स्वच्छता

कचरे के पहाड़ के नीचे डर के साये में रह रहे हैं 16 हजार लोग

अहमदाबाद स्थित 75 फीट ऊंचा कचरे के पहाड़ के धसकने का डर 24 घंटे बना रहता है, निगम ने आश्वासन दिया है कि पुणे की तर्ज पर खत्म किया जाएगा

Anil Ashwani Sharma

अहमदाबाद को बापू की यादों को सहेजने और उन्हें याद करने के लिए जाना जाता है। बापू स्वच्छता के प्रतीक थे लेकिन उनके इस शहर के एक हिस्से को 21वीं सदी के विकास की चमचमाती दुनिया के निवासियों ने जहन्नुम बनाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है। जी हां हम बात कर रहे हैं अहमदाबाद के बाहरी इलाके में बसे पिराना गांव की। जहां शहर के कचरे का एक लगभग 75 फीट ऊंचा पहाड़ बन चुका है। कचरे के पहाड़ नीचे पिराना गांव बसा है। गांव के मोहसिन भाई ऊंचे होते कचरे के पहाड़ की ओर इशारा करते हुए कहते हैं- जनाब जहां हम और आप खड़े हैं, यदि यह पहाड़ अचानक खिसक जाए तो यहां भी एक और गाजीपुर की घटना को दोहराने में देर नहीं लगेगी। वे कहते हैं  हम और यहां के आसपास के बसे हजारों लोग तो रोज ही इस डर में जीते हैं कि कभी भी यह कचरा हमें हमेशा के लिए चिरनिंद्रा में सुला सकता है। उन्होंने बताया हम सब नारोदा पाटिया से विस्थापित हुए लोग हैं और सरकार ने हमें यहां लाकर बसाया है। वे कहते हैं अधिकांश बाशिंदे तो दंगे-फसाद में मारे गए और उससे जो बच-खुच गए हैं, पिछले पंद्रह-सोलह सालों से इस कचरे से होने वाली बीमारी से  गल-गल कर मर रहे हैं।

गांव में ही सिलाई का काम करने वाले मनहर भाई कहते हैं - गोधरा कांड के बाद हमें इस नर्क में बसाया गया। यहां और कचरा न डाला जाए और इसे हटाने के लिए हम पिछले डेढ़ दशक से सरकार से लड़ रहे हैं। लेकिन सरकार के कानों में अब तक एक जूं तक नहीं रेंगी। हम अपनी दिहाड़ी छोड़ हफ्ते-दस दिनों में निगम कार्यालय में धरना देने के लिए जा धमकते हैं,लेकिन सरकार की बेरुखी से हमें इस बात का अहसास होता जा रहा है कि हम सब की कब्र  इसी कचरे के पहाड़ में दफन होगी। गांव मे दर्जी का काम करने वाले मोहम्मद शाबिर कहते हैं आप ही बताएं क्या यह इंसानों के रहने की जगह है। चारों ओर बदबू, कीचड़ और चारों ओर भिनभिनाते मच्छर- मक्खियां एक-एक करके सबको मार देंगी। वैसे भी यहां हर शख्स बीमार ही है। वे बताते हैं पिछले डेढ़ माह में यहां दो युवको की मौत हो चुकी है। कारण बस यही की उन्हें दम घुटने जैसे लगा और देखते ही देखते वे खत्म हो गए।

पिराना गांव में कचरा डंपिंग को लेकर अहमदाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने वाले इंसाफ फाउंडेशन के अध्यक्ष कमाल सिद्दकी ने बताया- अभी निगम का कहना है कि हम इस पहाड़ को पुणे की तर्ज पर खत्म करेंगे। हालांकि अभी उन्होंने कोई टाइम नहीं बताया है कि कब करेंगे। बस यह आश्ववासन मिला है कि इस माह के अंत तक काम शुरू हो जाएगा। वह बताते हैं कि कुछ माह पूर्व पिराना कचरे का पहाड़ धसक गया था और इसकी चपेट में पांच वाहन चकनाचूर हो गए थे। किस्मत से इन वाहनों में कोई नहीं था। वे बताते हैं- 1980 से पिराना गांव में कचरा डाला जा रहा है। पिछले विधानसभा सत्र में गुजरात सरकार ने एक रिपोर्ट रखी । सरकार ने नीमाबेन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से सिफारिश की कि यह कचरा का पहाड़ यहां से हटाया जाए। यही नहीं कमेटी ने यहां तक कहा है कि इसके कारण भूमिगत जल तेजी से प्रदूषित हो रहा है और इसका असर साबरमती नदी पर भी हो रहा है। वे कहते हैं आरटीआई के माध्यम से यह बात निकल कर आई है कि सन 2000 से अब तक अहमदाबाद नगर निगम की बैठकों में किसी भी पार्षद ने इस डंपिंग क्षेत्र के बारे में कोई भी मामला नहीं उठाया। इसी प्रकार से विधानसभा में भी यह मामला अब तक नहीं उठाया गया है।      

