स्वच्छता

खुले में शौच मुक्त का सरकारी दावा: हकीकत या फसाना

2 अक्टूबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को खुले में शौच मुक्त घोषित किया था, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट से इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं

Richard Mahapatra

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेन्स फंड (यूनिसेफ) के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की ग्रामीण आबादी का कम से कम एक-छठा हिस्सा अब भी खुले में शौच करता है और एक-चौथाई के पास स्वच्छता की बुनियादी सुविधाएं तक नहीं है।

2 अक्टूबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया था। महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती पर यह मोदी का व्यक्तिगत वादा था। प्रधानमंत्री के रूप में लाल किले से दिए गए उनके पहले भाषण में जिन विकासात्मक वादों का जिक्र था, यह उन्हीं में से एक था।

इसके बाद के 60 महीनों में उन्होंने भारत को खुले में शौच मुक्त की घोषणा के वक्त कहा, “60 करोड़ लोगों को शौचालय तक पहुंच प्रदान की गई है, 11 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं। यह सुनकर पूरा विश्व हैरान है।”

असल में इस दिशा में भारत की लंबी छलांग ने वैश्विक स्वच्छता परिदृश्य को बदल दिया। इस घोषणा के साथ ही दुनिया सतत विकास के सबसे मुश्किल लक्ष्य (एसडीजी-6)  यानी जल व स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुंच के करीब पहुंच गई, क्योंकि भारत में ही खुले में शौच करने वालों की आबादी सबसे अधिक थी।

घोषणा के बाद से भारत में ओडीएफ के बारे में ज्यादा बात नहीं होती। इसके बाद भारत ने अगली पीढ़ी के लिए ओडीएफ प्लस नामक एक विस्तृत स्वच्छता कार्यक्रम तैयार किया, जो स्थिति को बनाए रखने और गांवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर केंद्रित है।

देश के लगभग 6 लाख गांवों में से करीब 3.6 लाख पहले से ही ओडीएफ प्लस हैं। हालांकि ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे आधिकारिक तौर पर स्थापित किया जा सके कि ओडीएफ की स्थिति उलट गई है या नहीं। इस पर महज सुगबुगाहट ही होती है।

इस साल जुलाई में डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ ने साल 2022 में घरेलू जलापूर्ति एवं स्वच्छता पर अपनी ज्वाइंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम (जेएमपी) रिपोर्ट जारी की। जेएमपी रिपोर्ट एसडीजी-6 की प्रगति निगरानी से पानी और स्वच्छता की स्थिति बताती है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भी भारत की 17 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है। एक चौथाई ग्रामीण आबादी के पास “न्यूनतम बुनियादी” स्वच्छता सुविधाएं भी नहीं हैं।

एसडीजी-6 की प्रगति की पड़ताल करने वाली जेएमपी रिपोर्ट, “बुनियादी” सेवाओं को बेहतर स्वच्छता सुविधाओं के रूप में परिभाषित करती है, जिसे एक परिवार दूसरों के साथ साझा नहीं करता। आम बोलचाल में कहें तो बुनियादी सेवा किसी घर के लिए एक विशेष शौचालय है। यह वह लक्ष्य भी है जिसकी भारत सरकार ने ओडीएफ लक्ष्य निर्धारित करते समय आकांक्षा की थी।

जेएमपी रिपोर्ट ने 2015 से प्रगति को ट्रैक किया, जब ये लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। भारत ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है। 2015 में लगभग 41 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती थी (2022 में 17 प्रतिशत) जबकि 51 प्रतिशत घरों (2022 में 75 प्रतिशत) के पास कम से कम बुनियादी स्वच्छता सुविधा थी।

इस प्रगति के आधार पर कह सकते हैं कि भारत ने खुले में शौच में औसतन 3.39 प्रतिशत वार्षिक की गिरावट दर्ज की है। यदि इस गिरावट दर को 2022 के आंकड़े पर लागू किया जाए तो भारत को ओडीएफ होने में चार से पांच साल और लगेंगे।

इससे कई सवाल खड़े होते हैं जिनमें प्रमुख है, क्या भारत वास्तव में ओडीएफ है? जुलाई 2021 में जारी डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ की जेएमपी रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की 22 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है।

भारत सरकार के दावों और जेएमपी रिपोर्ट के बीच के इस अंतर को अक्सर क्लिनिकल और तकनीकी शब्दावली में समझाया जाता है। भारत के स्वच्छता कार्यक्रम से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि भारत सरकार ने भारत को ओडीएफ घोषित नहीं किया है, बल्कि ये वो गांव थे जिन्होंने खुद को ओडीएफ के लिए प्रमाणित किया और इस तरह देश को ऐसा घोषित करने में सक्षम बनाया।

वहीं दूसरी ओर सरकार इस कार्यक्रम के तहत बने घरेलू शौचालयों सहित स्वच्छता सुविधाओं के मूल्यांकन पर तुली है, जो ऐसी सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करती है जो ओडीएफ स्थिति का दावा करने के लिए एक प्रॉक्सी हो सकती हैं।

खुले में शौच के बजाय शौचालय का उपयोग करने के लिए व्यवहारिक परिवर्तन को निर्धारित नहीं किया गया है। यह केवल एक प्रॉक्सी के रूप में है ताकि ओडीएफ स्थिति का पता लगाया जा सके। वास्तविकता यह है कि खुले में शौच बंद नहीं हुआ है और अभी भी यह काफी हद तक प्रचलित है। खुले में शौच केवल एक स्वस्थ्य व्यक्तिगत आदत नहीं है, बल्कि उनके लिए एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा है जिसके लिए इसके उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया था। अब समय आ गया है कि देश अपने मील के पत्थर ओडीएफ का पुनर्मूल्यांकन करे।