विवेक मिश्रा
खतरनाक और जहरीले औद्योगिक कचरे को लेकर सरकारें संवेदनशील नहीं हैं। तांबा गलाने के बाद निकलने वाले जहरीले कचरे के विरुद्ध नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में एक ऐसे ही खतरनाक कचरे का मामला पहुंचा है। साइनाइड और फ्लोराइड युक्त यह जहरीला कचरा स्पेंट पॉट लाइनिंग (एसपीएल) कहलाता है। तांबा गलाने वाले छोटे-बड़े प्लांट इस जहरीले कचरे के जनक हैं। खतरनाक कचरा प्रबंधन कानून लागू होने के बावजूद इसके संग्रहण, भंडारण और निपटारे की कोई बेहतर और वैज्ञानिक व्यवस्था राज्यों में नहीं है। एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस मामले पर जांच कर अपनी रिपोर्ट ट्रिब्यूनल में दाखिल करने का आदेश दिया है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने खतरनाक और जहरीले औद्योगिक कचरे के विरुद्ध आवाज उठाने वाले याची अशोक कुमार पत्जोशी की याचिका पर अगली सुनवाई 26 अगस्त को तय की है। याची अशोक कुमार पत्जोशी का आरोप है कि तांबा उद्योग के प्लांट से निकलने वाले इस कचरे का न सिर्फ वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल होना चाहिए बल्कि इसके जहर को भी खत्म किया जाना चाहिए। खतरनाक कचरा प्रबंधन कानून, 2016 के तहत एसपीएल को जहरीले रसायन की श्रेणी में रखा गया है।
वहीं, पीठ ने कहा कि उन्होंने पूर्व में राजीव नारायण बनाम भारत सरकार मामले में सभी राज्यों को खतरनाक कचरा प्रबंधन का आदेश सुनाया था। साथ ही सभी राज्यों को पर्याप्त क्षमता वाले उपचार, भंडारण और निपटान सुविधा केंद्रों (टीएसडीएफ) को स्थापित करने का भी आदेश दिया था। इसकी निगरानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ही करनी थी। ऐसे में एनजीटी ने सीपीसीबी से रिपोर्ट तलब की है। पीठ ने याची को भी उपलब्ध दस्तावेज और हलफनामा सीपीसीबी के पास जमा कराने का आदेश दिया है।
हर तीन से सात वर्ष पर प्रति पॉट औसत 35 से 55 टन एसपीएल कचरा पैदा होता है। इस कचरे में साइनाइड और फ्लोराइड की उपस्थिति पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने की भरपूर क्षमता रखती है। सबसे् चिंताजनक इस कचरे को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना है। क्योंकि एसपीएल कचरे में 30 फीसदी फ्लोराइड कीचड़ होता है जिसके रिसने का भय बना रहता है।