स्वच्छता

रांची में ठीक तरह से नहीं हो रहा कचरा प्रबंधन, एनजीटी ने नगर निगम पर लगाया 2 करोड़ का जुर्माना

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अपने क्षेत्र में कचरे का ठीक तरह से प्रबंधन न करने के लिए रांची नगर निगम पर दो करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि रांची नगर निगम मुआवजे की इस राशि को झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा कराएगा, जिसका इस्तेमाल पर्यावरण की बहाली के लिए किया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने झारखंड के मुख्य सचिव को इस निर्देश को लागु करने की जिम्मेवारी दी है।

गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश 17 दिसंबर, 2014 को अनिल कुमार सिंह द्वारा दायर एक आवेदन के मद्देनजर आया है। इसमें आवेदक ने रांची नगर निगम द्वारा ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन न कर पाने पर सवाल उठाए थे।

यह मामला म्युनिसिपल सॉलिड वेस्टस (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स 2010 के उल्लंघन का है, जिसके तहत यह सरकार की वैधानिक जिम्मेवारी बनती है कि वो नागरिकों को साफ-सुथरा वातावरण उपलब्ध कराए। यह जीवन के अधिकार का भी हिस्सा है।

एनजीटी, 30 मई, 2022 को इसपर टिप्पणी की है कि इस मामले में समय समय पर जो आदेश पारित किए गए हैं उनसे लगता है कि मामले में जो भी प्रगति हुई है वो कागजी है। राज्य द्वारा इस मामले में वास्तविकता में कागजों पर सिर्फ निविदाओं और अन्य प्रक्रियाओं को जारी करने के लिए कुछ नहीं किया।

परियोजनाओं की अनुमानित लागत में भी है गड़बड़ी

इसके साथ ही कोर्ट ने शहरी विकास सचिव की अध्यक्षता में हुई राज्य स्तरीय तकनीकी समिति की बैठक और उसके मिनटस वाले हलफनामे पर भी नाराजगी जताई है। यह बैठक 12 अप्रैल, 2022 को हुई थी, जिसमें राज्य की 11 नगर पालिकाओं में काफी समय से जमा कचरे और उससे जुड़ी परियोजनाओं की स्थिति का उल्लेख किया है।

कोर्ट का कहना है कि जो रिपोर्ट सबमिट की है वो बेहद बेहद असंतोषजनक स्थिति को दिखाती है, जो स्वास्थ्य, पर्यावरण और कानून के लिए नुकसानदेह है। इस रिपोर्ट में न तो इस बात की जानकारी मिलती है कि वहां पर्याप्त वेस्ट प्रोसेसिंग सुविधाएं स्थापित की गई हैं और न ही सीवेज प्रबंधन की पर्याप्तता दिखाई गई है। इसके साथ ही धनबाद, रांची और बुंडू नगर के लिए जो परियोजनाएं बनाई जा राइ है उनकी लागत से जुड़े अनुमानों में गड़बड़ी दिखती है।

झारखण्ड में हर रोज लैंडफिल में डंप किया जा रहा है 1179.76 टन कचरा 

वहीं जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, सुधीर अग्रवाल और बी. अमित स्टालेकर की तीन सदस्यीय पीठ का कहना है कि, “सीपीसीबी (2019-20) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, झारखण्ड में हर दिन 2,188.9 टन कचरा पैदा हो रहा है, जिसमें से 731.76 टीपीडी का उपचार और प्रसंस्करण किया जाता है। इस तरह देखा जाए तो राज्य में हर दिन करीब 1179.76 टन कचरा लैंडफिल में डंप किया जा रहा है।“

अपने आदेश में कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जब राज्य सरकार के पास केंद्र से फण्ड मौजूद है तो वो अनिश्चित समय के लिए कचरा प्रबंधन में देरी नहीं कर सकता है। लेकिन वर्तमान मामले में सात वर्षों तक लगातार निगरानी और जारी निर्देशों के बाद भी राज्य अपनी जिम्मेवारी से बच रहा है तो यह दर्शाता है कि उसे पीड़ित लोगों के कल्याण से कोई सरोकार नहीं है।

साथ ही कोर्ट का कहना है कि कचरे के साथ-साथ सीवेज के वैज्ञानिक प्रबंधन के मामले में भी राज्य सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का लगातार उल्लंघन कर रहा है। 

इस मामले में एनजीटी का कहना है कि ऐसा लगता है कि झारखण्ड केंद्रीय फण्ड की प्रतीक्षा के बहाने कचरे का उचित तरह से प्रबंधन नहीं कर रहा है जोकि उसका पहला कर्तव्य है। कोर्ट ने झारखंड के मुख्य सचिव को संवैधानिक और वैधानिक कर्तव्य का पालन न करने के मामले में भी कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि यह मामला पहली बार 7 जनवरी 2015 को कोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए आया था।