स्वच्छता

पर्यावरण को हुए नुकसान के बदले 200 करोड़ का भुगतान करे उत्तराखंड सरकार: एनजीटी

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड को 200 करोड़ रुपए के पर्यावरणीय मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया है। मामला राज्य में सीवेज और ठोस कचरे के बढ़ते प्रदूषण से जुड़ा है। कोर्ट ने यह जुर्माना सीवेज के उत्पादन और उपचार में 60 एमएलडी के अंतर के साथ ठोस कचरे के निपटान में 252.65 टीपीडी के अंतर के लिए लगाया है।

इसके साथ ही राज्य में अभी भी 15.75 लाख मीट्रिक टन कचरा वर्षों से जमा है, इसे भी ध्यान में रखा है। जानकारी मिली है कि जुर्माने की इस राशि का उपयोग विशेष रूप से सीवेज और ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए किया जाएगा। यह आदेश 11 मई, 2023 को दिया गया है।

हालांकि साथ ही न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव के इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया कि एनजीटी द्वारा मुआवजा वसूलने के बजाय प्रशासन स्वयं एक महीने के भीतर मुआवजे की इस रकम को एक अलग रिंग फेंस खाते में डाल देगा।

देहरादून और टिहरी गढ़वाल में अवैध डंपिंग स्थलों को तुरंत कर दिया जाए बंद: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 10 मई, 2023 को दिए अपने आदेश में कहा है कि टिहरी गढ़वाल और देहरादून में अवैध डंपिंग स्थलों को तुरंत बंद कर दिया जाना चाहिए। मामला उत्तराखंड में इथरना से कुखाई तक 12 किलोमीटर लंगी सड़क के निर्माण के दौरान गैरकानूनी तरीके से बने अनधिकृत मलबा डंपिंग क्षेत्रों से जुड़ा है।

साथ ही कोर्ट ने इन स्थानों पर पेड़ लगाने की बात भी कही है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि भविष्य में इस प्रकार की गैरकानूनी तरीके से डंपिंग न की जाए।

साथ ही आदेश में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि वन भूमि के डायवर्जन और अन्य पर्यावरणीय मानदंडों के लिए शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करने की जरूरत है। जानकारी मिली है कि सड़क निर्माण के दौरान जाखन नदी,में भी कचरे को अवैज्ञानिक तरीके से डंप किया गया है। गौरतलब है कि जाखन गंगा की एक सहायक नदी है। इसकी वजह से शंभूवाला गांव के पास एक अस्थाई झील बन गई है।

इस मामले में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ), और देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति ने 18 मार्च, 2023 को रिपोर्ट सबमिट की थी। इस रिपोर्ट में नियमों के उल्लंघनों की बात स्वीकार की गई थी। साथ ही यह माना था कि कचरे के ढेर के कारण झील का निर्माण हुआ है। इसके साथ ही यह भी जानकारी मिली है कि मलबा डालने से 27 पेड़ क्षतिग्रस्त हो गए थे जिसके लिए 50 हजार के जुर्माने की वसूली भी की गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक वहां चार अनधिकृत डंपिंग जोन स्थापित किए गए हैं, जिसके चलते क्षेत्र में पेड़ों को नुकसान पहुंचा है। कोर्ट का कहना है कि रिपोर्टों में पर्यावरण उल्लंघन की बात कही गई है, ऐसे में इसके सुधार के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए।

फ्लाई ऐश से होते प्रदूषण को रोकने के लिए एनजीटी ने दिए निर्देश

एनजीटी ने थर्मल पावर प्लांट्स, कोयला खनन इकाइयों और स्टोन क्रशर को सिंगरौली और सोनभद्र में इन इकाइयों के कारण होते प्रदूषण को रोकने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए कोर्ट ने इन इकाइयों को औद्योगिक संचालन के साथ कोयले और फ्लाई ऐश के परिवहन के दौरान होते उत्सर्जन को रोकने और दूर करने के लिए भी जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

मामला उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश से जुड़ा है। कोर्ट के अनुसार फ्लाई ऐश का उपयोग और प्रबंधन तय प्रक्रियाओं के तहत होना चाहिए। इसके उल्लंघन के मामले में उन इकाइयों को बंद करना पड़ता है जो नियमो का पालन नहीं कर रही।

साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि इससे पहले जो उल्लंघन किए गए हैं उनके लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए। वहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अब तक जो उपाय किए गए हैं वो पर्याप्त नहीं हैं। वहीं एनजीटी ने आगे कहा कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इसकी रोकथाम और बहाली के लिए जो कार्रवाई की है उसके बारे में कोई रिपोर्ट सबमिट नहीं की गई है।