सिद्दकी ने बताया किया 2015 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से आए छात्र आदिल हुसैन ने इस डंपिंग जोन का रेंडमली सर्वें किया। इसमें चालीस घर शमिल थे। इसमें पाया गया कि क्षेत्र के हर घर में कोई न कोई शख्स किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है और इसमें भी किडनी की बीमारी से अधिक लोग प्रभावित थे। इसके अलावा इस सर्वे में एक और तथ्य सामने आया कि 19 लोग किडनी खराब होने के कारण मरे।  2016 में हमने इस संबंध में जनहित याचिका दायर की। इसके तहत नगर निगम ने यह स्वीकार किया है हम प्रदूषण संबंधी गाइड लाइंस का पालन ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। जहां तक इसे हटाने की मांग है इस पर वे शर्तों पर आ गए और बोले की इसे हटाने के लिए हमने राज्य सरकार से 374 करोड रुपए मांगे हैं । याचिका में यह मांग की गई है इस क्षेत्र में हेल्थ सर्वे करया जाए। हम बहुत ही आशावादी हैं और उम्मीद करते हैं कि इस संबंध में जल्दी ही हमारे पक्ष में अदालती निर्णय आएगा।  सिद्दकी कहते हैं- हमने अपनी याचिका में स्पष्ट रूप से कहा है लगभग 16000 परिवार सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। 25 फीसदी अहमदाबाद की आबादी पर सीधे तौर पर इस कचरे के पहाड़ से होने वाले प्रदूषण का असर पड़ रहा है। यहां तक कि इसकी जद में प्रधानमंत्री का पूर्व विधानसभा क्षेत्र मणिनगर भी आ रहा है।

पिराना गांव में मणिनगर (प्रधानमंत्री का पूर्व विधानसभा क्षेत्र) में पिछले डेढ़ सौ सालों से बसे 224 छारा आदिवासी परिवारों की झुग्गी तोड़कर यहां बसाने की सरकार की तैयारी थी लेकिन एक भी छारा परिवार यहां बसने को तैयार नहीं हुआ। निगम उनकी झग्गियां 2004 से तोड़ रहा है। छारा समुदाय के लिए संघर्ष कर रही बूधन थिएटर ग्रुप की कल्पना बेन कहती हैं- क्या मणिनगर केवल शहरी लोगों के लिए ही आरक्षित है। और फिर ये शहरी तो अभी पंद्रह बीस सालों के बीच ही यहां कर बसे हैं,लेकिन ये आदिवासी तो यहां पिछले डेढ सौ सालों से रह रहे हैं और फिर ये सरकार से न पानी मांगते हैं और बिजली। लेकिन चूंकि ये गरीब आदिवासी हैं इसलिए उनका हक नहीं बनता कि वे शहरियों के बीच उठे-बैठे और उन्हें बसाने की तैयारी भी राज्य सरकार ने कचरा घर में की थी। वे कहती हैं अब जाकर इन परिवारों को यहां से साढ़े तीन किलोमीटर दूर बॉक्स के आकार के घर तो दे दिए गए हैं लेकिन इन घरों में बुनियादी सुविधाओं को आभाव है। बिजली, पानी आदि। वह बताती हैं अब तक हम उनके घर के लिए संघर्ष कर रहे थे अब उनके बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करेंगे।

पिराना गांव से अहमदाबाद निवासी कितना दूर भागते हैं, इसका जवाब टैक्सी चालक जायस कुमार की इस बात में निहित है। वे कहते हैं-भाई इस इलाके में कोई भी शहरी यदि आ जाता है और जब वह वापस जाता है तो उसे यह बताने क जरूरत नहीं होती है, वह कहां से आ रहा है। क्योंकि उसके शरीर से आ रही दुर्गंध और उसकी गाडी की हालत खुद-ब-खुद यह बयान कर देते हैं। इस इलाके में न तो ऑटो वाले और न ही टैक्सी वाले आने को सहर्ष तैयार होते हैं। एक अन्य वाहन चालक मटुक भाई कहते हैं अरे भाई यहां आकर क्यों हम अपनी दिनभर की रोजी गंवाए। उन्होंने कहा- यहां आने का मतलब है कि अपने शरीर और गाडी की कई-कई बार धुलाई,तब जाकर यहां की बदबू जा पाती है।