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लुधियाना गैस रिसाव: एक साल बाद भी नहीं पता चला कारण, दोबारा कभी भी हो सकता है हादसा

Rohini Krishnamurthy

30 अप्रैल, 2023 को लुधियाना के गियासपुरा इलाके में गैस रिसाव से तीन नाबालिगों सहित 11 लोगों की मौत को एक साल बीत चुका है। फिर भी, अधिकारियों ने गैस या उसके स्रोत की पहचान नहीं की है।

पिछले साल 30 अप्रैल की सुबह 15 लोग बेहोश हो गए थे, उन्हें अस्पतालों में ले जाया गया, लेकिन उनमें से 11 को मृत घोषित कर दिया गया और चार जीवित बचे। प्रारंभिक साक्ष्यों से पता चला कि मृत्यु का कारण जहरीली गैस (जो हाइड्रोजन सल्फाइड या गैसों का संयोजन हो सकता है) के कारण ऑक्सीजन की कमी के चलते दम घुटना था।

आरोप है कि पिछले साल की भयावह घटना के बाद से लेकर अब तक कोई सुधार नहीं किया गया है। भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कर्नल जसजीत सिंह गिल ने डाउन टू अर्थ को बताया, "एक और त्रासदी होने का इंतजार है।"

क्षेत्र के अधिवक्ता योगेश खन्ना ने बताया, " इस घटना का मुझे कोई नतीजा नहीं दिखाई दिया और ना ही मैंने  राजनेताओं को इस बारे में बात करते देखा।"

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मामले की जांच के लिए दो संयुक्त समितियों का गठन किया था। अक्टूबर 2023 में पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष आदर्श पाल विग की अध्यक्षता में जारी की गई पहली रिपोर्ट में संभावित कारणों के रूप में सीवर का क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचा, सीवर सफाई न होना और भारी बारिश से जमा कचरे के कारण अस्थायी रुकावट का हवाला दिया गया।

इसमें आगे कहा गया है कि किसी भी टैंकर या अन्य माध्यम से किसी भी रसायन के अचानक छोड़े जाने को पुलिस ने खारिज कर दिया है। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सुहैल मीर ने पिछले साल डाउन टू अर्थ को बताया था कि पुलिस ने इलाके के आसपास के 1 किमी के दायरे से सीसीटीवी फुटेज एकत्र किए हैं।

रिपोर्ट में लुधियाना नगर निगम और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक संयुक्त सर्वेक्षण का भी हवाला दिया गया है कि साइट के 100 मीटर के दायरे में कोई भी एसिड का इस्तेमाल करने उद्योग नहीं है। इसमें कहा गया है कि इस बात की प्रबल संभावना है कि सीवर लाइन उस हिस्से में अवरुद्ध हो गई थी, जिसके कारण गैस जमा हो गई और बाहर निकल गई। सीवर लाइनें 2002-2003 में चालू की गईं और इनका रखरखाव और संचालन नगर निगम द्वारा किया जाता है।

हालांकि, रिपोर्ट में उद्योगों की ओर इशारा करते हुए विशेषज्ञों की राय भी रखी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक दुर्घटना के निकट मुख्य सीवर के पानी में क्लोराइड की मात्रा अधिक पाई गई, जो क्षेत्र में हाइड्रोक्लोरिक एसिड के उपयोग के कारण हो सकता है। ये तथ्य यह भी संकेत देते हैं कि उच्च सांद्रता में जहरीली गैस एच2एस जारी करने में उद्योगों का निस्तारण  निर्वहन एक महत्वपूर्ण कारक है। 

एनजीटी ने इस रिपोर्ट को "असंबद्ध" बताते हुए खारिज कर दिया। इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए जवाबों में विसंगतियां पाई गईं। सीपीसीबी के क्षेत्रीय निदेशक गुरनाम सिंह ने कहा था कि सीवर लाइन में लंबे समय तक कीचड़ जमा रहने से ऐसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं, जिससे एच2एस की उच्च सांद्रता का निर्माण हो सकता है। हालांकि, बोर्ड के अन्य अधिकारियों ने पाया कि साइट के पास मुख्य सीवर पानी में पीएच स्तर (2.5-2.6) अम्लीय औद्योगिक अपशिष्ट निर्वहन के कारण हो सकता है।

