स्वच्छता

एनजीटी ने टिहरी गढ़वाल में सीबीडब्ल्यूटीएफ के खिलाफ दायर याचिका को किया खारिज

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 6 मार्च, 2023 को कोडरना गांव में कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (सीबीडब्ल्यूटीएफ) को पर्यावरण मंजूरी देने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। मामला उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल का है। गौरतलब है कि राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए), उत्तराखंड ने मैसर्स भारत पर्यावरण समाधान के पक्ष में पर्यावरण मंजूरी दी थी।

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि "भले ही अपशिष्ट उपचार संबंधी गतिविधियां खतरनाक हों, चूंकि पैदा हो रहे अपशिष्ट को रोका नहीं जा सकता ऐसे में इसका उपचार एक मजबूरी है"।

एनजीटी ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि परियोजना के प्रतिकूल प्रभाव को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। इस मामले में अपीलकर्ता, चिकित्सा प्रदूषण नियंत्रण समिति का कहना था कि यह मामला 'लाल' श्रेणी की गतिविधियों से सम्बंधित है, जो 1 फरवरी, 1989 को जारी दून घाटी अधिसूचना के मद्देनजर दून घाटी में स्वीकार्य नहीं है।

वहीं एनजीटी का कहना है कि दून घाटी अधिसूचना ने खनन जैसी कुछ गतिविधियों पर रोक लगा दी है, जबकि कई अन्य गतिविधियों को पर्यावरण मंजूरी के अंतर्गत अनुमति दी गई है। इस अधिसूचना में 6 जनवरी, 2020 को संशोधन किया गया था, जिसमें सामान्य उपचार और निपटान सुविधाओं को 'लाल' श्रेणी के उद्योगों से हटा दिया गया था।

संशोधित अधिसूचना में कहा गया है कि 'सीईटीपी, टीएसडीएफ, सीबीएमडब्ल्यूटीएफ, एफ्लुएंट कन्वेयंस प्रोजेक्ट, इंसीनरेटर, एमएसडब्ल्यू सैनिटरी लैंड फिल साइट' को 'लाल' लेकिन विशेष श्रेणी की परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा क्योंकि ये प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित सुविधाओं का हिस्सा हैं। 

जानिए क्यों एनजीटी ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को दो करोड़ का मुआवजा देने का दिया निर्देश

एनजीटी ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को दो करोड़ रुपए का जुर्माना भरने का निर्देश दिया है। एनएचएआई पर यह जुर्माना हाईवे संख्या 44 के निर्माण के दौरान अपने पर्यावरणीय दायित्वों का पालन कर पाने में विफल रहने के लिए लगाया गया है। आठ लेन का यह हाईवे मुकरबा चौक से सिंघू सीमा, दिल्ली को जोड़ता है।

इस मामले में एनजीटी का कहना है कि धूल उत्पन्न करने वाली किसी भी गतिविधि के साथ धूल नियंत्रण के उपाय भी किए जाने चाहिए, जो एनएचएआई द्वारा नहीं किए गए हैं।

ऐसे में उसे मुआवजे की इस राशि को अगले एक महीने के भीतर पीसीसीएफ (एचओएफएफ), हरियाणा के पास जमा करना है। इस धनराशि का उपयोग वृक्षारोपण द्वारा क्षेत्र में बहाली के उपायों के लिए किया जाएगा।

इस मामले में संयुक्त समिति द्वारा 21 जनवरी, 2023 को दायर रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएचएआई ने कई स्थानों पर भूमि उपलब्ध होने के बावजूद परियोजना स्थल पर वृक्षारोपण नहीं किया है। देखा जाए तो यह निर्धारित शर्तों का घोर उल्लंघन है। इसी तरह परियोजना स्थल पर धूल कम करने के उपाय भी नहीं किए जा रहे हैं। नतीजतन, आस-पास के ग्रामीण धूल के संपर्क में आ रहे हैं, हालांकि इससे बचा जा सकता था।

बावल औद्योगिक नगर में तय सीमा से ज्यादा किया जा रहा है भूजल का दोहन

रेवाड़ी के बावल औद्योगिक शहर में स्थित मित्सुई किंगजोकू कंपोनेंट्स इंडिया पर स्वीकृत सीमा से अधिक भूजल दोहन करने का आरोप लगाया है। इसके बाद एनजीटी ने मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति को निर्देश दिया है।

इसके लिए एनजीटी ने केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट, रेवाड़ी को लेकर एक संयुक्त समिति का गठन किया है और उसे मामले की जांच कर तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

शिकायतकर्ता के अनुसार भूजल प्राधिकरण द्वारा परियोजना प्रस्तावक को 30 घन मीटर/दिन तक भूजल की निकासी के लिए अनुमति दी थी। जो 18,000 घन मीटर प्रति वर्ष से अधिक नहीं था। हालांकि वहां भूजल का बहुत अधिक दोहन किया जा रहा है। वहीं केंद्रीय भूजल बोर्ड ने बावल क्षेत्र को 'अतिदोहित क्षेत्र ' के रूप में वर्गीकृत किया है।

खेल मैदान के बिना नहीं हो सकता कोई स्कूल

"खेल मैदान के बिना कोई स्कूल नहीं हो सकता। यहां तक कि स्कूल में पढ़ने वाले छात्र भी एक बेहतरीन पर्यावरण के हकदार हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी हरियाणा के एक ग्राम पंचायत की जमीन में स्कूल के अन्य भूभाग पर अवैध कब्जे को लेकर अपने फैसले में की है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न की संयुक्त पीठ ने हरियाणा सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया है।