देश के सभी शहरों को कूड़ामुक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक अक्टूबर 2021 को स्वच्छ भारत मिशन - शहरी, यानी एसबीएम-यू 2.0 के दूसरे चरण की शुरुआत करेंगे। इसके साथ ही वह कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन यानी अमृत 2.0 को हरी झंडी भी दिखाएंगे।
भारतीय श्हरों को कूड़ामुक्त करने और खुले में शौचमुक्त बनाने के अभियान एसबीएम-यू 2.0 पर लगभग 1.41 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। पत्र सूचना कार्यालय की विज्ञप्ति के मुताबिक, ‘इस मिशन का उद्देश्य ठोस कचरे के स्रोत पृथक्करण पर फोकस करना है।
इसके लिए तीन आर, यानी रिड्यूस, रियूज और रिसाइकिल का उपयोग कर वैज्ञानिक पद्धति से सभी तरह के शहरी ठोस अपशिष्ट का निस्तारण किया जाएगा। इसके लिए पुराने कचरे के मैदानों को भी दुरुस्त किया जाएगा।
आबादी के बढ़ने और शहरीकरण के तेज होने के चलते देश के शहरों में ठोस कचरे के विस्फज्ञेट हुआ है। इसने पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाला है। इसके चलते शहरों के स्थानीय निकायों की ठोस कचरे को एकत्र करने, उसे ले जाने, संभालने और उसका निस्तारण करने की क्षमता प्रभावित हुई है।
देश में शहरी ठोस कचरे की एक संक्षिप्त स्थिति:
- - शहरी भारत रोजाना लगभग 0.15 टन मिलियन और हर आदमी 0.30 से 0.45 किग्रा ठोस कचरा पैदा करता है।
- अगर वर्तमान नीतियां, कार्यक्रम और प्रबंधन की रणनीति ठीक से लागू नहीं की गई तो 2031 तक यह कचरा बढ़कर 165 मिलियन टन प्रति वर्ष और 2050 तक 436 मिलियन टन प्रति वर्ष हो जाएगा।
- पर्यावरण को मजबूत करना और ठोस कचरे का व्यवहार्य प्रबंधन करना पूरी तरह स्थानीय शहरी निकायों की कानून-सम्मत जिम्मेदारी है।
- नीतियों और तकनीकी हस्तक्षेप की कमी, ठोस कचरे का निस्तारण करने वाले साझेदारों के बीच असहयोग और कचरा एकत्र करने की अपर्याप्त प्रक्रिया के चलते देश के शहरी निकायों द्वारा ठोस कचरे का प्रबंधन ठीक से नहीं हो रहा है। इस वजह से शहर में रहने वाले तमाम लोगों तक कचरा एकत्र करने की सेवाएं नहीं पहुंचती।
- देश में सालाना पैदा होने वाले 62 मिलियन टन कचरे में केवल 68 फीसदीी कचरा एकत्र किया जाता है, जिसमें से शहरी नगर निकाय केवल 28 फीसदी कचरा एकत्र करते हैं।
- इस तरह देश में पैदा होने वाले महज 19 फीसदी कचरे का निस्तारण सही तरके से किया जाता है, जबकि 80 फीसदी से ज्यादा कचरे का निस्तारण अवैज्ञानिक तरीके से कचरे के मैदानों में होता है।
- वेस्ट टू एनर्जी रिपोर्ट, 2014 में अनुमान लगाया गया था कि अप्रयुक्त कचरे में 439 मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता है। कचरे की 32890 टन प्रति दिन मात्ऱा में ज्वलशील पदार्थ और अस्वीकृत ईंधन या आरडीएफ शामिल होता है। इस कचरे से हर रोज 1.3 मिलियन क्यूबिक मीटर बायोगैस तैयार की जा सकती है और उस बायोगैस से भी 72 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है। इस कचरे से खेती में इस्तेमाल होने वाली 5.4 मिलियन मीटरी टन खाद सालाना तैयार की जा सकती है।
- देश के कई हिस्सो में कचरा एक़त्र करने और उसे रिसाइकिल करने का काम प्रभावी तरीके से नहीं किया जाता। उद्योगों, निकायों, खेती, निर्माण-स्थलों, तोड़-फोड़ वाली और अन्य जगहों से निकलने वाले कचरे को कबाड़ जैसे लोहे के चीजें, प्लास्टिक आदि में अलग किया जा सकता है। इसके बाद उनका रिसाइकिल कर बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। यह हालत तब है जब देश में रिसाइक्लिंग की दरें दुनिया के मानकों की तुलना में काफी कम हैं।
-देश में रिसाइक्लिंग कम होने की कई वजहें हैं, जिसमें - सामाजिक जागरुकता, सामाजिक-राजनीतिक बाधाएं, कचरा एकत्र करने और उसे अलग करने के अपर्याप्त साधन और आधारभूत संरचना व तकनीक की जानकारी न होना शामिल है।
