स्वच्छता

भावखेड़ी गांव ने स्वच्छ भारत मिशन पर खड़े किए सवाल, सामने आई यह हकीकत

2 अक्टूबर 2019 को भारत को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया जाएगा, लेकिन मध्यप्रदेश के एक गांव में खुले में शौच करते दो बच्चों की हत्या कर दी गई। जानते हैं, इस गांव का हाल-

Manish Chandra Mishra

शिवपुरी जिला मुख्यालय से महज 17 किलोमीटर दूर बसा भावखेड़ी गांव इस वक्त स्वच्छता अभियान और खुले में शौच से मुक्ति को लेकर पूरे देश का ध्यान खींच रहा है। इसकी वजह है बुधवार को हुई वह घटना जिसमें दो लोगों ने मिलकर इस गांव के दो बच्चों की हत्या कर दी जब वे बच्चे खुले में शौच कर रहे थे। स्वच्छ भारत मिशन के तहत आगामी 2 अक्टूबर को 100 फीसदी ओडीएफ यानि खुले में शौच से मुक्त होने का जश्न पूरे देश में मनाया जाना है, लेकिन इस गांव की घटना के बाद खुले में शौच से मुक्ति के इस दावे पर सवाल उठने लगे हैं। भावखेड़ी गांव को 4 अप्रैल 2018 में ही खुले में शौच में मुक्त घोषित किया जा चुका है। डाउन टू अर्थ ने गांव में स्वच्छ भारत मिशन के दावों की पड़ताल की तो सच सामने आया। सरकारी दावों के मुताबिक इस गांव को खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित किया गया है लेकिन गांव में प्रवेश करते ही इसकी हकीकत सामने आने लगती है।

लगभग 1100 लोगों की आबादी वाले इस गांव में तकरीबन 260 घर हैं, जिसमें से लगभग सभी में यानि 250 से अधिक घरों में शौचालय का निर्माण हो चुका है। कहने को तो हर घर में शौचालय सुविधा है, लेकिन गांव में प्रवेश करते ही यहां का पंचायत भवन इस दावे की पोल खोलता है। पंचायत भवन में शौचालय बना तो है लेकिन यह उपयोग करने लायक नहीं है। पंचायत भवन के सामने ही बुधवार को शौच करने पर दो बच्चे अविनाश और रोशनी की हत्या कर दी गई थी। ठीक यही हाल गांव के स्कूल का भी है जहां का शौचालय बंद पड़ा हुआ है। लड़कियों के लिए बने शौचालय में प्लास्टिक के झोले ठूंसे हुए मिले तो लड़कों के शौचालय में दरवाजा ही नहीं लगा हुआ है।

गांव में घटना के दो दिनों तक पुलिस का डेरा रहा। गांव के कोतवाल कल्याण परिहार बताते हैं कि पंचायत भवन का शौचालय खराब होने की वजह से पुलिस वालों को भी खुले में ही जाना पड़ा।

पीड़ित परिवार से बातचीत करने पर गांव के खुले में शौच से मुक्ति की हकीकत सामने आई। मृतक अविनाश वाल्मिकी के पिता मनोज वाल्मिकी ने बताया कि उनके घर में शौचालय नहीं है। उन्होंने इसे बनाने के लिए कई बार अधिकारियों के चक्कर लगाए और लिस्ट में से हर बार उनका नाम काट दिया जाता था। मनोज ने आरोप लगाया कि गांव के सरपंच किसी निजी रंजिश की वजह से शौचालय की लिस्ट से उनका नाम काट देते हैं। हालांकि सरपंच सूरजसिंह यादव ने आरोप खारिज करते हुए कहा कि मनोज के पिता के घर शौचालय बना है। साल भर पहले मनोज पिता से अलग रहने लगा। सरपंच ने शौचालय बनवाले के लिए आवेदन करने से भी इनकार किया। पंचायत सचिव भारत सिंह यादव का कहना है कि भावखेड़ी गांव ओडीएफ है। मनोज बाल्मीक पहले किसी और गांव चला गया था। बाद में आकर पिता कल्ला के घर रहने लगा।

सिर्फ मनोज ही नहीं बल्कि गांव के दूसरे लोग भी शौचालय न होने की शिकायत करते हैं। भावखेड़ी गांव के ही मेघराज जाटव बताते हैं कि उनके घर में भी शौचालय नहीं बना है। गांव के अधिकतर लोग खुले में ही शौच करने जाते हैं।

शौचालय तो बने लेकिन शौच के लिए नहीं

गांव में शौचालय को लेकर जागरुकता का अभाव देखा गया। गांव के तेज सिंह ने बताया कि उनके पिताजी और उनको एक-एक शौचालय मिला है। दोनों बंद ही रहता है। तेज सिंह ने अपने शौचालय में जलावन की लकड़ी रखा हुआ था।

शौचालय का पैसा कट गया लोन चुकाने में 

गांव के वीर सिंह ने बताया कि उन्होंने शौचालय के लिए आवेदन दिया था जिसके लिए उन्हें 6 हजार रुपए पहली किश्त मिली। पैसा सीधे बैंक में आया लेकिन बैंक में कर्ज होने की वजह से वह वहां काट लिया गया। वीर सिंह इस वजह से शौचालय नहीं बना पाए और अब बैंक के चक्कर लगा रहे हैं। 

कागजों में ओडीएफ

शिवपुरी जिले के सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव कि मुताबिक यह जिला सिर्फ कागजों पर ओडीएफ हुआ है। वे बताते हैं कि जिनके घर में शौचालय बन भी गए हैं वो भी उपयोग के लायक नहीं हैं और लोग उसमें जलावन के लिए लकड़ियां रखने लगे हैं। 

क्या कहती हैं कलेक्टर 

स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट के मुताबिक मध्यप्रदेश में 2,561,952 शौचालय बनाए जा चुके हैं, जिनमे से अकेले शिवपुरी जिले में ही 2,07,666 शौचालयों का निर्माण किया गया है। डाउन टू अर्थ से बातचीत में जिले की कलेक्टर अनुग्रहा पी ने बताया कि जिन घरों में शौचालय नहीं है उनमें इसकी व्यवस्था कराना प्रशासन की सतत जिम्मेदारी है। ऑनलाइन रिपोर्ट के मुताबिक मृतक के परिजन मनोज के परिवार को शौचालय मिल चुका है। हालांकि जांच में सामने आया कि मनोज अपने पिता से अलग रहने लगा जिस वजह से उसके घर में शौचालय की व्यवस्था नहीं थी।