स्वच्छता

पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: 13 से 17 जुलाई 2020

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya, Dayanidhi

हानिकारक कचरे के ठीक से निपटान न करने पर एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर नाराजगी व्यक्त की है| मामला उत्तर प्रदेश के रानिया, कानपुर देहात और राखी मंडी से जुड़ा है| जरुरी है कि हानिकारक कचरे के निपटान में पूरी सावधानी बरती जाये| पर उत्तरप्रदेश सरकार इस कचरे के निपटारे में वैज्ञानिक पद्दति का इस्तेमाल नहीं कर रही है| 

हानिकारक कचरे का यह ढेर 1976 से है| जिसकी वजह से वहां जमीन में मौजूद जल दूषित हो रहा है| इसका असर वहां के जीव- जंतुओं और रहने वाले लोगों पर पड़ रहा है| साथ ही वहां का इकोसिस्टम भी प्रभावित हो रहा है| इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने 4 फरवरी को एक रिपोर्ट सबमिट की थी| इसके बाद 11 जून  को एक और रिपोर्ट कोर्ट के सामने प्रस्तुत की गई| इस मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी 14 जुलाई को अपनी रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखी थी|

उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव द्वारा जो रिपोर्ट सबमिट की गई थी, उसमें पर्यावरण की बहाली के लिए कार्ययोजना तैयार की गई थी| साथ ही वहां रहने वाले लोगों के लिए भी जल की व्यवस्था करने के लिए कदम उठाए थे। इसके साथ ही जून 2020 में सबमिट रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि इसके हानिकारक प्रभाव को काम करने की योजना अभी पहले चरण में है| जबकि कोर्ट के अनुसार सीपीसीबी की रिपोर्ट बहुत सामान्य है|

इस मामले में एनजीटी ने 16 जुलाई, 2020 को एक आदेश पारित किया था| जिसमें कहा गया था क्रोमियम का यह डंप जहरीले रसायनों से भरा है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक है| बार-बार निर्देश जारी करने के बाद भी कचरे के इस ढेर को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उपचार, भंडारण, और निपटान की सुविधा (टीएसडीएफ) में नहीं भेजा गया था| जोकि उसके ढीले रवैये को दिखाता है| गौरतलब है कि इसके हानिकारक प्रभाव को तभी ख़त्म किया जा सकता है जब इस कचरे के ढेर को निपटान के लिए भेज दिया जाए|    

यदि इस मामले में इसी तरह ढिलाई बरती जाएगी तो स्थिति और गंभीर हो सकती है| ऐसे में कोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द इस मामले में कार्यवाही करे और काम को प्राथमिकता के साथ तय सीमा में ख़त्म करे| जिसे मुख्य सचिव द्वारा स्वयं मॉनिटर करने के आदेश दिए हैं| साथ ही इस मामले में कोर्ट ने एक संयुक्त जांच समिति का भी गठन किया है| यह समिति इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.वी.एस राठौर की अध्यक्षता में गठित की गई है| यह समिति इस मामले में हो रही प्रगति की जांच करके अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करेगी| 

शंकरगढ़ में सिलिका वाशिंग यूनिट्स से वसूला जाए मुआवजा: एनजीटी

16 जुलाई 2020 को एनजीटी के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सोनम फिंटसो वांग्दी की पीठ ने आदेश दिया है कि शंकरगढ़ में सिलिका वाशिंग यूनिट्स से मुआवजा वसूला किया जाए| आपने आदेश में एनजीटी ने कहा है कि केवल सिलिका वाशिंग यूनिट्स को बंद करने से जिम्मेदारी ख़त्म नहीं होती| पहले जो नियमों का उल्लंघन किया गया है उसके लिए मुआवजा भरना पड़ेगा।

यह आदेश प्रयागराज के डिविज़नल कमिश्नर द्वारा सबमिट रिपोर्ट के जवाब में दिया है| यह रिपोर्ट सिलिका युक्त रेत को धोने के लिए अवैध रूप से भूजल की निकासी से जुडी थी| जिसके अनुसार यहां भूमिगत जल को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से एनओसी लिए बिना निकाला जा रहा था| रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में सुधारात्मक कार्यवाही की जा चुकी है| मामला उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले का है|

रिपोर्ट के अनुसार 61 इकाइयों के संदर्भ में सक्षम प्राधिकारी द्वारा अगस्त 2019 में 7.25 लाख का मुआवजा लगाया गया था| हालांकि 9 इकाइयों के संबंध में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति जारी करने की कोई प्रक्रिया नहीं हुई थी, क्योंकि वे पहले से ही बंद पाए गए थे। इसके अलावा 61 इकाइयों में से 60 के लिए अवैध सिलिका वाशिंग प्लांटों के खिलाफ रिकवरी प्रमाणपत्र जारी किए गए थे| जबकि एक के खिलाफ यह जारी करने की प्रक्रिया में है जिसे जल्द जारी कर दिया जाएगा|

ट्रिब्यूनल ने उल्लेख किया कि जिन 9 यूनिट्स को बंद कर दिया गया था, उन पर अब तक कार्यवाही नहीं की गई है| ऐसे में कोर्ट ने प्रयागराज के मंडल आयुक्त को निर्देश दिया है कि वे आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करें और सभी उल्लंघनकर्ताओं से मुआवजा वसूल करें। 

