स्वच्छता

जल्द से जल्द सोलर पैनल सम्बंधित कचरे के लिए एक्शन प्लान को अंतिम रूप दे मंत्रालय: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

एनजीटी ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) को जल्द से जल्द सोलर पैनल सम्बंधित कचरे के प्रबंधन से जुड़े एक्शन प्लान को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने मंत्रालय को अधिक से अधिक दो महीने का समय दिया है।

गौरतलब है कि ट्रिब्यूनल द्वारा डाउन टू अर्थ में 13 जनवरी को प्रकाशित एक रिपोर्ट “'टाइम्स रनिंग आउट: इस इंडिया रेडी टू हैंडल 34,000 टन ऑफ सोलर वेस्ट बाय 2030?” पर  स्वत: संज्ञान लिया था।

डीटीई के इस लेख में कहा गया है कि भारत का महत्वाकांक्षी सौर ऊर्जा लक्ष्य 2030 तक 280 गीगावॉट का है। ऐसे में यह एक ठोस सोलर अपशिष्ट प्रबंधन नीति तैयार करने का समय है। एनजीटी ने 14 फरवरी, 2022 को इस मामले पर एक संयुक्त समिति का गठन किया था। जिसे यह निर्देश दिया गया कि निर्धारित मानदंडों के अनुसार सौर पैनल सम्बन्धी कचरे निपटान और प्रबंधन के लिए एक पर्यावरण को ध्यान में रखकर एक सशक्त कार्य योजना तैयार की जाए।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अदालत को जानकारी दी गई है कि इस मामले में 7 अप्रैल, 2022 को एक संयुक्त समिति की एक बैठक हुई थी। साथ ही समिति ने अपनी सर्कुलर इकोनॉमी इन सोलर पैनल्स नामक अपनी रिपोर्ट 17 मई, 2022 को कोर्ट में सबमिट कर दी है। इस रिपोर्ट में सोलर पैनल्स सम्बंधित कचरे के पर्यावरण को ध्यान में रखकर प्रबंधन के लिए चरणबद्ध तरीके के साथ एक एक्शन प्लान का सुझाव दिया गया है।

यमुनानगर अवैध रेत खनन मामले में एनजीटी ने आरोपी से मांगा जवाब

एनजीटी ने 19 जुलाई 2022 को दिए अपने आदेश में आरोपी से निगरानी समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर उसका जवाब मांगा है। मामला हरियाणा के यमुना नगर जिले के पोबारी, कोहलीवाला और बेलगढ़ में होते अवैध रेत खनन का है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि निगरानी समिति द्वारा दायर रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि खनन के दौरान नियमों का गंभीर रूप से उल्लंघन किया गया था। साथ ही आरोपी ने खनन योजना और पर्यावरण मंजूरी की शर्तों के अनुसार आवश्यक सुरक्षा उपाय नहीं किए थे।

एनजीटी का कहना है कि, “ऐसा लगता है कि नियमों को तोड़ने के लिए जवाबदेही तय करने और मानदंडों का पालन करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।“ ऐसे में अदालत ने परियोजना प्रस्तावकों को अंतिम आदेश पारित होने से पहले रिपोर्ट पर यदि उसका कोई जवाब है तो उसे देने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि इस मामले में एनजीटी ने 8 मार्च, 2022 को न्यायमूर्ति प्रीतम पाल की अध्यक्षता वाली निगरानी समिति से अनुरोध किया था कि वो प्राधिकरण की सहायता से साइट का दौरा करके तथ्यात्मक स्थिति की जांच करें। 

पर्यावरण नियमों की अनदेखी पर एनजीटी ने गोगेट मिनरल्स पर लगाया 5 करोड़ का जुर्माना

एनजीटी की पश्चिमी खंडपीठ ने पर्यावरण नियमों की अनदेखी पर गोगेट मिनरल्स को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। उसे तीन महीने के भीतर 'प्रदूषक भुगतान' सिद्धांत के आधार पर 5 करोड़ रुपए भरने होंगे। गौरतलब है कि कोर्ट का यह आदेश परियोजना प्रस्तावक द्वारा पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी  मानदंडों के उल्लंघन में लगाया है।

इस मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सिंधुदुर्ग जिला मजिस्ट्रेट की संयुक्त समिति द्वारा जुर्माने को वसूल करने के तीन महीने के भीतर बहाली योजना तैयार करनी है, जिसे सिंधुदुर्ग के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा निष्पादित किया जाएगा।

गौरतलब है कि गोगेट मिनरल्स को महाराष्ट्र सरकार द्वारा 6 नवंबर 1971 को 20 साल के खनन पट्टा दिया गया था। खनन के लिए दी गई यह जमीन सिंधुदुर्ग (वर्तमान रत्नागिरी) जिले की स्वांतवाड़ी तालुका के तिरोदा गांव में स्थित है। इस लीज में सर्वे नंबर 22, 20, 27, 33, 38, 39 की कुल 34.81 हेक्टेयर जमीन खनन के लिए पट्टे पर दी गई थी, जिसे बाद में 4 अप्रैल 2000 को अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया था।

इस खनन के लिए एमओईएफएंडसीसी ने ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत 30 दिसंबर, 2008 को मंजूरी दी थी। पर्यावरण मंजूरी की शर्तों के तहत यह प्रावधान किया गया था कि इस 34.481 हेक्टेयर जमीन में से केवल 12.16 हेक्टेयर पर ही खनन किया जाएगा।

वहीं लीज क्षेत्र के भीतर डंप साइट के निर्दिष्ट स्थान की जगह परियोजना प्रस्तावक ने पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन करते हुए उसे लीज क्षेत्र के बाहर ओवरबर्डन को डंप किया था।