- यह देखना जरूरी है कि देश में अपर्याप्त फंड, कानूनी दिशा-निर्देशों की कमी, शहरी सेक्टरों का कम विकास और कचरा-प्रबंधन के व्यवसाय के बारे में कम जानकारी के कारण औपचारिक कचरा प्रबंधन उपक्रम सीमित संख्या में हैं। इस वजह से भारत समेत दूसरे विकासशील देशों में कचरा एकत्र करने और उसकी रिसाइक्लिंग का काम बड़े पैमाने पर अनौपचारिक सेक्टर के हवाले है। कई शोध में यह पाया गया है कि विकासशील देशों में शहरी निकायों के कचरे के निस्तारण में औपचारिक सेक्टर से कहीं ज्यादा योगदान अनौपचारिक सेक्टर का है।
- ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के मुताबिक, ‘अनौपचारिक कचरा संग्रहकर्ता’ में ऐसे व्यक्ति, संघ या कचरा व्यापारी शामिल हैं, जो पुनर्चक्रण योग्य सामग्रियों की छंटाई, बिक्री और खरीद करते हैं। ठोस अपशिष्ट नियम (2016) ‘कचरा बीनने वाले’ को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो अनौपचारिक रूप से अपशिष्ट उत्पादन के स्रोत से पुनः प्रयोज्य और पुनर्चक्रण योग्य ठोस कचरे के संग्रह और पुनर्प्राप्ति में सीधे या बिचौलियों के माध्यम से पुनर्चक्रण करने वालों को बिक्री में लगा हुआ है।
- शहरों में ठोस कचरे के एकत्रीकरण, उसे छांटने, स्टोर करने और उसमें से निकाली चीजों का व्यापार करने में लगे अनौपचारिक सेंटर को आमतौर पर आधिकारिक मान्यता नहीं दी गई है। न ही उसे अधिकृत किया गया है और न ही उसके काम की गिनती की जाती है।
- शहरों में रहने वाले लोग और रद्दी या कबाड़ीवाले सालाना लगभग 1.2 से लेकर 2.4 मिलियन टन अखबार इकट्ठा करते हैं। इसी तरह वे 2.4 से 4.3 मिलियन टन गत्ता और मिश्रित कागज, 1.3 मिलियन टन से ज्यादा कांच, 2.6 मिलियन टन से ज्यादा धातु-कचरा और 4 से लेकर 6.2 मिलियन टन अन्य रिसाइकिल होने वाले कचरा इकट्ठा करते हैं।
- कुल मिलाकर देश में बनने वाले सारे कागजों और गत्तों का 30 से 60 फीसदी, सारी प्लास्टिक का 50 से 80 फीसदी और कांच की बोतलों का सौ फीसदी रिसाइकिल किया जाता है।
- देश में सालाना लगभग 3.36 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें से दो से लेकर 2.35 मिलियन टन प्लास्टिक का रिसाइकिल किया जाता है। हालांकि, कचरे के भौतिक प्रवाह पर हुए अध्ययन का अनुमान है कि भारत में लगभग 6.5-8.5 मिलियन टन प्लास्टिक का पुनर्नवीनीकरण किया जा रहा है। प्लास्टिक की इस संख्या में विसंगति इसलिए हो सकती हैं क्योंकि प्लास्टिक कचरे के एक बड़े हिस्से का पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक रूप से कचरा बीनने वालों और कबाड़ावालों के संघों द्वारा किया जाता है और यह औपचारिक कचरा प्रबंधन श्रृंखला में परिलक्षित नहीं होता है। यह दर्शाता है कि अपशिष्ट श्रृंखला में अनौपचारिक क्षेत्र के हस्तक्षेप के कारण प्लास्टिक कचरे के अंशों का पुनर्चक्रण कितना संभव है।
- हालांकि कचरा बीनने और उसे रिसाइकिल करने में लगे लोगों की विश्वसनीय तादाद पता करना मुश्किल है लेकिन सूचनाओं के मुताबिक, अनौपचारिक कचरे की आर्थिकी से दुनिया की कुल शहरी आबादी का 0.5 से लेकर दो फीसदी हिस्सा जुड़ा है। दुनिया में कुल शहरी आबादी 2.49 अरब से 2.8 अरब के बीच है। यानी लगभग 12.5 -12.56 मिलियन लोग इस काम से जुड़े हैं।
- देश के शहरी कार्यबल में केवल कूड़ा बीनने वालों की हिस्सेदारी ही 0.1 फीसदी है। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, देश में निकायों का ठोस कचरे का 15-20 फीसदी इकट्ठा करने में लगभग 1.7 मिलियन शहरी गरीब लगे है। इसमें कई अनौपचारिक रूप से काम करने वाली कंपनियां और अपशिष्ट प्रबंधन में भाग लेने वाले औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में पुनर्प्रसंस्करण इकाइयां शामिल नहीं हैं, जिनके आंकड़ों को कम करके आंका जा सकता है।
- 2010-11 में देश के साठ शहरों में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग करने वाली 5511 अनुमानित इकाईयां थीं, जिनमें से केवल 2108 यानी 38 फीसदी पंजीकृत थीं। इसी तरह, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने विशेष रूप से दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में 40,000 से अधिक कर्मचारियों के साथ 5,695 अनौपचारिक अपशिष्ट रिसाइक्लिंग इकाइयों की स्थापना की है।