का प्रबंधन कौन करता है तो उनका जवाब चौंकाने वाला था, “एएमसी को एक हफ्ते का समय दीजिए ताकि हमारे अधिकारी इसका जवाब तैयार कर सकें।” इस सवाल का तो उन्होंने जवाब ही नहीं दिया कि यह जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध क्यों नहीं कराई गई है। इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट होता है कि कचरे के प्रबंधन के बारे में जनता में जागरुकता की कमी क्यों है।

जागरुकता का अभाव

कुछ ही लोग जानते हैं कि मलबा कहां फेंका जाए और उससे भी कम लोगों को यह पता है कि मलबे का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। अहमदाबाद स्थित सीईपीटी विश्वविद्यालय की आर्किटेक्चर फैकल्टी के डीन सूर्य ककानी कहते हैं, “मुझे हाल ही में पता चला कि इस शहर में सीएंडडी अपशिष्ट पुनर्चक्रण सुविधा मौजूदा है, और यह जानकर अचंभा हुआ कि यह 2013 से अस्तित्व में है और वह भी शहर से केवल 13 किमी. की दूरी पर।” ककानी अपनी परियोजनाओं के मलबे का पुनर्चक्रण के लिए शहर से 60 किमी. दूर एक निजी संस्था में भेजते हैं। उनका अपना दफ्तर भी कचरे का दोबारा इस्तेमाल करके बनाई गई ईंटों से बना है।

चेन्नै में कुछ ही लोगों को पता है कि चेन्नै नगर निगम (सीएमसी) ने कचरा इकट्ठा करने के लिए 15 स्थान निर्धारित किए हैं। यह लोगों द्वारा बताई गई जगह से कचरा उठवाने की सुविधा भी देता है। जून 2018 में दो सप्ताह के लिए चलाए गए अभियान के दौरान 258 जगहों पर गैर-कानूनी रूप से मलबा पड़ा मिला और ऐसा करने वालों से जुर्माने के तौर पर 5 लाख रुपए इकट्ठे किए गए। संभवत: शुल्क और जुर्माने की रकम में असमानता के कारण ऐसा हुआ था। ठोस कचरे के प्रबंधन पर काम कर रहे चेन्नई स्थित पर्यावरणविद धर्मेश शाह कहते हैं, “एक टन कचरा हटाने में 1,500 रुपए लगते हैं जबकि गैर-कानूनी रूप से इसे फेंकने के लिए 2,000 रुपए जुर्माना देना पड़ता है जो लोगों को सस्ता पड़ता है।”

कोलकाता में ऐसा नहीं है। न्यू टाउन कोलकाता डेवलपमेंट अथॉरिटी (एनकेडीए) कचरा हटाने के लिए प्रति टन 2,000 रु. किराया लेती है जबकि गैर-कानूनी रूप से कचरे का निपटान करने पर 50,000 रुपए का भारी भरकम जुर्माना वसूल करती है। भुगतान में देरी होने पर 10,000 रुपए प्रतिदिन की दर से अतिरिक्त जुर्माना देना पड़ता है। पास ही के कोलकाता नगर निगम (केएमसी) ने कचरे का प्रबंधन अनिवार्य बना दिया है। यहां के निवासियों को यह बताना होता है कि निर्माण कार्य कब तक पूरा होगा और अनुमानित कचरे के लिए 1,600 रुपए प्रति ट्रक के हिसाब से जमा कराने होते हैं। इसे केवल भवन परिसर में या किसी को परेशान किए बिना सड़क किनारे रखा जाता है। यहां से केएमसी से उठवाती है। लेकिन फिर भी सवाल वही है, यहां से मलबा जाता कहां है?

अगला भाग पढ़ें: मलबे के ढेर में दबता देश-2: दलदली भूमि पर किया जा रहा है डंप

शाह कहते हैं, “कोलकाता और चेन्नै में मलबे को बस एक जगह से दूसरी जगह फेंक दिया जाता है क्योंकि यहां कोई पुनर्चक्रण संयंत्र नहीं है। मुंबई में मलबे का अनुचित निपटान न केवल परेशानी का कारण है बल्कि इसने यहां की पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील दलदली भूमि को भी प्रभावित किया है।”

जारी ....