स्वच्छता

दिल्ली के कचरे से बनेगी बायोगैस, नगर निगम और आईजीएल के बीच समझौता

आईजीएल और एसडीएमसी ने दिल्ली में कचरे से ऊर्जा बनाने के लिए एक सयंत्र स्थापित करने का समझौता किया

Lalit Maurya

इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) ने दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) के साथ मिलकर दिल्ली में कचरे को ऊर्जा में बदलने के लिए एक संयंत्र स्थापित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

इस सयंत्र से न केवल दिल्ली को बढ़ते कचरे से निजात मिलेगी साथ ही इससे कंम्प्रेस्ड बायो-गैस (सीबीजी) भी बनाई जाएगी, जिसका इस्तेमाल सीएनजी से चलने वाले वाहनों के लिए किया जाएगा। यह जानकारी 27 सितम्बर 2021 को पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में सामने आई है।

इस समझौते पर सिंक्रोनाइज़ेशन योजना के तहत सरकार की सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) पहल के विस्तार के रूप में हस्ताक्षर किया गया है। सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) योजना के तहत 2023-24 तक 15 एमएमटीपीए के उत्पादन लक्ष्य के साथ ही 5,000 सीबीजी प्लांट स्थापित करने का भी लक्ष्य रखा गया है।

यही नहीं इसकी मदद से रोजगार के नए अवसर पैदा करने और किसानों की आय में वृद्धि करने का भी खाका तैयार किया गया है। इस पहल के तहत नगरपालिकाओं से निकलने वाले ठोस कचरे से साफ-सुथरी ऊर्जा के निर्माण की योजना है, जिससे एक तरफ जहां ठोस कचरे में कमी आएगी साथ ही ऊर्जा भी पैदा होगी।    

इस संयंत्र की मदद से हर रोज होगा 4,000 किलोग्राम सीबीजी का उत्पादन

अनुमान है कि इस संयंत्र से हर रोज करीब 4,000 किलोग्राम सीबीजी का उत्पादन होगा। इस समझौते के तहत एसडीएमसी बायोगैस संयंत्र और सीबीजी स्टेशन स्थापित करने के लिए आईजीएल को पश्चिम क्षेत्र में स्थित हस्तसाल में पहचान की गई जगह में जमीन प्रदान करेगा। इसके साथ ही प्रस्तावित संयंत्र को चलाने के लिए एसडीएमसी, आईजीएल को अलग किए गए लगभग 100 टीपीडी बायोडिग्रेडेबल कचरे की नियमित आपूर्ति भी करेगा।

चूंकि पैदा हुई कंम्प्रेस्ड बायो-गैस से सीएनजी वाले वाहनों के लिए आपूर्ति करना पर्याप्त नहीं होगा। इसलिए, आम जनता की सीएनजी सम्बन्धी मांग को पूरा करने के साथ-साथ एसडीएमसी वाहनों की कैप्टिव मांग को पूरा करने के लिए एक एकीकृत सीबीजी स्टेशन की भी स्थापना करेगी। इससे जैविक अपशिष्ट/आर्गेनिक स्लरी में वैल्यु एडिशन होगा और उसे बाजार में बेचा जाएगा।

दिल्ली में ठोस कचरे की समस्या कितनी बड़ी है इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि दिल्ली में हर रोज करीब 10,990 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 49.7 फीसदी यानी 5,457 मीट्रिक टन कचरे को प्रोसेस और ट्रीट किया जाता है जबकि करीब 50.3 फीसदी (5,533 मीट्रिक टन) कचरे को  ऐसे ही लैंडफिल में डाल दिया जाता है।

हालांकि डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट की मानें तो कचरे की यह मात्रा इससे कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि दिल्ली में बड़ी मात्रा में कचरे का प्रबंधन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में करीब 1.5 लाख कूड़ा बीनने वाले हैं, जो इस कचरे को एकत्र करते हैं।   

ऐसे में यह समझौता विभिन्न अपशिष्ट और बायोमास स्रोतों से कंम्प्रेस्ड बायो-गैस के उत्पादन की दिशा में न केवल दिल्ली बल्कि देश के लिए एक अहम कदम है। जहां एक तरफ इसके जरिए नेचुरल गैस के आयात में कमी आएगी। वहीं दूसरी तरफ इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आएगी, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ चल रही जंग में भी मददगार होगा।

यही नहीं इससे कृषि अवशेषों को जलाने में भी कमी आएगी और यह किसानों की आय में भी इजाफा करेगा। इससे न केवल अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में मदद मिलेगा और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। यही नहीं यह पहल आत्म निर्भर भारत और स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्यों को हासिल करने में मददगार होगी।