नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 20 जुलाई, 2020 को दिए अपने आदेश में साफ कर दिया है कि कोविड-19 के कारण उत्पन्न हो रहे बायो-मेडिकल वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटान करना जरुरी है| इसके साथ ही इसे आम कचरे से भी अलग करना जरुरी है| एनजीटी के अनुसार यह ने केवल बायो मेडिकल वेस्ट के उपचार और निपटान सुविधा (सीबीडब्ल्यूएफएफ) पर पड़ रहे दबाव को कम करने के लिए जरुरी है| बल्कि इसके साथ ही संक्रमण को फैलने से रोकने और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के लिए भी जरुरी है|
गौरतलब है कि इससे पहले 17 जून 2020 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट एनजीटी में सबमिट की थी| जिसमें कोविड-19 से जुड़े कचरे की जमीनी हकीकत बताई गई थी| सीपीसीबी द्वारा एनजीटी को दी गई जानकारी के अनुसार देश में करीब 1.6 लाख हेल्थ केयर सेंटर (एचसीएफ) बिना परमिशन के चल रहे हैं| इन सेंटर्स को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के अंतर्गत अनुमति नहीं मिली है| जबकि रिपोर्ट के अनुसार केवल 1.1 लाख एचसीएफ को ही अनुमति दी गई है| ऐसे में इन सेंटर्स के द्वारा उत्पन्न हो रहा बायोमेडिकल वेस्ट अपने आप में ही एक बड़ी चुनौती है| एनजीटी के अनुसार ऐसे में राज्य के पीसीबी और पीसीसी को बायोमेडिकल वेस्ट का सही तरीके से निपटान करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे|
रिपोर्ट के अनुसार जिन हॉस्पिटल्स, क्वारंटाइन सेंटर और घरों में कोरोना से संक्रमित मरीज हैं वहां उत्पन्न होने वाले कचरे को ठीक तरीके से अलग नहीं किया जा रहा है| जबकि बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 और सीपीसीबी द्वारा कोविड-19 के लिए जारी दिशानिर्देशों के अनुसार इस तरह के कचरे का सही तरीके से प्रबंधन करने के लिए इसको सामान्य कचरे से अलग करना जरुरी है|
गौरतलब है कि इससे पहले 24 अप्रैल 2020 को भी एनजीटी ने केंद्र और सीपीसीबी को सही तरीके से कोविड-19 के वेस्ट की निगरानी और निपटान करने के निर्देश दिए थे| सीपीसीबी ने पहले ही कोविड-19 के इलाज के दौरान उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के बायोमेडिकल वेस्ट पर ‘कोविड-19 कचरा’ होने का लेबल लगाना अनिवार्य कर दिया था। यह दिशानिर्देश बायो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत जारी किए गए थे।
सामान्य कचरे को बायोमेडिकल वेस्ट में मिलाने से सीबीडब्ल्यूएफएफ पर अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है| क्योंकि उन्हें घरेलु कचरे के निपटान के लिए नहीं बनाया गया है| सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार कचरे को अलग नहीं करने से दूषित प्लास्टिक के फिर से उपयोग में आने का खतरा बना रहता है।
सीपीसीबी द्वारा 2016 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर दिन लगभग 517 टन बायोमेडिकल वेस्ट उत्पन्न होता है। जबकि एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) और वेलोसिटी द्वारा 2018 में जारी एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उत्पन्न होने वाले चिकित्सा अपशिष्ट की कुल मात्रा करीब 550 टीपीडी है| वहीँ अनुमान है कि यह आंकड़ें 2022 तक बढ़कर 775.5 टन प्रति दिन तक पहुंच जाएंगें| ऐसे में कोविड-19 के कारण इस बायो मेडिकल वेस्ट में काफी वृद्धि होने की सम्भावना है, जिसका उचित निपटान जरुरी है|
ऐसे में एनजीटी ने निर्देश दिया है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (पीसीबी), प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) और स्वास्थ्य विभागों द्वारा इसकी नियमित निगरानी की जानी चाहिए। किसी भी हालत में कचरा सीबीडब्ल्यूएफएफ में नहीं पहुंचना चाहिए| जिससे पर्यावरण को बचाया जा सके| इसके साथ ही कोर्ट ने सीपीसीबी से सभी राज्यों के पीसीबी / पीसीसी से 30 अक्टूबर तक की जानकारी एकत्र करने के लिए कहा है| जिसपर 31 दिसंबर तक रिपोर्ट सबमिट करने का आदेश दिया गया है|