स्वच्छता

पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: शिवरात्रि उत्सव पर उठे सवाल, यह मिला जवाब

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें

Susan Chacko, Dayanidhi

ईशा फाउंडेशन ने कोयम्बटूर के पास वेलियांगिरी पहाड़ियों के आसपास महाशिवरात्रि के दौरान और उसके बाद मिट्टी के अपशिष्ट के निपटान पर तमिलनाडु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनएसपीसीबी) की रिपोर्ट के जवाब में एक प्रत्युत्तर जवाब दाखिल किया। रिपोर्ट में त्योहार के दौरान शोर के स्तर के बारे में भी बात की गई।

फाउंडेशन ने कहा कि त्योहार मानाने से इलाके के लोगों और जानवरों को कोई समस्या न हो इस बात का ध्यान रखा जाता है। यह उत्सव फाउंडेशन के बनने से पहले तथा वेलियांगिरी अंदावर मंदिर की उपस्थिति के कारण पहले से ही क्षेत्र में प्रसिद्ध था। महा शिवरात्रि के दौरान लाखों लोग वेलियांगिरी पहाड़ियों पर चढ़ते हैं।

फाउंडेशन का कहना था कि त्योहार पर्यावरण को किसी भी तरह की क्षति पहुंचाए बिना अत्यंत सावधानी के साथ मनाया जाता है। जिस भूमि पर उत्सव आयोजित किया गया था वह वन भूमि नहीं बल्कि पट्टे पर है। फाउंडेशन ने त्योहार की अवधि के दौरान पर्याप्त मात्रा में स्वयंसेवकों और मजदूरों को कचरे को इकट्ठा करने के लिए रखा था।

कचरे को अलग-अलग डिब्बे में एकत्र किया गया, जिसमें बायोडिग्रेडेबल, जो बायोडिग्रेडेबल नहीं था और घरेलू खतरनाक कचरा शामिल था। बायोडिग्रेडेबल कचरे को घास-पात से ढककर खाद में परिवर्तित किया गया। जो कचरा बायोडिग्रेडेबल नहीं है और घरेलू खतरनाक कचरे को सुरक्षित तरीके से अधिकृत डीलरों के माध्यम से निपटाया जा रहा है।

टीएनएसपीसीबी की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि फाउंडेशन द्वारा स्वयंसेवकों और भक्तों के लिए एरेका लीफ प्लेट में मुफ्त भोजन वितरित किया गया। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के अनुसार वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर ठोस अपशिष्ट का निपटान किया गया।

वन सीमा से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही कार्यक्रम स्थल पर लाउडस्पीकर रखे गए थे। उत्सव में आगंतुकों की सुविधा के लिए प्रकाश और ध्वनि प्रणाली स्थापित की गई थी।

रिपोर्ट एनजीटी की साइट पर 5 नवंबर को अपलोड की गई

सोने की परख और हॉलमार्किंग केंद्र

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एनजीटी को सूचित किया कि उसने भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और सीपीसीबी के परामर्श से 'गोल्ड असेसमेंट एंड हॉलमार्किंग सेंटर' के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं। इसके लिए इंडियन एसोसिएशन ऑफ हॉलमार्किंग सेंटर्स से भी सलाह ली गई।

इस सब के बाद  दिशानिर्देशों को सीपीसीबी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था और उनके कार्यान्वयन के लिए सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) / प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) के बीच साझा किए गए थे।

4 नवंबर, 2020 की सीपीसीबी रिपोर्ट ने एनजीटी को सूचित किया कि दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की अनुपालन रिपोर्ट 22 एसपीसीबी / पीसीसी से प्राप्त की गई। दिशानिर्देशों को एसपीसीबी / पीसीसी ने अपनी वेबसाइटों पर अपलोड किया था। मिजोरम एसपीसीबी ने कहा कि उसने अपनी वेबसाइट पर दिशानिर्देश अपलोड किए थे, हालांकि राज्य में अब तक सोने की परख और हॉलमार्किंग केंद्र नहीं हैं।

चंडीगढ़ पीसीसी ने अपनी वेबसाइट पर दिशानिर्देश अपलोड नहीं किए हैं। हालांकि, केंद्र शासित प्रदेशों में सभी स्वर्ण परख और हॉलमार्किंग केंद्रों को सहमति के लिए आवेदन करने के लिए निर्देशित दिए गए है। पुडुचेरी एसपीसीबी ने बिना सहमति से संचालित दो केंद्रों को निर्देश जारी किया है।

एनजीटी ने 18 नवंबर, 2019 को सीपीसीबी को स्वर्ण परख और हॉलमार्किंग केंद्रों पर मौजूदा दिशानिर्देशों को अपडेट करने के निर्देश दिए थे, ताकि पर्यावरण के मानदंडों को पूरा किया जा सके।

अदालत का यह आदेश एनजीटी के समक्ष दायर एक याचिका के जवाब में था। याचिका में कहा गया है कि सोने के परीक्षण में अम्लीय गतिविधियों की जांच के लिए एक नियामक व्यवस्था की आवश्यकता है।

