नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नरसापुर नगर पालिका को वशिष्ठ नदी के किनारे कचरा फेंकने पर रोक लगाई है।
एनजीटी ने तीन महीने के भीतर कचरे के वैज्ञानिक निपटान की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है।
रिपोर्ट में पाया गया कि नदी किनारे 50,000 मीट्रिक टन से अधिक कचरा जमा है, जिससे जल और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की दक्षिणी पीठ ने नरसापुर नगर पालिका को वशिष्ठ नदी के किनारे और तटीय नियमन क्षेत्र (सीआरजेड) में फेंके जा रहे ठोस कचरे को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया है।
ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि नगर पालिका को तीन महीनों के भीतर हर दिन पैदा होने वाले 35 टन कचरे की छंटाई, परिवहन और वैज्ञानिक निपटान की समुचित व्यवस्था करनी होगी, जो ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के अनुरूप हो।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि जब तक ये सुविधाएं विकसित नहीं हो जातीं, तब तक सारा कचरा अधिकृत वेस्ट-टू-एनर्जी या किसी अन्य स्वीकृत प्रोसेसिंग प्लांट में भेजा जाए। नरसापुर नगर पालिका को तीन महीनों के भीतर लीचेट (कचरे से निकलने वाला गंदे तरल) को एकत्र करने और उसके उपचार की व्यवस्था करनी होगी। इसके साथ ही धूल नियंत्रण, आग से बचाव और ग्रीनबेल्ट विकसित करने के उपाय भी करने होंगे।
इन सभी कार्यों की दिशा में कितनी प्रगति हुई है उसकी रिपोर्ट आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) को देनी होगी।
यह मामला नरसापुर नगर पालिका द्वारा वशिष्ठ नदी के किनारे और उसके बाढ़ क्षेत्र में वर्षों से अवैध रूप से फेंके जा रहे कचरे से जुड़ा है, जो कि सीआरजेड अधिसूचना और ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन है।
संयुक्त समिति की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
संयुक्त समिति ने अपनी 7 मई 2025 को सबमिट रिपोर्ट में जानकारी दी है कि नरसापुर नगर पालिका हर दिन करीब 35 टन कचरा उत्पन्न करती है, जिसमें से सिर्फ 4.2 टन वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट को भेजा जा रहा था, जबकि करीब 30.8 टन कचरा वशिष्ठ नदी किनारे डंप किया जा रहा है। वहां पहले ही 50,000 मीट्रिक टन से ज्यादा पुराना कचरा जमा हो चुका है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वशिष्ठ नदी और आसपास के इलाके में बोरवेल्स से लिए नमूनों में टीडीएस, क्लोराइड, भारी धातुओं और बीओडी का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है, जिससे यह पानी पीने और नहाने के लायक नहीं रह गया है। इसके अलावा, पीएम10 और पीएम2.5 जैसे हानिकारक कणों का स्तर भी राष्ट्रीय मानकों से अधिक पाया गया।
एनजीटी का कहना है डंपसाइट पर बार-बार आग लगने की घटनाएं अतिरिक्त खतरा पैदा कर रही हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि यह डंपसाइट सीआरजेड-Iबी और सीआरजेड-IVबी क्षेत्रों में आती है, जहां कचरा फेंकना सख्त रूप से प्रतिबंधित है। नगर पालिका ने सीआरजेड अधिसूचना का उल्लंघन किया है, जिस पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है।
आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 26 अगस्त 2025 को सबमिट रिपोर्ट के मुताबिक नगर पालिका ने पुरानी डंपसाइट पर कचरा फेंकना बंद कर दिया है और अब कचरा नगरपालिका की 0.37 एकड़ की जमीन पर डाला जा रहा है, जो पुराने डंपसाइट के ठीक सामने स्थित है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सूखा कचरा सप्ताह में दो बार गुन्टूर के जिन्दल वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट में भेजा जा रहा है और 19 अगस्त तक कुल 128 मीट्रिक टन कचरे का निपटान किया जा चुका है।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि नगर पालिका ने अब तक हर दिन पैदा हो रहे 35 टन कचरे के संग्रह, छंटाई, परिवहन और प्रसंस्करण के लिए जरूरी ढांचा विकसित नहीं किया है। साथ ही लीचेट प्रबंधन की भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
रिपोर्टों और निरीक्षण से यह साफ साबित हुआ है कि वशिष्ठ नदी किनारे बड़े पैमाने पर बिना अनुमति के कचरा फेंका गया है। एनजीटी ने कहा कि नगर पालिका द्वारा आंशिक पालन का दावा उसे पहले और अब हो रहे नियम उल्लंघनों से नहीं बचा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि नगर पालिका ने प्रतिदिन 35 टन कचरे के निपटान के लिए जरूरी ढांचा नहीं बनाया है और न ही लीचेट प्रबंधन, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने या अग्नि सुरक्षा जैसी कोई व्यवस्था की है।
न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा, "नगर पालिका, जिसे वैज्ञानिक कचरा प्रबंधन में मिसाल बनना चाहिए, खुद ही नियमों को ताक पर रख नदी किनारे कचरा फेंक रही है। ऐसा व्यवहार न केवल ठोस कचरा प्रबंधन नियमों की मूल भावना के खिलाफ है, बल्कि जनता के सामने भी गलत उदाहरण पेश करता है।"
संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के ईको सेंसिटिव जोन में निर्माण पर उठे सवाल, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी पीठ ने 3 सितंबर 2025 को मुंबई के गोरेगांव स्थित बिंबिसार नगर पुनर्विकास परियोजना को लेकर ठाणे वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक से रिपोर्ट मांगी है।
ट्रिब्यूनल यह जानना चाहती है कि क्या इस परियोजना के लिए पहले से कोई अनुमति लेना जरूरी था और क्या इस मामले की जांच संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान की ईको-सेंसिटिव जोन मॉनिटरिंग कमेटी द्वारा की जानी चाहिए थी।
गौरतलब है कि इस मामले में याचिका दायर कर भव्या पारशा रियल्टी एलएलपी और बिम्बिसार नगर परिसर सहकारी समिति लिमिटेड के खिलाफ अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है, ताकि पुनर्विकास परियोजना का निर्माण कार्य रोका जा सके। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह साइट संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) में है, जैसा कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया है।