नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मेघालय के मुख्य सचिव को जवाब देने का आदेश दिया है। मामला जोवाई बाईपास परियोजना के दौरान पैदा हुए निर्माण और तोड़-फोड़ से जुड़े कचरे की डंपिंग से जुड़ा है।
25 फरवरी, 2025 को इस मामले में जोवाई के जिला मजिस्ट्रेट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से भी जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।
गौरतलब है कि इस मामले में आवेदक ने एक पत्र याचिका के माध्यम से शिकायत की थी। अपनी शिकायत में उन्होंने सड़क निर्माण के दौरान पैदा हुए मलबे की डंपिंग को लेकर आवाज उठाई थी। उनके मुताबिक इस कचरे से नदी की पारिस्थितिकी को नुकसान हो रहा है, जिससे जलीय जीवन और वनस्पति प्रभावित हो रहे हैं।
इस मामले में 21 नवंबर, 2024 को एनजीटी ने एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया था। इस समिति को जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 10 फरवरी, 2025 को संयुक्त समिति की रिपोर्ट अदालत के सामने प्रस्तुत की। समिति ने पाया कि जोवाई बाईपास के पूरे हिस्से में निर्माण के दौरान मिट्टी और पत्थर घाटी में डाले जा रहे है और मिट्टी की कटाई की जा रही है।
शहर में नहीं है कोई डंप साइट
समिति ने पाया है कि जोवाई शहर में निर्माण और तोड़ फोड़ से जुड़े कचरे को एकत्र, स्टोर या प्रोसेस करने के लिए कोई डंप साइट या उचित स्थल नहीं है, जैसा कि 2016 सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन नियम के तहत अपेक्षित है।
साइट विजिट के दौरान देखा गया कि परियोजना से निकलने वाले निर्माण सम्बन्धी कचरे का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया था। साथ ही, 2016 सीएंडडी अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के अनुसार, कचरे के उचित प्रबंधन के लिए स्थानीय अधिकारियों की ओर से कोई योजना या अनुमति भी नहीं ली गई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि इस कचरे से मिंटडू नदी की जल गुणवत्ता को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा है, लेकिन इससे नदी में मिट्टी और गाद जमा हो गई है।
संयुक्त समिति ने पाया है कि जोवाई कस्बे से निकलने वाले कचरे को लापरवाही से जोवाई-डॉकी सड़क के किनारे घाटी में फेंका जा रहा है। यह शहर में कचरे को इकट्ठा करने और उसका प्रबंधन करने के तरीके में समस्याओं को दर्शाता है।
इससे कचरे के संग्रह, भंडारण और परिवहन में मौजूद खामियां उजागर हुई हैं। उन्होंने यह भी पाया कि जोवाई में कचरे को प्रोसेस करने की कोई उचित सुविधा नहीं है।