प्रतीकात्मक तस्वीर; फोटो: आईस्टॉक 
स्वच्छता

दिल्ली में हर दिन पैदा हो रहा 11,000 टन से अधिक ठोस कचरा, स्वास्थ्य आपातकाल की बन सकता है वजह

Susan Chacko, Lalit Maurya

सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति जताई है कि दिल्ली में हर दिन पैदा हो रहा ठोस कचरा स्वास्थ्य आपातकाल की वजह बन सकता है। ऐसे में अदालत ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से इससे निपटने के लिए आवश्यक तत्काल कार्रवाई पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का पालन न करने से दिल्ली में स्वास्थ्य के लिए गंभीर आपातकाल न पैदा हो।

26 जुलाई, 2024 को दिए अपने इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से इस मुद्दे का तत्काल हल निकालने के लिए सभी संबंधित अधिकारियों, दिल्ली नगर निगम के आयुक्त और अन्य अधिकारियों की तत्काल बैठक बुलाने को कहा है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह द्वारा पेश दलील पर सहमति जताई है। एमिकस क्यूरी के मुताबिक दिल्ली में हर दिन 11,000 मीट्रिक टन से अधिक ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य आपातकाल का सामना करना पड़ सकता है।

वहीं एमसीडी की कचरे को प्रोसेस करने की कुल क्षमता महज 8,073 मीट्रिक टन है। कोर्ट के मुताबिक इससे हर दिन बिना ट्रीट किया हुआ करीब 3,000 मीट्रिक टन कचरा जमा हो रहा है। आशंका जताई है कि यह आंकड़ा हर गुजरते दिन के साथ धीरे-धीरे और बढ़ सकता है।

गुरुग्राम, फरीदाबाद में भी गंभीर है कचरे की समस्या

उन्होंने अदालत का ध्यान स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के हलफनामे की ओर दिलाया है। इस हलफनामे के मुताबिक दस जुलाई, 2024 को एमसीडी ने दिल्ली सरकार से कचरे को साफ करने के लिए अधिक धन खर्च करने की अनुमति मांगी थी। इससे उन्हें पांच करोड़ रुपए से अधिक लागत वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने की अनुमति मिल सके।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि वो इस प्रस्ताव की तुरंत समीक्षा करे और तीन सप्ताह के भीतर इसपर निर्णय ले।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा भी कचरा प्रबंधन से जूझ रहे हैं। गुरुग्राम में हर दिन 1,200 मीट्रिक टन कचरा पैदा हो रहा है, लेकिन वहां प्लांट केवल 254 मीट्रिक टन ही प्रोसेस कर पा रहे हैं। फरीदाबाद में भी हर दिन 1,000 मीट्रिक टन कचरा निकलता है, जिसकी प्रोसेसिंग क्षमता करीब 410 मीट्रिक टन है। हालांकि ग्रेटर नोएडा में स्थिति थोड़ी बेहतर है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के  साथ गुरुग्राम और फरीदाबाद नगर निगमों के आयुक्तों, ग्रेटर नोएडा के अधिकारियों, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पर्यावरण सचिवों के साथ जल्द से जल्द बैठक करे।

अदालत का कहना है कि उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल को रोकने के लिए तत्काल समाधान खोजने की जरूरत है। अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण मंत्रालय से एक महीने के भीतर दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।