इसके अलावा एनजीटी ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आसपास की प्रदूषणकारी इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट की मात्रा सहित विवरण प्रदान नहीं किया है। इसलिए एनजीटी ने एक नई समिति का गठन किया, जिसमें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, चंडीगढ़ के वन उप महानिरीक्षक राजा राम सिंह, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव भरत कुमार शर्मा और केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी दिल्ली की श्रीदेवी उपाध्याय शामिल थीं।

इसमें कहा गया कि 'ऐसी घटना की पुनरावृत्ति की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए गैस रिसाव के वास्तविक कारण का पता लगाना और जिम्मेदारी तय करना बहुत जरूरी है।

विशेषज्ञों ने 4 मार्च, 2024 को अपनी रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि गैस रिसाव सीवर गैस के रिसाव या उत्सर्जन के कारण हुआ। रिपोर्ट में अम्लीय अपशिष्ट को सीवर में बहाए जाने की आशंका से इंकार नहीं किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “30 अप्रैल 2023 को सुबह 11.30 बजे से दोपहर 01.40 बजे तक नमूना लेने के समय के आसपास सीवर में अम्लीय अपशिष्ट के डालने से हुए अचानक अम्लीकरण से इंकार नहीं किया जा सकता है।” यहां पीएच स्तर 2-3 के बीच पाया गया। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि हाइड्रोजन सल्फाइड पर कार्य करने वाला एक विशिष्ट बैक्टीरिया सल्फ्यूरिक एसिड उत्पन्न कर सकता है, जिससे अम्लीय स्तर पैदा हो सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहरीली एच2एस सीवर गैस प्रभावित घरों के हौडिस (सीवर पाइपलाइन से निकलने वाली गैसों के निकास बिंदु) से जुड़े सीवर में जा सकती है।

रिपोर्ट में पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भी विचार किया गया, जिसमें कहा गया था कि मौत का कारण जहरीली गैस के था। अक्टूबर की संयुक्त समिति की रिपोर्ट में जिला फोरेंसिक अधिकारी, लुधियाना चरण कमल को के हवाले से कहा गया है कि शवों में मीथेन गैस के कुछ लक्षण भी देखे गए थे। उन्हें कार्बन मोनोऑक्सी का कोई संकेत नहीं मिला। 

हालांकि, रिपोर्टें विषाक्तता के प्रकार का पता नहीं लगा सकीं, क्योंकि आगे के विश्लेषण का अभी भी इंतजार है। लुधियाना की पूर्व सिविल सर्जन हतिंदर कौर ने पिछले साल डाउन टू अर्थ को बताया था कि जब तक विसरा विश्लेषण और हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच नहीं हो जाती, हम गैस के बारे में निश्चित नहीं हो सकते।

डाउन टू अर्थ ने विश्लेषण की स्थिति के बारे में अधिक जानने के लिए 29 अप्रैल, 2024 को लुधियाना के वर्तमान सिविल सर्जन जसबीर सिंह से संपर्क किया। रिपोर्टर द्वारा गियासपुरा गैस रिसाव का उल्लेख करने के बाद उन्होंने सुनने या बोलने से इनकार कर दिया।

गिल ने बताया कि गियासपुरा गैस रिसाव बुनियादी ढांचे की कमी के कारण हुआ था। कारण बहुत उलझे हुए हैं। '  गियासपुरा घनी आबादी वाला इलाका है। संयुक्त आयोग की ताजा रिपोर्ट से पता चला है कि 150 वर्ग गज के एक भूखंड में लगभग 20 व्यक्ति रहते हैं।

उन्होंने कहा, "हमें सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों, सीवेज जाम को रोकने के लिए बेहतर सीवर लाइनों और इसे दोबारा होने से रोकने के लिए सीवेज और तूफानी पानी के लिए अलग-अलग पाइपलाइनों की आवश्यकता है।"

क्षेत्र के निवासी नंद किशोर साहू ने बताया कि घटना के बाद से सीवर प्रणाली में कोई सुधार नहीं किया गया है और सफाई आखिरी बार छह महीने पहले की गई थी।