रेलवे स्टेशनों का किया जाए पर्यावरण मूल्यांकन: एनजीटी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) / प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) की टीमों ने फरवरी-मार्च, 2020 के दौरान पर्यावरण का मूल्यांकन करने के लिए 36 रेलवे स्टेशनों का निरीक्षण किया था।

सीपीसीबी को रेलवे अधिकारियों से पत्र प्राप्त हुआ था जिसका उद्देश्य रेलवे स्टेशनों को लाल / नारंगी / हरी श्रेणी में वर्गीकृत करने के बारे में जानकारी प्राप्त करना था, साथ ही इसको पूरा करने के लिए एसपीसीबी/ पीसीसी से सहमति प्राप्त करना था।

सीपीसीबी और रेलवे स्टेशनों की विशेषज्ञ समिति द्वारा रेलवे स्टेशनों की प्रदूषण क्षमता से संबंधित जानकारी का आकलन किया और उन्हें लाल / नारंगी / हरे रंग की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया। यह सारी जानकारी सीपीसीबी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के अनुपालन में एक रिपोर्ट में संकलित की है।

एनजीटी ने सीपीसीबी और संबंधित एसपीसीबी / पीसीसी की एक संयुक्त टीम को निर्देश दिया था। इन कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन में जल अधिनियम, वायु अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और नियमों के प्रावधानों के अनुपालन के संदर्भ में प्रमुख रेलवे स्टेशनों का मूल्यांकन करना था। विशेष रूप से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016, खतरनाक और अन्य अपशिष्ट नियम 2016, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट नियम 2016, निर्माण और तोड़ने संबंधित अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 शामिल थे।

राज्य पीसीबी / पीसीसी को जल अधिनियम 1974 की धारा 25 और रेलवे के वायु अधिनियम 1981 की धारा 21 के अनुपालन में सीपीसीबी के माध्यम से रिपोर्ट सौंपनी थी। 

31 दिसंबर तक बंद करना होगा आरओ का इस्तेमाल: एनजीटी 

एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को 20 मई, 2019 के अपने आदेश में निर्धारित तरीके से आरओ के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए एक अधिसूचना जारी करने को कहा था देश में रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) तकनीक के उपयोग के कारण पानी की अत्यधिक हानि हो रही है।

इस मामले पर 13 जुलाई 2020, को एनजीटी के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सोनम फिंटसो वांग्दी की दो सदस्यीय पीठ में सुनवाई हुई। अदालत ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को 20 मई, 2019 के अपने आदेश में एनजीटी द्वारा निर्धारित तरीके से आरओ के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए एक अधिसूचना जारी करने को कहा था, पर ऐसा नहीं किया गया। इस देरी पर अदालत ने मंत्रालय से जवाब मांगा।

एक वर्ष बीतने के बाद भी, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लॉकडाउन के कारण समय बढ़ाने की मांग की थी। अदालत ने निर्देश दिया कि आवश्यक कार्रवाई अब 31 दिसंबर, 2020 तक पूरी की जानी चाहिए। मामले को 25 जनवरी, 2021 को फिर से विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया है। 

दिल्ली में अवैध रूप से चल रहे 30,000 उद्योग बंद करने होंगे: रिपोर्ट

दिल्ली के नगर निगमों को चाहिए कि वो आवासीय और गैर औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगों को लाइसेंस / एनओसी प्रदान करने से पहले दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 में दिए प्रावधानों का पालन करे। यह जानकारी दिल्ली सरकार द्वारा एनजीटी के सामने प्रस्तुत रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट दिल्ली के आवासीय और गैर औद्योगिक क्षेत्रों चल रहे उद्योगों के मामले में प्रस्तुत की है|

रिपोर्ट के अनुसार आवासीय और गैर औद्योगिक क्षेत्रों में चल रही 21,960 इकाइयों को बंद कर दिया गया है| जबकि अभी भी करीब 30,000 ऐसी इकाइयां हैं, जो अवैध तरीके से चल रही हैं और जिन्हें बंद करना जरुरी है। दिल्ली के इंडस्ट्रीज कमिश्नर ने बताया है कि 2021 के मास्टर प्लान के अंतर्गत 33 औद्योगिक क्षेत्रों और 23 औद्योगिक क्लस्टर को अनुमति दी गई है| जिनका पुनः विकास किया जाना है| इन क्षेत्रों में केवल उन उद्योगों को छोड़कर जिन्हें निषिद्ध किया गया है और जो हानिकारक हैं, सभी को चलाने की अनुमति है। 

इसके अलावा नए मास्टर प्लान में घरेलू उद्योगों को आवासीय और गैर औद्योगिक क्षेत्रों और गावों में भी चलाने की अनुमति दी गई है। बशर्ते वो श्रेणी 'ए' में आते हों। लेकिन इन इकाइयों को पहले दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति से सहमति लेनी होगी। साथ ही यह भी तय किया गया है कि बिजली वितरण कंपनियां और दिल्ली जल बोर्ड 11 किलोवाट से अधिक के कनेक्शन वाली घरेलू इकाइयों की आपूर्ति को बंद कर देंगे।

 रिपोर्ट के अनुसार नगर निगमों को अब तक लाइसेंस के लिए 2104 आवेदन प्राप्त हुए हैं जोकि नगर निगमों के फैक्ट्री लाइसेंसिंग विभाग के पास लंबित है। साथ ही सरकार ने अवैध इकाइयों से मुआवजा वसूलने के लिए और अधिक समय देने का अनुरोध कोर्ट से किया है।