स्वच्छता

दुनिया की 51 फीसदी स्वास्थ्य केंद्रों में पानी, साबुन जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी, कैसे रुकेगा संक्रमण

दुनिया में इन स्वास्थ्य सुविधाओं से निकलने वाले कचरा का क्या होता है उस बारे में केवल 65 देशों के पास आंकड़े मौजूद हैं, जोकि दुनिया की 24 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं

Lalit Maurya

एक तरफ दुनिया जहां कोविड-19 महामारी और मंकीपॉक्स जैसी बीमारियों के खतरों से जूझ रही है वहीं दूसरी तरफ दुनिया की 51 फीसदी स्वास्थ्य केंद्रों में पानी, साबुन, सैनिटाइजर जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। ऐसे में संक्रमण का खतरा कैसे खत्म होगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और यूनिसेफ द्वारा 29 अगस्त 2022 को जारी नई रिपोर्ट “प्रोग्रेस ऑन वाश इन हेल्थ केयर फैसिलिटीज 2000-2021” के अनुसार 385 करोड़ लोग बुनियाद सेवाओं के आभाव वाली इन स्वास्थ्य केंद्रों के भरोसे हैं, जबकि उनमें से 68.8 करोड़ तो ऐसे स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर हैं जहां साफ-सफाई और स्वच्छता से जुड़ी कोई बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं है।

उप-सहारा अफ्रीका के साथ-साथ पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में यह सुविधा केवल 38 फीसदी हेल्थ केयर फैसिलिटीज में ही उपलब्ध है। इस बारे में डब्ल्यूएचओ के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक मारिया नीरा का कहना है कि हेल्थ केयर फैसिलिटीज के लिए साफ-सफाई और स्वच्छता से जुड़ी सुविधाएं अत्यंत जरुरी हैं। महामारी से उबरने, उनकी रोकथाम और तैयारियों के लिए यह सेवाएं बहुत मायने रखती हैं।

वहीं इन सुविधाओं में पानी की उपलब्धता की बात करें तो हर पांच में से चार सुविधाओं यानी 78 फीसदी में बुनियादी जल सेवाएं उपलब्ध है। हालांकि इसके बावजूद अभी भी दुनिया में करीब 170 करोड़ लोग ऐसे स्वास्थ्य सुविधाओं के भरोसे हैं जिनमें पानी की कमी है। वहीं इनमें से 85.7 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले स्वास्थ्य केंद्रों में बिलकुल पानी उपलब्ध नहीं है।

देखा जाए तो इस मामले में उप-सहारा अफ्रीका में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है, जहां केवल 52 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाओं में पानी की सुविधा उपलब्ध है, वहीं पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में यह आंकड़ा 90 फीसदी है। वहीं यदि सबसे पिछड़े देशों की बात करें तो यह आंकड़ा केवल 47 फीसदी ही है।

भारत जैसे देशों के पास भी नहीं हैं इससे जुड़े पर्याप्त आंकड़े

देखा जाए तो इस सन्दर्भ में आंकड़ों की उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या है। यहां तक की भारत जैसे देशों में भी इस बारे में पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। केवल 41 देशों के पास राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं में सैनिटेशन की स्थिति से जुड़े आंकड़े उपलब्ध हैं। गौरतलब है कि यह देश दुनिया की केवल 19 फीसदी आबादी का प्रतिनिधत्व करते हैं।

वहीं केवल 21 देशों के पास स्वास्थ्य सेवाओं सम्बन्धी पर्यावरण स्वच्छता से जुड़े आंकड़े उपलब्ध हैं, जबकि यह देश केवल 7 फीसदी आबादी का घर हैं। वहीं उप-सहारा अफ्रीका की 26 फीसदी ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में पर्यावरण स्वच्छता संबंधी बुनियादी सेवाएं उपलब्ध हैं। वहीं केवल 32 फीसदी के पास इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी थे।

हालात यह हैं कि दुनिया में इन स्वास्थ्य सुविधाओं से निकलने वाले कचरा का क्या होता है उस बारे में केवल 65 देशों के पास आंकड़े मौजूद हैं, जोकि दुनिया की 24 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं 2021 में केवल 34 फीसदी पिछड़े देशों के स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में कचरा प्रबंधन से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध हैं।

इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 10 में से एक हेल्थ केयर फैसिलिटी में सैनिटेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जबकि 78 करोड़ लोग इन स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। वहीं पिछड़े देशों में तो स्थिति सबसे ज्यादा बदतर हैं जहां केवल 21 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाओं में सैनिटेशन की सुविधा उपलब्ध है।

यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो जहां दक्षिण अमेरिका और पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में केवल 3 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाओं में सैनिटेशन की सुविधा उपलब्ध है वहीं अफ्रीका में यह आंकड़ा केवल 22 फीसदी ही है।

यूनिसेफ में सीईईडी की निदेशक केली एन नायलर का कहना है कि यदि स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने वालों के पास स्वच्छता संबंधी सेवाओं तक पहुंच नहीं है तो मतलब रोगियों के पास भी स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

हर साल करीब 6.7 लाख नवजात सेप्सिस के चलते अपनी जान गवां रहे हैं, जबकि उससे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। उनके अनुसार स्वच्छ पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता संबंधी बुनियादी सुविधाओं के बिना अस्पताल और क्लीनिक गर्भवती माओं, नवजात शिशुओं और बच्चों के लिए मृत्यु का एक जाल हैं।