स्वच्छता

ऐसे मिलेगी प्लास्टिक कचरे से निजात, फेंके गए पीपीई से बनाया जा सकता है बायोफ्यूल

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये एक नए शोध से पता चला है कि कोरोनावायरस की रोकथाम में इस्तेमाल किये जा रहे व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण (पीपीई) को बायोफ्यूल में बदला जा सकता है

Lalit Maurya

हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये एक नए शोध से पता चला है कि कोरोनावायरस की रोकथाम में इस्तेमाल किये जा रहे व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण (पीपीई) को बायोफ्यूल में बदला जा सकता है| जिससे ने केवल इससे होने वाले हानिकारक कचरे से निजात मिलेगी, साथ ही ऊर्जा में भी वृद्धि होगी| यह शोध टेलर एंड फ्रांसिस जर्नल बायोफ्यूल्स में प्रकाशित हुआ है।

गौरतलब है कि वर्तमान में कोविड-19 महामारी के कारण बड़ी मात्रा में प्रयोग हो रहे यह पीपीई पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या बन चुके हैं|  लेकिन द यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज़ (यूपीईएस), उत्तराखंड के विशेषज्ञों ने इससे निजात पाने का हल ढूंढ लिया है| जिसकी मदद से इस बढ़ते मेडिकल कचरे को दूर किया जा सकता है और इसे उपयोगी बायोफ्यूल्स में बदला जा सकता है|

कितनी गंभीर है पीपीई कचरे की समस्या

दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| आज जिस तरह से कोरोना महामारी दुनिया भर में फैल गई है उसे रोकने के लिए पीपीई (दस्ताने, मास्क आदि) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है| पर चूंकि इन्हें एक बार प्रयोग किया जाता है इसलिए इनसे उत्पन्न होने वाला कचरा बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिससे निपटना जरुरी है| उत्तराखंड के वैज्ञानिकों द्वारा किये इस शोध में यह बताया है कि किस तरह डिस्पोजेबल पीपीई के अरबों आइटमों से जोकि पॉलीप्रोपाइलीन (प्लास्टिक) से बने होते हैं उन्हें बायोफ्यूल्स में बदला जा सकता है| इस शोध की प्रमुख शोधकर्ता डॉ सपना जैन ने बताया कि "पीपीई को बायोक्रूड में बदलने से न केवल स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके वेस्ट में कमी आएगी साथ ही ऊर्जा उत्पन्न करने में भी मदद मिलेगी|"

दुनिया के कई देशों में समुद्रों में बड़े पैमाने पर पीपीई किट जैसे दस्ताने और मास्क मिले हैं जो समुद्रों में मौजूद वेस्ट की मात्रा में इजाफा कर रहे हैं। साथ ही महामारी के खतरे को और बढ़ा रहे हैं। मछलियों और अन्य समुद्री जीवों के जरिए यह वेस्ट घूमकर हमारी फ़ूड चेन में पहुंच रहा है। अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अन्य शोध के अनुसार अनुमान है कि 2040 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक वेस्ट में तीन गुना तक इजाफा हो जाएगा। 2050 तक समुद्र में उतना प्लास्टिक होगा जितनी उसमें मछलियां भी नहीं हैं।

कैसे मिलेगा प्लास्टिक कचरे से छुटकारा

शोधकर्ताओं के अनुसार वर्तमान में कोविड-19 को देखते हुए इन पीपीई को एक बार उपयोग के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है| चूंकि इनके निपटान की समुचित व्यवस्था नहीं है इसलिए इन्हें इस हानिकारक वेस्ट को खुले वातावरण, लैंडफिल या समुद्रों में फेंका जा रहा है| प्लास्टिक से बना यह वेस्ट आसानी से विघटित नहीं होता और इन्हें ख़त्म होने में दशकों लग जाते हैं| ऐसे में इस पॉलीमर को रीसाइकल करने के लिए भौतिक और रासायनिक दोनों विधियों की जरुरत है| प्लास्टिक कचरे में कटौती, पुनःउपयोग और रीसाइकल इसको रोकने के तीन सबसे प्रभावी उपाय हैं|

इस कचरे से कैसे निजात मिलेगी इसे जानने के लिए शोधकर्ताओं ने कई अन्य शोधों की समीक्षा की है| उन्होंने विशेष रूप से पॉलीप्रोपाइलीन की संरचना पर ध्यान केंद्रित किया है जिससे इसे रीसाइकल किया जा सके| उनके अनुसार इस कचरे को पायरोलियसिस तकनीक का उपयोग करके ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है| पायरोलियसिस नामक यह तकनीक उच्च तापमान की मदद से प्लास्टिक को तोड़ने की एक रासायनिक प्रक्रिया है| इसमें प्लास्टिक को एक घंटे तक 300-400 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में उच्च दबाव में रखा जाता है जहां वातावरण में ऑक्सीजन नहीं होती है| इस शोध की सह लेखक डॉ भावना यादव लांबा का कहना है कि यह तकनीक कचरे को लैंडफिल में डालने और जलाने से कहीं बेहतर है| साथ ही यह प्लास्टिक को रीसाइकल करने का सबसे बेहतर तरीकों में से एक है|

शोधकर्ताओं के अनुसार इस तकनीक से न केवल कचरे से छुटकारा मिलेगा साथ ही बायोफ्यूल भी बनेगा, जिससे ऊर्जा संकट से निपटने में भी मदद मिलेगी| ऐसे में यह इस कचरे से निपटने का एक प्रभावी इलाज है| इससे उत्पन्न होने वाला ईंधन ने केवल साफ-सुथरा है साथ ही यह जीवाश्म ईंधन के समान ही कारगर भी है|