पिछले चार वर्ष से ज्यादा समय से देहरादून और आसपास के कस्बों के कचरे से बना पहाड़ पिछले 50 घंटे से ज्यादा समय से आग की लपटों से घिरा हुआ है। आग को बुझाने के लगातार प्रयास हो रहे हैं, लेकिन कुछ देर तक शांत रहकर आग फिर भड़क जाती है।
देहरादून से करीब 30 किमी दूर सेलाकुई के शीशमबाड़ा में जनवरी, 2018 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाया गया था। दावा किया गया था कि यहां कचरे का निस्तारण किया जाएगा। इससे खाद और अन्य कई तरह की चीजें बनाने का भी दावा किया गया था। इसके लिए यहां मशीने भी लगाई गई, लेकिन मशीनें एक दिन भी नहीं चली। नतीजा यह हुआ कि प्लांट में कचरे का पहाड़ खड़ा होता चला गया और अब यह पहाड़ आग की चपेट में है।
कचरे के ढेर में आग 4 अप्रैल, 2022 की दोपहर को लगी। सूचना फायर ब्रिगेड को दी गई। फायर ब्रिगेड की कुछ गाड़ियां मौके पर पहुंची। करीब 3 घंटे की मशक्कत के बाद लपटें दिखनी बंद हो गई और मान लिया गया कि आग बुझ गई है। लेकिन, सिर्फ लपटें पानी के गिरने से कुछ देर के लिए शांत हुई थी, कचरे का पहाड़ अंदर ही अंदर अब भी धधक रहा था और लगातार जहरीला धुंआ आसपास के इलाकों में फैल रहा था।
5 अप्रैल को एक बार फिर आग की लपटें एक दिन पहले की तुलना में ज्यादा तेज उठने लगी। फिर फायर ब्रिगेड को सूचना दी गई। आसपास के शहरों से भी फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मंगवाई गई, 150 गाड़ियों का पानी उड़लने के बाद भी आग शांत नहीं हो पाई। इस प्लांट से लगी बाईखाला बस्ती और औद्योगिक कस्बे सेलाकुई की करीब 2 लाख की आबादी जहरीले और बदबूदार धुएं से घिरी हुई है। बताया जाता है बाईखाला बस्ती में प्लांट से लगे कुछ घरों के लोग अपना घर छोड़कर रिश्तेदारों के यहां रहने के लिए चले गये हैं।
शीशमबाड़ा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में हर रोज देहरादून और आसपास के कस्बों से निकलने वाला एक हजार टन से ज्यादा कचरा डंप किया जाता है। यहां दिसंबर, 2017 से कचरा डंप किया जा रहा है। हालांकि प्लांट का औपचारिक उद्घाटन जनवरी, 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किया था। कचरे के निस्तारण के लिए कुछ मशीनें भी लगाई गई, लेकिन मशीनें कभी नहीं चली।
कूड़े का ढेर बढ़ने लगा तो आसपास के क्षेत्रों में बदबू फैलने लगी। लोगों ने अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कोई हल नहीं निकला। आखिरकार अप्रैल, 2018 में स्थानीय लोग प्लांट के विरोध में सड़कों पर उतर आए। तब लोगों को शांत करने के लिए कहा गया कि प्लांट के चारों ओर 40 फुट ऊंची दीवार बनाई जाएगी और कचरे में नियमित रूप से छिड़काव किया जाएगा, लेकिन 25 फुट ऊंची ही दीवार बनाई गई, जबकि कचरे का पहाड़ 50 फुट से ज्यादा ऊंचा हो गया।
देहरादून नगर निगम ने इस प्लांट की देखरेख की जिम्मेदारी रेमकी नामक एक प्राइवेट कंपनी को दी हुई है। प्लांट में सामान्य कायदे-कानूनों का कितने बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया जाता है, इसका किसी को पता नहीं लगता। कारण यह है कि इस प्लांट में किसी को जाने की इजाजत नहीं है। यदि कोई जाना चाहे तो उसे निगम आयुक्त से अनुमति पत्र लाने के लिए कहा जाता है। लेकिन, यह अनुमति पत्र आज तक किसी को नहीं मिला। सितम्बर, 2019 में ‘डाउन टू अर्थ’ ने इस प्लांट की अनियमिताओं को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट के लिए प्लांट में जाने का प्रयास किया गया था, लेकिन इजाजत नहीं मिल पाई थी।
फिलहाल आग लगने के बाद से यह गोपनीयता और बढ़ा दी गई है। पुलिस के अंडर में चलने वाली फायर सर्विस आमतौर पर आग बुझाने के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करती है, लेकिन शीशमबाड़ा आग के मामले में एक शुरुआती वीडियो के बाद कोई तस्वीर या वीडियो जारी नहीं किया गया है।
स्थानीय विधायक के नेतृत्व में एक बार फिर आसपास के लिए विरोध करने के लिए प्लांट के बाहर पहुंचे हैं। लोगों का आरोप है कि कचरे का पहाड़ कम करने के लिए जान-बूझकर यह आग लगाई गई है। लोगों की मौके पर पहुंचे नगर निगम के अधिकारियों से तीखी बहस भी हुई। फिलहाल विधायक और स्थानीय लोगों ने 15 दिन के भीतर प्लांट को यहां से हटाने का अल्टीमेटम दिया है। इसके बाद बड़ा आंदोलन करने की बात कही गई है।