स्टोन क्रशर के खिलाफ कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने एनजीटी द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए हरियाणा में श्री गणेश स्टोन क्रेशर कंपनी जैसे स्टोन क्रशरों के खिलाफ मुकदमा चलाने और मुआवजे की कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया गया था।

मामले को चार सप्ताह के भीतर निपटाने की दिशा में एनजीटी को वापस सौंप दिया गया। एससी ने कहा कि स्टोन क्रशरों की एनजीटी द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत एनजीटी के समक्ष सभी बिंदुओं पर बहस करने के लिए सभी पक्षों के लिए खुली होगी।

सीवर लाइनों के स्थान पर नालियां बनाई जा रही हैं दिल्ली के छतरपुर एन्क्लेव में

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2 नवंबर को छतरपुर एन्क्लेव में सीवर लाइनों के स्थान पर नालियों के निर्माण के मामले की जांच के लिए दिल्ली के मुख्य सचिव के अधीन एकीकृत नाली प्रबंधन प्रकोष्ठ (आडीएमसी) बनाने का निर्देश दिया है।

महेश चंद्र सक्सेना द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि वर्षा जल संचयन प्रणाली का निर्माण किया जाना था, जिसके लिए एनजीटी द्वारा निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नतीजा यह है कि बारिश का पानी बेकार पानी में मिल रहा है।

छतरपुर एन्क्लेव कॉलोनी एक बड़ी कॉलोनी है। दिल्ली सरकार ने सीवेज के संग्रह के लिए पाइपलाइनों की व्यवस्था करने के बजाय नालियों का निर्माण शुरू कर दिया है।

पीने के पानी की पाइपलाइन नालियों से गुजर रही है। खुली नालियों के कारण, बैक्टीरिया और मच्छर होते हैं और कभी-कभी सीवेज घरों में प्रवेश कर जाता है। याचिकार्ता ने एनजीटी में दायर याचिका के माध्यम से सूचित किया कि सेप्टिक टैंकों से अपशिष्ट जल को भूजल में बहाया जा रहा है।

निर्माण और तोड़े गए अपशिष्ट के प्रबंधन पर डीपीसीसी ने एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट

दिल्ली में हर दिन निर्माण करने और तोड़ा गया अपशिष्ट (कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन वेस्ट, सी और डी वेस्ट) लगभग 3900 टन उत्पन्न होता है, जिसकी सही से निगरानी करने और निपटाने की आवश्यकता होती है।

तदनुसार सी एंड डी अपशिष्ट का अलग संग्रह और ढोने के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित किया गया है। जिसके तहत 3 नगर निगमों (उत्तरी डीएमसी, ईडीएमसी और एसडीएमसी), नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) और दिल्ली छावनी बोर्ड (डीसीबी) द्वारा पहचाने गए तथा चिह्नित स्थलों पर सी एंड डी कचरे को एकत्र किया जाता है। दिल्ली में निर्माण में उपयोग किए गए और तोड़े गए अपशिष्ट प्रसंस्करण और रीसाइक्लिंग सुविधाओं के लिए इन्ही स्थानों पर पहुंचाया जाता है।

दक्षिण डीएमसी क्षेत्र के बक्करवाला में एक नए सी एंड डी अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा के चालू होने के बाद प्रसंस्करण सुविधा की क्षमता का विस्तार हुआ है, इसके बाद अब शास्त्री पार्क में सी एंड डी 500 टीपीडी से 1000 टीपीडी तक हो गई है। इस तरह अब दिल्ली में 4 सी एंड डी अपशिष्ट प्रसंस्करण और रीसाइक्लिंग प्लांट हैं, जिनकी कुल क्षमता 4150 टीपीडी हो गई है।

उपरोक्त सभी का नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में उल्लेख किया गया।

इन प्रसंस्करण सुविधाओं में, बीआईएस मानकों के फर्श बनानेवाला (पेवर ब्लॉक), पत्थर, ईंट, रेत और मिट्टी का उत्पादन सी एंड डी कचरे से किया जा रहा है जो आगे चलकर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में उपयोग किए जा सकते हैं। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों की जरुरत कम से कम हो जाती है। मौजूदा और प्रस्तावित प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ, यह उम्मीद है कि डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में उत्पन्न पूरे सी एंड डी कचरे का वैज्ञानिक, सही तरीके से प्रबंधन किया जा रहा है।

एनजीटी ने 2 नवंबर, 2020 के अपने आदेश में कहा कि संबंधित विभागों द्वारा दूर हटाने (ऑफ-टेक) में अभी तक वृद्धि नहीं हुई है और इसकी समान निगरानी की जरूरत है।

डीडीए, डीएमसीआर और ईडीएमसी द्वारा बताया गया कि प्राप्त लक्ष्य 74.01 फीसदी, 41.1 फीसदी और 43.1 फीसदी है। जिसका अर्थ है कि आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (एमओएचयूए) द्वारा निर्धारित लक्ष्य पूरी तरह से हासिल नहीं किया गया है।